समळौण ::: भीष्म कुकरेती
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उन त मि बिसर ग्यों बल गढ़वाळम ह्यूंद कन हूंद किलैकि अब मेकुण गढ़वाळ माने रुड्युं मा एक पर्यटक क्षेत्र। किन्तु तुम पाणी रुकणो गंगा मा बाँध बाँधी सकदा , चीन ब्रह्मपुत्र पर बाँध बाँधी सकद किन्तु भौत सि चीजुं याद , स्मरण , समळौण नि रुके सक्यांद।
मि अंग्रेजूं जमाना का ददा जी की संस्कृति से बि वाकिफ छौं , पिता जी की अधबीचौ संस्कृति से बि वाकिफ छौं , अपण नव संस्कृति से बि अर अब नौनूं न्यू कल्चर की बि मि तैं अंडरस्टैंगिंग च।
पर जु मजा मीन अपण बचपन मा ह्यूंदम देखि वु मजा ज़ीरो डिग्री मा शिमळा मा ग्रिल्ड चिकन व वैट 69 पींद बि नि पायी।
गढ़वाळम तब (1960 ) जडडू मतलब कुछ पैर्यूं दिखाणो , कुछ नि करणो या खाणो मौसम !
तब ठंड माने पूष शुरू हूण। पूष से पैली ब्वार्यूं मैत जाण अर बेट्यूं मैत आण।
ठंड माने अळगसी कौम याने मर्दुं म काम की भारी कमी अर घामतपै पर विशेष ध्यान दीण। बिचारि जनान्युं कुण आराम तब बि नि छौ। अगला नौ मैनों कुण घास -लखड़ जुड़नो जुम्मेवारी केवल जनान्युं छै। नर किरम्वळ अर नर पहाड़ी मा कुछ अंतर नी हूंद द्वी निकज्जा ही रौंदन।
ठंड माने सुबेर सुबेर नक्वळ मा क्वादौ रुट्टी या अन्य म्वाटो अनाज की रोटी मा घी , मिठु तेल या कड़ु तेल लपोड़ण आवश्यक छौ। इन माने जांद छौ बल ये बगत घी तेल खाण आवश्यक च। ग्यूं तै ठंड निरोधक नि माने जांद छौ तब।
नक्वळ याने ब्रेकफास्ट मा हफ्ता मा उबाळयूं खीरा दगड़ सत्तू खाणो अर्थ छौ इंनरजेटिक कार्बोहाइड्रेट लीण।
चाय मा चिन्नी बर्जित ह्वे जांद छौ अर गुड़, गिंदौड़ा , अंदरखी की डिमांड बढ़ जांद छौ।
यदि सामूहिक बसिंग फेस्टिवल उराये गए हो तो बसिंगौ नास्ता का चार दिन जोर हूंद छौ।
फिर हफ्तावार बळदूं तै तेल व उल्युं जौक आटौ ढिंढ खलाण आवशयक छौ। हमर बल्द नि छा तो मि तै कबि बि तिलुं तेलै वैल्यू आज तक पता नी च। बखरों तै लूण खलाये जांद छौ अर कड़क ठंडी दिन अन्य जानवरों तै बि लूण चटाये जांद छौ।
ठंड माने दुफरा मा कबि बि दाळ नि पकाण।
विंटर सीजन माने हफ्ता मा कंडळी अवश्य पकाण। ठंडौ मौसम माने झंगोरा , फाणु, कपिलु , पिटवणी पर जोर। भात कम खाण। राई, पळिंगू , ओगळ, लुण्या की वैल्यू बढ़ जांद छौ
घी या मिठु तेल का सेवन आवश्यक छौ तो घी व मिठु तेल खाणो अवसर खुजे जांद छा इलै त ये बगत खिचड़ी अर झुळळी हफ्ता मा बणदी इ छे। मि तैं सूंटूं खिचड़ी पसंद छे।
जडडू माने तैड़ू खुदाई जु गर्म्युं तक सब्जी काम आंद छौ। मर्द तैड़ु खुदाई काम तै कबि नि करदा छा , इन समझे जांद छौ शायद कि खुदाई से मर्दानगी खतम ह्वे जांद। कुछ हौर बौणौ सब्जी बि हूंदी छै किन्तु चूँकि हम सभ्य ह्वे गे छा तो हमन इनर्जी , विटामिन दायक वनस्पत्यूं की अनदेखी शुरू कर दे छै तो मि तै पता नि क्या क्या वन सब्जी हूंदी छै। हाँ ये बगत कुछ लोग गीन्ठी तो लांदा ही छा। फिर तिम्लौ भुजी बि बणदी छै। बेथु बि महत्वपूर्ण साग छौ।
बुखणू /खाजाौं बान विंटर आंद छौ या विंटरौ कारण बुखण बुकाये /खाये जांद छौ यु एक अनुत्तरित प्रश्न च।
बुकाये जाण वळ बुखणो मा भट्ट तो राजा छौ इ फिर मुंगरी , जुंडळ, मर्सू , ग्यूं , चूड़ा आदि बुकण सबि स्थानों याने घर से लेकि बौण तक बुकाये जांद छया अर भंगुल इलैइ त जमद छौ कि बुकाणुं मा रस्याण ऐ जावो।
उस्याण वळ बुखाणो म तोर , सूंट ,गहथ , रयांस , लुब्या , भट , मुंगरी उपलब्ध हूंद छा तो उसयां बुखणु अलग महत्व छौ। फिर यूं बुखणु तै भूटिक बुखण बुखावो , पीसिक मस्यट बणाओ अर मस्यट से तुरणी जन साग बणाओ व फिर भरीं रोटी सब कुछ हूंद छौ ठंड्यूं मा। भरीं रोटी अर घी व मिठु तेल ठंड्यूं माँ आवश्यक भोजन बि छौ। भरीं रोटी रिस्तेदारुं इख भिजणो रिवाज छौ तब। अब दारु भीजे जांद।
अब क्या हूंद ह्वाल यी हाल चाल तो हरीश जुयाल ही द्याला।
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16 /12 / 2017, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
----- आप छन सम्पन गढ़वाली ----
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