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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, December 17, 2017

ढांगू पट्टी के तीर्थस्थल, मेले व पर्यटक स्थल

  (गंगा सलाण परिचय श्रृंखला ) 
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आलेख : भीष्म कुकरेती
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प्राचीन काल में ढांगू एक विस्तृत क्षेत्र को कहा जाता था।  अब केवल तीन पट्टियों मल्ला ढांगू , बिछला ढांगू व तल्ला ढांगू क्षेत्र को ही ढांगू कहा जाता है।  
उत्तर ढांगू का कैन्डूळ लंगूर सीमा का गाँव है जिसकी सीमा ठांगर से मिलती है और कैंडूळ से बाड्यों तक ढांगू के नयार नदी मनियारस्यूं से अलग करती है।  बाड्यों से फूलचट्टी तक गंगा नदी ढांगू -टिहरी सीमा बनाती है।  फूलचट्टी में हिंवल व गंगा का संगम है।  फूलचट्टी से बगुड्या (खमण ) तक हिंवल उदयपुर और ढांगू की सीमा बन जाती है।  आज खमण , मसोगी डबरालस्यूं में हैं किन्तु एक समय ढांगू के हिस्से थे।  बगुड्या  से कलसी कुठार मंडूलळ गदन , कड़ती गदन ढांगू को डबरालस्यूं से अलग करता है। पूर्व में परसुली से डबरालस्यूं लग जाता है। 
         ढांगू में अधिकतर वही त्यौहार मनाये जाते हैं जो गढ़वाल में मनाये जाते हैं किन्तु कुछ क्षेत्रीय विशेषता भी ढांगू में हैं जैसे गेंद का मेला जो गंगासलाण परगने की विशेष विशेषता है। कुछ  प्राचीन ब्राह्मण जातियों के मूल गाँव (कुकरेती -जसपुर; बड़थ्वाल -बड़ेथ ; ); कुछ स्थानीय देवस्थल जैसे कड़ती में सिलसु थान , कैन्डुळ में सावित्री मंदिर , ठंठोली में गोदेश्वर मंदिर , फूलचट्टी  व्यासचट्टी  तक ऋषिकेश -बद्रीनाथ प्राचीन यात्रा सड़क आदि सांस्कृतिक विशेषताएं ढांगू की   पहचान बन चुकी हैं। कांडी अस्पताल प्राचीन अस्पतालों में से एक अस्पताल है। टंकाण स्कूल शायद 1870 में स्थापित स्कूल है तो ग्वील पुरातन पोस्ट ऑफिस है। सिलोगी स्कूल /कॉलेज ढांगू का गर्व है। 
             निम्न स्थल मेलों व विशेष पर्व हेतु ढांगू में प्रसिद्ध  हैं -
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                          गंगा किनारे की चट्टियां -

  फूलवाड़ी या फूलचट्टी , तल्ला ढांगू - हिंवल -गंगा संगम में आज भी त्यवहारों के दिन-मकर संक्रांति , बिखोत , विभिन्न पूर्णिमाओं , अमावसों के दिन लोग गंगा स्नान हेतु आते हैं और और मेले  लगते हैं।  एक समय यात्रा सीजन में फूलचट्टी का बड़ा महत्व   था 1912 में यहां 10 दुकानें थीं। 
घटूगाड (गुल्लर के सामने ) -कभी 1912 में घटटू गाड का बड़ा महत्व था आज मोटर सड़क के कारण बजारा है। 1912 में यहां 6 दुकानें थीं। 
 मोहन चट्टी - गंगा किनारे मोहन चट्टी में त्यौहारों  के दिन गंगा स्नान हेतु जनता यहां आती है और स्वतः ही मेले लग जाते हैं।  1912 में यहां  3 दुकानें थीं।
कुंड - 1912 में यहां 3  दुकानें थीं।और यात्री विश्राम भी करते थे व गंगा स्नान भी 
छोटी बिजनी - 1912 में यहां 8 दुकानें थीं। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि यह एक व्यापारिक स्थल था 
बड़ी बिजनी -1912 में यहां 8 दुकानें थीं। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि यह एक व्यापारिक स्थल था. 
 बंदर भेळ - 1912 में यहां 7  दुकानें थीं। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि यह एक व्यापारिक स्थल थ.स्थानीय लोग व उनके रिस्तेदार त्यौहारों के दिन 
महादेव चट्टी - 1912 में यहां 18 दुकानें थीं। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि यह एक व्यापारिक स्थल था . चंद्रभागा गदन व गंगा संगम पर प्राचीन महादेव मंदिर है।  यहां हर त्यौहार में गंगा स्नान हेतु लोग आते हैं।  मल्ला ढांगू , बिछला ढांगू व तल्ला ढांगू के कुछ गाँवों का श्मशान घाट है ।  श्मशान घाट होने के कारण कई कर्मकांडो के लिए लोग यहां आते हैं। 
सिम्वळ और आम - आज तो नहीं किन्तु मोटर सड़क से पहले बद्रीनाथ यात्रा हेतु खंड गाँव के सिम्वळ व आम प्रमुख चट्टियां थीं व अपने हिसाब से व्यापारिक केंद्र भी थे 
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       राफ्टिंग कैम्प 
राफ्टिंग जैसे रोमांचक पर्यटन विकसित होने से उपरोक्त सभी स्थल अब नए आर्थिक केंद्र बन गए हैं व नए तरह के तीर्थस्थल बन गए हैं।  
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              गेंद  मेले स्थल  
कटघर - मकर संक्रांति कटघर में उदयपुर विरुद्ध  ढांगू  के मध्य हथ गिंदी प्रतियोगिता होती है और बड़ा मेला लगता है। 
सौड़ (मल्ला ढांगू )- पूस अंत (सेख ) के दिन सौड़ में हिंगोड़ व हथगिंदी का मेला होता था। 

       मंदिर याने धार्मिक पर्यटन केंद्र 
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देवी डांडा (कठूड़ बड़ा मल्ला ढांगू )- सिलोगी , नौगढ़ ,लयड़ , गणिका पहाड़ी श्रृंखला में बसा बहुत पुराने मंदिर होने के कारण देवी डांडा का बड़ा महत्व है।  कठूड़ देवी मंदिर के पीछे दो मुख्य लोककथाएं मुझे सुनने मिलीं - डवोली डबरालस्यूं वालों का मानना है कि कठूड़ देवी मंदिर में डवोली देवी मंदिर के अंश हैं।  जब कि झैड़ तल्ला  ढांगू वालों  का मानना है कि कठूड़ वाले झैड़ से देवी अंश चोर क्र ले गए थे। 
     नवरात्रों में आस पास के ग्रामीण पूजा हेतु देवी  डांडा मंदिर आते हैं।  जब कठूड़ वाले विशेष प्रोग्रैम करते हैं तो यहां भीड़ हो जाती है और पर्यटन स्थल में बदल जाता है। 
गोदेश्वर मंदिर (ठंठोली , मल्ला ढांगू ) - गोदेश्वर शिव मंदिर भी गंगासलाण के पुरानतम मंदिरों में से एक मंदिर है. यहां शिवरात्रि , सावन में भक्त आते हैं और चहल  पहल रहती है।  
मेरी लघु खोज बताती है कि यहां कभी बारामासा गदन था और श्मशान घाट  भी था।  जब जसपुर से गोदेश्वर पहाड़ी में  बृहद  भूस्खलन हुआ तो गदन भूतल में समा गया और जसपुर वालों ने नीचे श्मसान हेतु शिव मंदिर बनवाया। 
जसपुर छाल का शिव मंदिर (ग्राम सभा जसपुर , मल्ला ढांगू )- इसे वास्तव में ग्वील का शिवाला कहा जाता है किन्तु ऐतिहासिक तर्क पुष्ट करते हैं कि इस मंदिर की स्थापना गोदेश्वर गदन समाने के बाद जसपुर वालों ने श्मसान घाट हेतु की थी बाद में ग्वील गाँव स्थापित होने के बाद ग्वील पधान ने इसका भव्यीकरण किया। जब ब्रिटिश काल में जसपुर से महादेव चट्टी तक सड़क बन गयी तो मल्ला ढांगू वालो मृतकों को  महादेव चट्टी श्मशान घाट ले जाने लगे। 
  शिवरात्रि व अन्य पवित्र दिन यहां क्षेत्रीय लोग पूजा हेतु आते हैं। 

कई पारिवारिक कर्मकांड पूजा इस मंदिर में किये जाते हैं 
ग्वील का दूसरा शिव मंदिर - ग्वील गाँव से सट कर बड़ेथ सीमा पर यह मंदिर है और सभी पुण्य तिथियों में क्षेत्रीय लोग पूजा हेतु आते हैं 
कटघर का शिवाला(ढांगू ) - इसकी भी बड़ी मान्यता है. 
 नौगढ़ का बड़ेथ (मल्ला ढांगू ) देवी मंदिर - स्व हीरामणि बड़थ्वाल व उनके कनिष्ठ भ्राता श्री ओम प्रकाश बड़थ्वाल ने यह मंदिर बनवाया।  अब यह बड़ेथ का सावजनिक मंदिर है और हर साल गर्मियों में सार्वजनिक पूजा की जाती है।  इस समय यहां मेला रूप हो जाता है।  नवरात्र में भक्त पूजा हेतु आते है 
बिंजरा देवी मंदिर - स्व सत्य प्रसाद बहुगुणा जी के प्रयत्नो से ग्वील सीमा में यह मंदिर बना है।  नवरात्रि में क्षेत्र के लोह पूजा हेतु आते हैं। 
झैड़ देवी मंदिर (तल्ला ढांगू ) -कई सालों से हर पांच साल में झैड़ वाले देवी पूजन बड़े स्तर पर करते हैं और हर ग्रामवासी पूजा में हिस्सा लेता है व झैड़ वालों के रिस्तेदार भी आते हैं तो बड़ी चहल पहल हो जाती है। 
जसपुर नागराजा मंदिर - हर चार साल में बड़ी सामूहिक पूजा के कारण जसपुर के प्रवासी , रहवासी व रिस्तेदार पूजा में हिस्सा लेते हैं 
कड़ती का सिलसु मंदिर (मल्ला ढांगू )- सिल्सू मंदिर मल्ला ढांगू का महत्वपूर्ण मंदिर है और धान कटाई के बाद अन्य ग्रामवासी भी दूध , धान देने आते हैं 
कैन्डुळ  (बिछला ढांगू ) - में वर्षा ऋतू में सावित्री मंदिर में सावित्री मेला लगता है।  
     
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                          मेडिकल टूरिज्म केंद्र 

     कांडी (बिछले ढांगू ) - ब्रिटिश काल  का पहले पहल यात्रा लाइन का स्वास्थ्य  केंद्र होने के कारण एक समय कांडी   अस्पताल की बड़ी मांग थी और बीसों मील से मरीज इलाज हेतु आते थे।  अफ़सोस सरकारी अनदेखी के कारण अब यह अस्पताल अपना महत्व खो बैठा है   
जसपुर (मल्ला ढांगू ) - आज जसपुर  में सरकारी अस्पताल होने के कारण  मल्ला ढांगू के लोग इस अस्पताल में  इलाज हेतु आते हैं    
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                               शिक्षा संस्थान 
        
 सिलोगी , गैंडखाल , मंडुळ व पुळ बौण में इंटर कॉलेज से ये स्थान पर्यटक स्थल की शक्ल ले रहे हैं 
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             सरकारी कार्यालय 
सिलोगी व गैंडखाल में बैंक होने से क्षेत्रवासियों को इन स्थानों तक यात्रा करनी पड़ती है 
जाखणी धार (मल्ला ढांगू )- में पटवारी व क्षेत्रीय कार्यालय होने से क्षेत्र वासियों को यहां आना पड़ता है। 
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  व्यापरिक केंद्र 
सिलोगी व गैंडखाळ  इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण बजार हैं  और क्षेत्र वासियों की कई जरूरतें पूरी करते हैं 

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  रानू बिष्ट जी का रिजॉर्ट 
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धारी - ऋषिकेश सिलोगी रोड पर एक होटल नुमा रिजॉर्ट है जो भविष्य के लिए  सकारात्मक प्रतीक है 
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Copyright @ भीष्म कुकरेती 
Tourist places and Pilgrim places of Malla Dhangu, Garhwal, Tourist places and Pilgrim places of Bichhla  Dhangu, Garhwal, Tourist places and Pilgrim places of Talla Dhangu, Garhwal,

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