(गंगासलाण के विशिष्ठ व्यक्ति श्रृंखला -24 )
आलेख : भीष्म कुकरेती
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मल्ला ढांगू (द्वारीखाल ब्लॉक , पौड़ी गढ़वाल ) में जसपुर के निकट जागरियों के बारे में एक विशेष भेद है। सवर्ण जागरी सभी तरह के घड्यळ रखते हैं किन्तु हंत्या घड्यळ केवल हरिजन /शिल्पकार जागरी ही रखते हैं। मुझे ज्ञान नहीं कि गढ़वाल के अन्य क्षेत्रों यह विशेषता है कि नहीं।
हंत्या घड्यळ वास्तव में अन्य घड्यळों अधिक भावनात्मक और करुणामय होता है। घड्यळ के वक्त करुणा ही नहीं , शोक, भय , स्मरण , प्रेम , निर्वेद (संसारहीनता ), ग्लानि , दैन्यता , मोह , आवेग , विषाद , औत्सुक्य , त्रास , मरण , व्याधि , उन्माद आदि कई भाव सामने आते हैं। इतने भाव आपको किसी भी अन्य घड्यळ में नहीं मिलेंगे जितने भाव हंत्या घड्यळ में मिलते हैं। जितने खटकर्म (जाळ लगाना, जाळ कटाई , विदाई और दूसरे दिन कुखड़ खड्यारण क्रिया आदि ) हंत्या पुजाइ में होते हैं उतने अन्य घड्यळ में कम ही पाए जाते हैं (जग्गी , अठवाड़ छोड़कर ) .
हंत्या घड्यळ एक विशेष घड्यळ होने के कारण इसके जागरी को मनोवैज्ञानिक की भी भूमिका निभानी होती है। दर्शकों में जनित इतने भावों के साथ जागरी को तालमेल बिठाना होता है। इसीलिए हंत्या घड्यळ को विशिष्ठ जागरी कहा जाता है।
जसपुर गाँव में हंत्या घड्यळ रखने निकट के गाँव (दो मील दक्षिण पश्चिम ) रणेथ के जागरी स्व श्री चैनू जी आते थे। मैंने केवल दो ही हंत्या घड्यळ देखे हैं किन्तु कह सकता हूँ चैनू जी जानकार मनोवैज्ञानिक थे। दर्शकों को डील करना उन्हें आता था।
जसपुर के बहुत कम लोगों को पता था कि वास्तव में चैनू जी के दादा जी जसपुर वासी ही थे (आज जसपुर के हंत्या जागरी वीरेंद्र के कुटुंब के) । जसपुर के स्व बनवारी जी व चैनू जी चचेरे भाई थे। चैनू जी के पिता जी कुछ समय बन्नी (जसपुर के दक्षिण में एक गाँव ) बसे और फिर बन्नी छोड़ रणेथ में बस गए थे ।
चैनू जी थाली बजाते थे और उनके साथ ढोलक कोई और बजाता था। शायद हंत्या घड्यळ में डमरू नहीं बजाते हैं शायद।
मुझे अभिमन्यु मरण के जागर की याद है।
उनका एक हास्य गीत मुझे आज तक याद है। जागर के मध्य उन्हें मध्यांतर करना था तो वे भौण में ही कहने लगे " ये तूंगी काका !ओ रामु काका ! अरे सोड़ पिलै द्यावो जी पिलै द्यावो जी ओ ओ ."
मल्ला ढांगू वाले हमेशा चैनू जी को उनकी सेवा के लिए सदा स्मरण करेंगे।
चैनू जी का जन्म कब हुआ के बारे में कोई सूचना नहीं मिल सकी और यह कहा जाता है कि 1985 के आसपास उनका स्वर्गलोक हुआ।
चैनू जी के पुत्रों ने शायद जागरी काम बंद कर दिया होगा। अब हंत्या घड्यळ चैनू जी के भाई स्व बनवारी जी के पौत्र श्री वीरेंद्र जी संभालते हैं जो स्व मुरारी लाल जी (जसपुर वासी ) के पुत्र हैं।
प्रार्थना है कि ---आप भी मुझे सूचना देकर विशिष्ठ व्यक्तिओं के संस्मरण लिखने कीजिये जी
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