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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, December 13, 2017

मंगलेश जी ! डा. उनियाल जी ! सुनील नेगी जी ! जनता अब पत्रकारों और साहित्यकारों को दलाल समझती है !

विश्वसनीयता , भरोसा , ट्रस्ट कु ट्वाटा  

(Best  of  Garhwali  Humor , Wits Jokes , गढ़वाली हास्य , व्यंग्य )
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 चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट  :::   भीष्म कुकरेती    
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 परिवारवादी राजनीति का प्रतीक कॉंग्रेसी महाराजा राहुल गांधी मोदी जी से पुछणा रौंदन बल मंहगाई मा अलण चीज नी मिलणी , फलण चीज नी मिलणी अर जडडू मा बद्रीनाथ मा सिपायुं तैं पीजा तो छवाड़ो ताजा ताजा नर्यूळ मिलण दुर्लभ ह्वे गे। पर मि तैं लगद भारत मा समस्या मंहगाई या ताजा ताजा पीजा कु नी च।  हिन्दुस्तान मा  सबसे बड़ी समस्या 'विश्वसनीयता ' कु हर्चन्त च। 
  आजादी बाद बि एक जमानो छौ जब हम अपण राजनीतिक नेताओं पर पूरो भरवस करदा छा।  हम भग्यान कॉंग्रेसी भक्त दर्शन जी , भग्यान जनसंघी ऋषिबललभ सुन्द्रियाल जी अर निर्दलीय भग्यान झब्बन लाल आर्य जी पर पूरो भर्वस करदा छा।  चुनावौ बगत ह्वेन या खाली समौ हो यी इन काम नि करदा छा जां से यूंकी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग जाओ।  
   अब त यी हाल छन बल हम स्याळ पर भर्वस कर लींदा पर अपण राजनीतिक नौनु पर रति भर भर्वस नि करदां।  हम हमेशा शंसय मा रौंदा बल हमर पोलिटिकल लौड़ हमकुण बुबा बुबा समझिक बुलणु च या गधा समझिक बाब बुलणु।  च आज चोर की नियत पर कै तै शक नि हूंद किन्तु हरेक नेता की नीयत  पर शक हूंद। 
    अबि सि हमर ब्याळै  प्रधान मंत्री अर भूतपूर्व उप राष्ट्रपति पाकिस्तानी अधिकार्युं तै चोरी छिपी मीलेन।  जब आजौ प्रधान मंत्रीन पोल ख्वाल त पैल त कॉंग्रेसन सफा प्रेस कॉनफेरेन्स मा बोलि दे कि नहीं क्वी नि मील।  पर फिर चार पांच दिन बाद स्वीकार कर याल।  अब इन मा बेईमान , भ्रष्ट मंत्र्युं लीडर ईमानदार नेता मनमोहन सिंह जी पर कनै भर्वस करण। 
   फिर प्रधान मंत्री पर बि भरवस कनै करण ? इन ह्वे सकद च  सरकारी अधिकार्युं जण्या बगैर भूतपूर्व उप राष्ट्रपति या भूतपूर्व प्रधान मंत्री पाकिस्तानी अधिकारिओं से मील सौक ह्वावन।  अर बजीरे आजम यीं खबर तै कै अखबारौ नाम से छा बताणा।  प्रधान मंत्री की विश्वसनीयता पर त अधिक प्रश्न चिन्ह लगद जी। 
    विश्वसनीयता कु प्रश्न केवल राजनीति मा इ नी च।  अपितु पत्रकारिता मा त भयंकर अविश्सनीयता का माहौल च। अजकाल जनता की नजर मा हरेक पत्रकार दलाल दिख्यांद , हरेक लेखक राजनैतिक पार्टी का खरीद्यूं गुलाम दिख्यांद , जनता तै लगणु च हरेक साहित्यकार कै ना कै राजनीतिक पार्टी कु चोबदार च , एजेंट च।  ह्वे सकद च म्यार बुलण पर श्री मंगलेश डबराल , डा राजेश्वर उनियाल या श्री सुनील नेगी चिढ़ जावन पर या हकीकत च कि अब सामान्य  नागरिक बि बुद्धिजीविओं , पत्रकारों और लेखकों तैं  भड़वा  (राजनैतिक दलाल ) पदवी दीण से नि घबरान्द किलैकि क्वी राज्यसभा की सीट का वास्ता भड़वागिरी करणु च , क्वी पत्रकारिता का नाम से दलाली (हरीश रावत कु स्टिंग ओप्रेसन उदाहरण ) करणु च त क्वी साहित्यिक अकादमी की कुर्सी वास्ता साहित्य रचणु च।  
  आज पत्रकार अर साहित्यकार से निष्पक्षता की उम्मीद नि करे जांद। अब तो भीष्म कुकरेती  से कॉंग्रेस जन  निष्पक्षता की उम्मीद नि करदो तो यू प्रश्न चिन्ह तो साहित्य जगत पर ही लगद कि ना ? 
  अर रूण या च कि भोळ स्थतिन और भी भयावह हूण. 
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12/12 / 2017, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India

*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।
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    ----- आप  छन  सम्पन गढ़वाली ---- 
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