चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
पटवरी जी ही गाउँक ब्यवस्था असली मालिक हूंद। सरा व्यवस्था पटवरी जीक बस्ता मा रौंद , इलै भू स्वामियों वास्ता पटवारी ही असली मुख्यमंत्री अर परधानमंत्री च अर पटवरी जीक बस्ता ही संसद अर न्यायालय च।
अबि कुछ दिन पैल कैन मि तैं कलाल घाटी कु किस्सा सुणाइ। कलाल घाटी कोटद्वार का काखम च। भाभर भूखंड मा रिटायरमेंट पर जाण वाळ पटवरी तैं भिजे जांद कि अगर कमाण मा कुछ कमि रै गे हो तो इख पूरी करी द्यावु अर रिटायरमेंट का दिन मजा से कटि जावन। उख गलती से एक जवान पटवारी जी आइगेन। बामण ह्वेक बि परम्परा तोडु छौ जब कि बामण परम्परा तबि तुड़दु जब वै तैं कुछ फायदा ह्वावु। वै से पैलाक पटवारी चूंकि रिटायरमेंट का बगत कलालघाटी आंद छा तो क छुट से छुट काम का वास्ता छै छै दैं पिठै लगवांद छा। जन कि तुम तैं अपण जमीनो खसरा दिखण तो पटवारी चौकी मा जांदो जांद पटवरी जी पर पैल कोरी पिठै लगाण पड़द। कोरी पिठै नि लग़ त रिटायरमेंट का नजीक बैठ्याँ पटवरी जी तैं झाड़ा लग जांद अर पटवारी जी झाड़ा करणो कोटद्वार जिना चलण शुरू करी दींद छौ। कोरी पिठै लग जावो तो पटवारी जी चौकी मा ही बैठ्या मिल जांदन। फिर खसरा नि मिल्दो। खसरा (भू रिकॉर्ड ) खुज्याणो बान पटवारी जीपर पंद्यरि लाल पिठै लगाण पोड़द। खसरा मील बी जावो तो कब्जादारौ पेज खुज्याणो बान हल्दीक पिठै लगाण पोडद अर अंत मा कब्जादारौ पेज दिखाणो बान चंदन लगाण पोडद। हर स्टेप पर एक पिठै। अर अब त मनरेगा कुनरेगा जन कथगा ही परेशानी ह्वे गेन तो पिठाइयो किसम बि बढ़ी गेन। अर हर स्टेप की पिठाई दगड़ चपड़ासी जीक कफन बि लगाण पोड़द। एक त पटवारी जीक चपड़ासी नंदी बैल जन हूंद जै तैं छुयां बगैर शिवलिंग का दर्शन होइ नि सकदन। गढ़वाल मा पिठै पटवारी जी तैं लगद। चपड़ासी जी तैं पिठै बर्ज्य च। चपड़ासी जीक कफन लगद। असल मा यि शब्द बि हमर सामाजिक ब्यव्स्था का इतिहास बथान्दन। जब अंग्रेजोंन पटवारी चौकी खुलेन त पैल पैल पटवारी बड़ी जातीक बामण बणिन जौं तैं जादा संस्कृत आदि छे अर चपड़ासी छुट जातिक बामण। जब क्वी मुर्दा फ़ुक्यावो या तिरैं बरिख ह्वावो तो बड़ा बामण याने गुरु तैं पिठै लगद पण दुसर छुट सहयोगी बामण तैं कटड़ दिए जांद अर मुगदान दिए जांद। तो या सामजिक ब्यवस्था पटवारी चौकी मा बि आयि अर पटवारी जी याने बड़ो बामण तैं त पिठै लगाये जांद अर चपड़ासी याने छुट जातिक बामण कु कफन लगाये जांद। आज बि जब खांद पींद घौरौक मनिख तैं बीपीएल (गरीबी रेखा से तौळ ) कार्ड मिलद त पूछे जांद - "बीपीएल कार्ड बणाण मा पटवारी तैं कथगा पिठै लग अर चपड़ासीक कफन कथगा लग ?" या इन शब्द हुँदैन कि पटवारी जी तैं पिठै लगाणो बाद चपड़ासीक कफन अवश्य लगैन हाँ !
हाँ तो कलाल घाटी चौकी मा बड़ो शहर से पढ्युं लिख्युं बामण ( सर्टिफिकेट मा कम पढ्युं -लिख्युं ) आइ गे अर यु आधुनिक बामण परम्परा तोडू छौ। जब कि बामणु कुण मनुस्मिृति मा नियम छन कि परम्परा निर्भाह करण चयेंद अर जब कुछ फायदा ह्वाओ तब ही परम्परा तोड़ण चयेंद जन कि अकबर बादशाह का दरबार मा बामण तैं नौकरी मील जावो तो बामणु द्वारा अकबर या औरंगजेव म्लेच्छ श्रेणी माँ नि गणे जांद छा अर नौकरी नि मील तो यी बादशाह म्लेच्छ ही माने जांद छा।
हाँ तो कलाल घाटी चौकी मा यु नै बामण जातिक पटवारी परम्परा तोडू छौ येन घूस लीण बंद नि कार पण पिठै लगवाण बंद करी दे। क्वी बि काम ह्वावो तो सीधा रेट बतांदो छौ अर अपण कीसा कताड़ी दींद छौ। कलाल घाटी का लोग बुल्दन बल इन इमानदार पटवारी सदियों माँ ही पैदा हूँदन। पटवारी जी एक दैं फिक्स रेट कौरी दींदु छौ अर फिर रेट का हिसाब से पूरो काम करी दींद छौ। अर एक दै रेट फिक्स तो समझो काम पूरो। अब लोग पिठैक पुड़की लेक पटवारी चौकी नि आंद छा किलैकि आधुनिक बामण पटवारी सीधा घूस लींद छा अर पिठैक नाम से चिढ़दा छ।
एक दिन एक आदिम खाली खसरा दिखणो आयी तो परम्परा तोडू पटवारीन खसरा दिखणो सौ रुपया की बाजिब मांग करी दे अर इखिमा चपड़ासी जीक बान कफन बि शामिल छौ। वै आदिमन अपण कीसौन्दन सौ रुप्या गाड अर पटवारी जीक कताड्यूं कीसाउंद डाळी दे कि एक पुलिस वाळ आयि अर वैन पटवारी जी तैं सौ रुपया घूस लींद पकड़ दे।
पटवारी जी तैं नजीकौ पुलिस चौकी लिजाये गे। पुलिस चौकिक थाणेदारन किस्सा सूण अर थाणेदार बेहोस ह्वे गेन। बेहोसी इथगा जोर की छे कि पाणी छींटा मारण से बि बेहोसी दूर नि ह्वे तो थाणेदार जी तैं एक पवा देसी दारु पिलाये गए तो ऊंक बेहोसी दूर ह्वे। होस मा आंद ही थानेदारन पटवारी पर लात मार कि," साले तीन उत्तराखंड कु नाम गंदु करी दे। ईं सूचना सुणिक मध्य प्रदेस या उत्तरप्रदेश का पटवारी क्या ब्वालल कि उत्तराखंड मा इथगा छुटि घूस लिए जांद?"
थाणेदारन न्याड़ ध्वारक पटवारी बुलैन तो लालढांग , कोटद्वार , देवी रोड , इख तलक कि दुगड्डा का पटवारी बि पुलिस चौकी पौंछि गेन। हरेक पटवारी आवो अर रस्ता मा पड्यू सुक्युं जुत या चप्पल तैं पाणी मा भिगाओ अर पटवारी तैं जूते द्यावो। जुत्यान्द जुत्यान्द हरेक पटवारी बुल्दु छौ -
थाणेदारन न्याड़ ध्वारक पटवारी बुलैन तो लालढांग , कोटद्वार , देवी रोड , इख तलक कि दुगड्डा का पटवारी बि पुलिस चौकी पौंछि गेन। हरेक पटवारी आवो अर रस्ता मा पड्यू सुक्युं जुत या चप्पल तैं पाणी मा भिगाओ अर पटवारी तैं जूते द्यावो। जुत्यान्द जुत्यान्द हरेक पटवारी बुल्दु छौ -
"साले तूने घूस लेकर सारे उत्तराखंड का नाम गंदा कर दिया। उत्तराखंड देव भूमि है और यहाँ कोई घूस नही लेता है। "
" अबै शरम नि आयि त्वै तैं सौ रुपया घूस लींद। हमर बि रेट कम करवै देन तीन। हमर चौकी मा त चपडासिक कफन लगांणो रेट कम से कम द्वी सौ रुपया छन ।"
" अबै तेरो को किसने बोला था कि तू पिठाई /टीका लेना बंद कर। "
सौ रुपया की घूस छे तो एफआईआर लिखण बि बेज्जती छे।
इथगा मा गाँवाळ बि ऐ गेन अर वूंन पटवारी जीक पैरवी करण शुरू कौरि दे।
सबि गांवाळुन थानेदार अर अन्य पटवार्युं से विनती याने प्रार्थना कार कि पटवारी जी का विरुद्ध एफआईआर दर्ज नि हूण चयेंद।
जन कि नियम च कि बामणों बुबा मोर या ब्वे मोर तो जजमानुं तैं ही तिरैं -बरखी खर्च उठाण पोड़द। ऊनि पुलिस चौकी मा बि ह्वाइ। पटवारी तैं छुडाणो बान गांवाळु तैं तीन खसि बुगठ्यों बलि चढ़ाण पोड अर बीस बोतल बिदेसी दारु से चौकी धूण पोड़। पुलिस वाळु पाणि पिठै बि ह्वेइ ।
सब्युं समिण परम्परा तोडू पटवारिन कसम खैन कि आज से वो कबि बि घूस नि लयालु अर केवल पिठै ही लगवाल।
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी द्वारा जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वालेद्वारा पृथक वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण वाले द्वारा भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी द्वारा पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखकद्वारा सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ]
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments