चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
मैदानी गाउँ मा बच्चों तैं डरांदन कि से जा निथर गब्बर सिंग ऐ जाल। शहरुं बच्चों तैं डराये जांद बेटा से जा या भितर ऐ जा निथर पुलिस आली अर कै बि गुनाह मा पकड़ी ली जाली।
गढ़वाल का गाँव आज बि सुरक्षित माने जांदन किलैकि गाँवु मा पुलिस नि पाये जांद। जन कि क्वी गोर मरि जांद त गरुड़ , चिलंग , कवा , स्याळ ऐ जांदन ऊनि जनि जख पुलिस चौकी खुलि ना कि चोर , जेबकतरा, भौं भौं अपराधी अपण बिजिनेस करणो ऐ जांदन। चोर , अपराधी बि जाणदा छन कि जख पुलिस चौकी नि ह्वावो उख माल मसाला बि नि हूंद अर पकड़े गे त लोगुं से छुड़ण मुस्किल हूंद जबकि पुलिस से छुड़ण भौत सौंग हूंद। व्यंग्यकार घोंघी का अनुसार पुलिस कु अर्थ हूंद सिविल आर्मी बड़ो अनसिविल हूंद अर पुलिस चौकी माने हिटलर स्थली।
गढ़वाल का गाँव आज बि सुरक्षित माने जांदन किलैकि गाँवु मा पुलिस नि पाये जांद। जन कि क्वी गोर मरि जांद त गरुड़ , चिलंग , कवा , स्याळ ऐ जांदन ऊनि जनि जख पुलिस चौकी खुलि ना कि चोर , जेबकतरा, भौं भौं अपराधी अपण बिजिनेस करणो ऐ जांदन। चोर , अपराधी बि जाणदा छन कि जख पुलिस चौकी नि ह्वावो उख माल मसाला बि नि हूंद अर पकड़े गे त लोगुं से छुड़ण मुस्किल हूंद जबकि पुलिस से छुड़ण भौत सौंग हूंद। व्यंग्यकार घोंघी का अनुसार पुलिस कु अर्थ हूंद सिविल आर्मी बड़ो अनसिविल हूंद अर पुलिस चौकी माने हिटलर स्थली।
गढ़वालम पुरण जमानो मा बच्चों तैं डराये जांद छौ - से जा , भितर ऐ जा निथर पकड्वा ऐ जाल। हमर मानस चित्र मा पकड्वा छवि आंदि छे कि बड़ो पग्गड़ वाळ जु कै तैं बि सुद्दी -मुदी उठैक लीजान्द। अब त बुले जांद पुलिस मायने पकड्वा जीजा याने उ जीजा जु बेग़ुनाहूं तैं पकड़ी लीजांद। हाँ भै हां ! पुलिस माने जीजा। तुम चाहे रपट लिखाणो पकड्वा चौकी याने पुलिस चौकी जावो तो तुमर स्वागत हूंद - क्यों बै साले रपट लिखवाने आया है ? अपने संदूक को ताला लगाते तेरी माँ मर गयी थी। पुलिस वाळ यदि 'साला' शब्द इस्तेमाल नि करद त समझो कि वु औन ड्यूटी नी च। ऑन ड्यूटी पुलिस वाळ की पैचाण बर्दी से नि हूंद बल्कि हरेक वाक्य मा ''साला शब्द अर हर दुसर वाक्य कि तुझे पुलिस वाले के डंडे की कीमत का पता नही है'' से हूंद । डंडा अर साला शब्द ही ऑन ड्यूटी पुलिस वाळक पछ्याणक च। पुलिस स्टेसन मा रपट लिखवाण वाळ अर अभियुक्त द्वी पुलिस वाळ का साला हूँदन तबि त रपट लिखवाण वाळ अर गुनाहगार द्वी पकड्वा जीजा तैं जीजाभेंट दीन्दन जै तैं कजीरवाल जन अरबिंद नेता भ्रस्टाचार बुल्दन जब कि पुलिस वाळ अर नागरिक घूस तैं शिष्टाचार बुल्दन। अब जीजा तैं गिफ्ट या भेंट दीण त हिंदुस्तानी संस्कृति को अभिन्न अंग च। ये मामला मा पुलिस सेकुलर च पुलिस वाळ हमेशा सेकुलर हूंद अब चाहे मुसलमान ह्वावो, हिन्दू, आदि वासी या दलित ह्वाव पुलिस वाळ सब तैं 'साला ' बुल्द अर हरेक 'साले' से रेट का ही हिसाब से ही जीजाभेंट लींदु। जब भारत सरकार का गृह मंत्री सुशील शिंदे साबन राज्य सरकारूं तैं ल्याख कि अल्प संख्यकों तैं अनावश्यक तंग नि करे जावो तो शिंदे साब की हिदायत से भाजापा से जादा पुलिस वाळ शिंदे साब पर नराज ह्वेन। पुलिस वाळ 'साला ' शब्द बुलण माँ अर जीजाभेंट लीण मा क्वी भेदभाव ही नि करदन तो शिंदे साब तैं इन हिदायत दीणै जरूरत क्या छे ? बणाक की ताप-तपन-गर्मी मुसलमान या हिन्दू पर एकसमान लगद उनी पुलिस की ताप बि हरेक भारतवासी पर एकजनि लगद। जीजाभेंट लीणो मामला मा पुलिस क्वी जातीय या धार्मिक भेदभाव नि करदी।
पुलिस वाळ अर कुंजड़ा (सब्जी बिचण वाळ ) इकसनी हूँदन। सब्जी सौड़ जा , गळ जा पर सब्जी बिचण वाळ या कुंजड़ा अपण सब्जीक दाम कम नि करद , कथगा बि रिसेसन ह्वावो पुलिस वाळ अपण फिकस्ड रेट से कम जीजाभेंट नि लींदु। पुलिस वाळु बुलण च एक दैं जीजाभेंट का रेट कम करे जावन तो रेट अळग लाण मा ननि ददि याद ऐ जांद। फिर घौरम घरवळी या भैर नाजायज प्रेमिका हर मैना जेवहरातुं मांग करणा रौंदन अर रिसेसन का पीरियड मा बि सोना का रेट कम नि हूँदन त बिचारा पुलिस वाळ जीजाभेंट का रेट कम कनकै कौर सकुद ? तुमि बतावो !
@अग्वाड़ी का अँकु मा पुलिस पुराण पर अन्य लेख ....
Copyright@ Bhishma Kukreti 10 /2/2014
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी द्वारा जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वालेद्वारा पृथक वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण वाले द्वारा भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी द्वारा पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखकद्वारा सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ]
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments