Modern Garhwali Folk Songs, Poems
हम सैणs का गोर भ्याल हकै सकदां (विडम्बना लिए व्यंग्य )
हम सैणs का गोर भ्याल हकै सकदां (विडम्बना लिए व्यंग्य )
रचना -- धर्मेंद्र सिंह नेगी 'खुदेड़ ' ( जन्म 1975 , चुरानी , रिखणी खाळ , पौड़ी गढ़वाल )
Poetry by - Dharmendra Singh Negi 'Khuder'-
( गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग - 165 )
( गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग - 165 )
-इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती
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हम सैणs का गोर भ्याल हकै सकदां
हम गौं कि द्वी सार्यूं गोर चरै सकदां
हम कैका भि पुंगड़ा को वाडु सरै सकदां
हम खास भयों मा भी लड़ै करै सकदां
हम गौं कि द्वी सार्यूं गोर चरै सकदां
हम कैका भि पुंगड़ा को वाडु सरै सकदां
हम खास भयों मा भी लड़ै करै सकदां
किलैकि हम आजाद छां, किलैकि हम निरदुन्द छां
हम गौं का नवळौं मा मैणु छोलि सकदां
हम कैका भि डाळिकि नारंगी चोळि सकदां
हम कैका भी खल्यॉण मा दैं फोळि सकदां
हम कैखुणै,कखिम भी कुछ भी बोलि सकदां
हम कैका भि डाळिकि नारंगी चोळि सकदां
हम कैका भी खल्यॉण मा दैं फोळि सकदां
हम कैखुणै,कखिम भी कुछ भी बोलि सकदां
किलैकि हम आजाद छां, किलैकि हम निरदुन्द छां
हम कैकि भि कूड़ि फरै बुजिना खे सकदां
हम अपणि बांठि खैकि हैंककि हते सकदां
हम कैकि भि कूड़ि अर छनुड़ि घंटे सकदां
हम कैका भि कान्धाउन्द झुंटे सकदां
हम अपणि बांठि खैकि हैंककि हते सकदां
हम कैकि भि कूड़ि अर छनुड़ि घंटे सकदां
हम कैका भि कान्धाउन्द झुंटे सकदां
किलैकि हम आजाद छां, किलैकि हम निरदुन्द छां
हम कल्यो खैकि कंडा भ्यालुन्द लमडै सकदां
हम बैलि भैंस्यों तैं लैन्दि बतैकि बेचि सकदां
हम कैकs भि मुंड कि लटुळ्यों तैं झमडै सकदां
हम खुटि अलगैकि बडु़ आदिम बणि सकदां
हम बैलि भैंस्यों तैं लैन्दि बतैकि बेचि सकदां
हम कैकs भि मुंड कि लटुळ्यों तैं झमडै सकदां
हम खुटि अलगैकि बडु़ आदिम बणि सकदां
किलैकि हम आजाद छां किलैकि हम निरदुन्द छां
हम कैका बण्यॉ काम मा भांचि मारि सकदां
हम उकाल काटिकि सरपट भाजि भि सकदां
हम कैका भी तैकs मा अपणि भूड़ि तैलि सकदां
हम कैखुणैं भी कखिम भी बौंळि बिटै सकदां
हम उकाल काटिकि सरपट भाजि भि सकदां
हम कैका भी तैकs मा अपणि भूड़ि तैलि सकदां
हम कैखुणैं भी कखिम भी बौंळि बिटै सकदां
किलैकि हम आजाद छां किलैकि हम निरदुन्द छां
हम जळड़ा घाम लगाण मा माहिर छां
हम हैंकका नौकि संगरांद बजाणका उस्ताद छां
हम हैंककि कुटीं घाण मा बणदा झट पर्वाण छां
हम भैरा खुणि बिर् वळि अर भितरा खुणि ढिराक छां
हम हैंकका नौकि संगरांद बजाणका उस्ताद छां
हम हैंककि कुटीं घाण मा बणदा झट पर्वाण छां
हम भैरा खुणि बिर् वळि अर भितरा खुणि ढिराक छां
किलैकि हम आजाद छां किलैकि हम निरदुन्द छां
आप सब्यूं तैं आजादी कि भौत-भौत शुभकामना
Poetry Copyright@ Poet
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