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वे ग्वारा मन मा (अति यथार्थवादी गढ़वाली कविता )
रचना -- संजय सुंदरियाल ( जन्म 1979 , चुरेड़गां , चौंदकोट गढ़वाल )
Poetry by - Sanjay Sundariyal-
Critical and Chronological History of Modern Garhwali (Asian) Poetry – 168
-साहित्य इतिहास , इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती
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स्वांग दुन्या के देखी
किलै हूंदी औळ बौळ
जाणि ले तु बींगी जा
सौंजड्या तेरु रूप दुःख -दलेदर
तिडीं ग्ल्वड़ि अर हलकदी बाली
कुतरण्या लारों मा सुवांदी छ।
तेरा जिंड्या लटल्यूं मा
अळझ्याँ छन रिश्ता नाता
कखरळयूं पसीनै बास
छळे देंद कस्तूरी थैं।
आड़ा ब्याड़ा झुलड़ा
हथगुळो का चिरखा
अर बगत्यड़याँ हथ खुटा
आकार देंदी मन्था थैं।
पितम्वरी मुखड़ी को सकळोपन
लाल उणीन्दी आंख्यूं का स्वीणा
नि करदा स्याणी -गाणी
बस टुप सियां रन्दन
तेरी काळी गति का प्याट
लुक्यां वे ग्वारा मन मा।
(Ref-Angwal)
Poetry Copyright@ Poet
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