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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Friday, August 5, 2016

जिन्नु परांण : A Garhwali realistic Story

Story by : Mahesha Nand
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आँखा कांणाकंदूड़ बैराकम्मर डुंड्डि अर डगड्यांद हत। ख्वळि गिच्चिफुल्यूं मुंडलम्बा घुंज्जा अर दरदरि गत। इनि बान्यू मनिख च कूंता। चार बीसी अर पांच फर च। कुंता इकुलु बांदर सि डंड्यळि जग्वळूं (चौकदरि कन) ज्यूंदि बंण्यूं च खबेस। चार नौनाचार ब्वारी सौब बस्यांन् दुरु परदेस। अफी पकांणिअफी खांणि हुंयी च। ज्ये पकंणू चजन्नि पकंणू चतन्नि खयेंणु च।
कूंता अपड़ा जोगो रूंणू च--- "हूंदि अमंणि ज्यूंदि बुढीड़रुसै वे कु पकांदि वा। कांज्यु-कफल्यु ज्ये बि हूंदु सरदा कै खलांदि वा।" पंण जोगा ऐथर कै कि नि चली जै कजोगम् जन ल्यख्यूं ह्वालुवु तन्नि खालु। पापि पुटिग्या बान कूंता चुल्ला अगड़ि बैठ्युं च। खांणा पकांणू अफी पर्वांण बंण्यूं च। कूंतन जबक लगै-लगै कि भांडा औंदम् धैरि द्येनि। भुज्यू भदSळु मुल्या त तव्वा मैला औंदा धैरि द्या।
कूंता रुट्यू खुंणै ढबSड़ि आटु गंमजांणू च। आँखा सुख्यां छन पंण नाक गिल्लु च। नाक तर्र-तर्र आटम् चूंणू च। सर्र नाक फूंजि बुढ्यन् गर्र आटम् ओलि द्यालतपत रुठळु पाथी चटंट भदSळम् धोळि दंया। आँखा त सप्पा दिखेंणी नि लग्यां छा। भदSळम् काचि भुज्जि अर ऐंच बटि काचु रुठळु। वेन उठा डडळु अर गंजमंज कै खैंडि द्या। भूका मारा तैन सौब बाड़ि जनकळ्ळ-कळ्ळ घूळि द्या।
अद्दा रातम् पुटगि कन बैठि गुड़गुड़-गुड़गुड़ढम्म-ढम्म। मचि उदरोळ पुटगि सम्म। बायु छुट्टि भम्म-भम्म। छर्र इनाछर्र उनाबुढ्या रिंगणू फळम्-फळम्। 
सुबेर जबक लगैकि बिंगद बुढ्या-- हत-खुट्टा लतपत। ब्याळि खै छौ आलु-काचुसुलार चूंणू पतपत। चर्री कूंण्यूं छर्क मरींखांदु भुर्यूंखंत्ड़ि भुरींखांणै थकुलि सम्म भुरीं। 
खुंट्यूं उंद लतग-पतगभैर-भित्र गंद-बास। सिंटुला रिंगंणा खुंट्या(सीढ़ी) मत्थिलींडि कुक्कुर लग्यां साSस। अफु फर अफी घिंणांद अर रूंद-रूंद ब्वाद कूंता--- "पापि मिरतू! तु मै कु किलै नि आंणी छै ज्यूं मि त्वे उंड भट्यांणू छौंत्यूं तु फुंड-फुंड जांणी छै।"
Copyright@ Mahesha Nand
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