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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, May 23, 2011

गढ़वाली कविता : त्वै बिन

धार मा की जौन
ऋतू बसंती मौल्यार
बग्वाली की धूम
होली का हुल्करा
थोल-मेलौं -कौथिगौं का ठट्ठा मज्जा
ग्वेरौं का बन्सुल्या गीत
खिल्यां फूल फ़्योंली और बुरांश का
और पन्देरा की बारामसी छुयीं-बत्ता
सबही बैठ्याँ छीं
बौग मारिक
चुपचाप
त्वै बिन !

रचनाकार : ( गीतेश सिंह नेगी ,सिंगापूर प्रवास से ,सर्वाधिकार सुरक्षित )
स्रोत : म्यार ब्लॉग हिमालय की गोद से ,http://geeteshnegi.blogspot.com

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