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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 15, 2011

गढ़वाली कविता :क्या व्हालू ?

जक्ख रस अलुंण्या राला
और निछैंदी मा व्हाला छंद
कलम होली कणाणि दगडी
वक्ख़ लोक-भाषा और साहित्य कु
क्या व्हालू ?

जक्ख अलंकार उड्यार लुक्यां राला
और शब्दों फ़र होली शान ना बाच
जक्ख गध्य कु मुख टवटूकु हुयुं रालू
और पद्य की हुईं रैली फुन्डू पछिंडी
वक्ख़ लोक -भाषा और साहित्य कु
क्या व्हालू ?

जक्ख जागर ही साख्युं भटेय सियाँ राला
और ब्यो - कारिज मा औज्जी
दगडी ढोल-दमो अन्युत्याँ राला
वक्ख़ लोकगीत तब बुस्याँ -हरच्यां हि त राला
और बिचरा लोग -बाग तब दिन -रात
वक्ख़ मंग्लेर ही खुज्याणा राला
वक्ख़ लोक -भाषा और साहित्य कु
क्या व्हालू ?
वक्ख़ लोक -भाषा और साहित्य कु
क्या व्हालू ?



रचनाकार : ( गीतेश सिंह नेगी ,सिंगापूर प्रवास से ,सर्वाधिकार सुरक्षित )
स्रोत :( म्यार ब्लॉग हिमालय की गोद से , " दस्तक " के लोकभाषा विशेषांक हेतु मेरी एक रचना )

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