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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, May 23, 2011

गढ़वाली कविता : छिल्लू बुझी ग्या

बैइमनौं का राज मा -ईमनदरी कु
भ्रस्टाचरी गौं - समाज मा - धरमचरी कु
मैंहंगई का दौर मा - गरीबौं कु
गल्दारौं का राज मा - वफादरौं कु
ठेकदरौं का राज मा - ध्याड़ी मज्दुरौं कु
प्रधनी की चाह मा - गौं-पंचेतौं कु
अनपढ़ों का राज मा - शिक्षित बेरोज्गरौं कु
और दरोल्यौं का राज मा - पाणि-पन्देरौं कु
छिल्लू बुझी ग्या


रचनाकार : ( गीतेश सिंह नेगी ,सिंगापूर प्रवास से ,सर्वाधिकार सुरक्षित )
स्रोत : ( म्यार ब्लॉग हिमालय की गोद से ,http://geeteshnegi.blogspot.com )

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