गढ़वाल कुमाऊँ के नाथपंथी देवता
भीष्म कुकरेती
भीष्म कुकरेती
गढ़वाल व कुमाओं में छटी सदी से नाथपंथी अथवा गोरखपंथी प्रचारकों का आना शुरू हुआ और बारवीं सदी तक इस पंथ
का पूरे समाज में एक तरह से राज रहा इसे सिद्ध युग भी कहते हैं
कुमाओं व गढ़वाल और नेपाल में निम्न नाथपंथी देवताओं की पूजा होती है और उन्हें जागरों नचाया भी जाता है
१- नाद्वुद भैरव : नाद का अर्थ है पहली आवाज और नाद वुद माने जो नाद का जानकार है जो नाद के बारे में बोलता है . अधिकतर जागरों में नाद्वुद भैरव को जागरों व अन्य मात्रिक तांत्रिक क्रियाओं में पहले स्मरण किया जाता है , नाद्वुद भगवान शिव ही हैं
पैलो का प्रहर तो सुमरो बाबा श्री नाद्वुद भैराऊं.... राम्छ्ली नाद बजा दो ल्याऊ. सामी बज्र दो आऊ व्भुती पैरन्तो आऊ . पाट की मेखळी पैरंतो आऊ . ब्ग्मरी टोपी पैरन्तो आऊ . फ्तिका मुंद्रा पैरंतो आऊ ...
२- भैरव : भैरव शिव अवतार हैं. भैरव का एक अर्थ है भय से असीम सुख प्राप्त करना . गाँव के प्रवेश द्वार पर भैरव मुरती स्थापित होती है भैरव भी नचाये जाते हैं
एक हाथ धरीं च बाबा तेरी छुणक्याळी लाठी
एक हाथ धरीं च बाबा तेरी तेज्मली को सोंटा
एक हाथ धरीं च बाबा तेरी रावणी चिंता
कन लगायो बाबा तिन आली पराली को आसन
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३- नरसिंह : यद्यपि नरसिंघ विश्णु अवतार है किन्तु गढवाल कुमाओं में नरसिंह नाथपंथी देवता है और कथा संस्कृत आख्यानो से थोड़ा भिन्न है . कुमाऊं - गढवाल में नरसिंह गुरु गोरखनाथ के चेले /शिष्य के रूप में नचाये जाते है जो बड़े बीर थे नरसिंह नौ है -
इंगले बीर नरसिंघ, पिंगला बीर नरसिंह, जाती वीर नरसिंघ , थाती बीर नरसिंघ, गोर वीर नरसिंह, अघोर्बीर नरसिंघ, चंद्बीर नरसिंघ, प्रचंड बीर नरसिंघ, दुधिया नरसिंघ, डोडिया नरसिंह , नरसिंघ के हिसाब से ही जागरी जागर लगा कर अलग अलग नर्सिंगहो का आवाहन करते है
जाग जाग नरसिंह बीर जाग , फ़टीगु की तेरी मुद्रा जाग
रूपा को तेरा सोंटा जाग ख्रुवा की तेरी झोली जाग
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४- मैमंदा बीर : मैम्न्दा बीर भी नाथपंथी देवता है मैमंदा बीर मुसलमानी-हिन्दू संस्कृति मिलन मेल का रूप है मैम्न्दा को भी भैरव माना जाता है
मैम्न्दा बीरून वीर पीरून पीर तोड़ी ल्यासमी इस पिण्डा को बाण कु क्वट भूत प्रेत का शीर
५- गोरिल : गोरिल कुमौं व गढ़वाल का प्रसिद्ध देवता हैं गोरिल के कई नाम हैं - गोरिल, गोरिया , गोल, ग्विल्ल , गोल , गुल्ली . गोरुल देवता न्याय के प्रतीक हैं .ग्विल्ल की पूजा मंदिर में भी होती है और घड़े ल़ा लगा कर भी की जाती है
ॐ नमो कलुवा गोरिल दोनों भाई......
ओ गोरिया कहाँ तेरी ठाट पावार तेरी ज़ात
चम्पावत तेरी थात पावार तेरी ज़ात
६- कलुवा वीर ; कलुवा बीर गोरुल के भाई है और बीर हैं व घड़ेल़ा- जागरों में नचाये जाते हैं
क्या क्या कलुवा तेरी बाण , तेरी ल़ाण .... अजी कोट कामळी बिछ्वाती हूँ .....
७- खेतरपाल : माता महाकाली के पुत्र खेतरपाल (क्षेत्रपाल ) को भी नचाया जाता है
देव खितरपाल घडी -घडी का बिघ्न टाळ
माता महाकाली की जाया , चंड भैरों खितरपाल
प्रचंड भैरों खितरपाल , काल भैरों खितरपाल
माता महाकाली को जायो , बुढा महारुद्र को जायो
तुम्हारो द्यां जागो तुम्हारो ध्यान जागो
माता महाकाली की जाया , चंड भैरों खितरपाल
प्रचंड भैरों खितरपाल , काल भैरों खितरपाल
माता महाकाली को जायो , बुढा महारुद्र को जायो
तुम्हारो द्यां जागो तुम्हारो ध्यान जागो
८- हरपाल सिद्ध बाबा भी कलुवा देवता के साथ पूजे जाते हैं नचाये जाते है
न्गेलो यद्यपि क्ष व कोल समय के देवता है किन्तु इनकी पूजा भी या पूजा के शब्द सर्वथा नाथपंथी हैं यथा
न्गेलो की पूजा में
उम्न्मो गुरु का आदेस प्रथम सुमिरों नाद भैरों .....
निरंकार ; निरंकार भी खश व कोली युद के देवता हैं किन्तु पुजाई नाथपंथी हिसाब से होती है और शब्द भी नाथपंथी हैं
( डा पीताम्बर दत्त बर्थवाल, डा विश्णु दत्त कुकरेती, डा गोबिंद चातक , डा कुसुम पांडे , डा शिवानन्द नौटियाल की पुस्तकों से संकलित )
Copyright @ Bhishma Kukreti bckukreti@gmail.com
namaskar kukreti ji,
ReplyDeleteread your article on Nathpanthi Deities of Kumaun and Garhwal
i like it.
if you have more reading material on it then pls do post or mail it for me..as i am the enthusiastic person to read these kind of stuffs to know more of our tradition and culture..
sir ,
ReplyDeleteek baat kehni hai ki aap ne likha hai ki ग्विल्ल की पूजा मंदिर में भी होती है , eska matlab kya hai, wo parm ishwar hai, we paar bram hai, wo shiv avtar hai, wo har kahi hai, to eska matlab hai ki aap unhe ejjat nahi dete, tabhi ye line likhe, jisme bhi ka prayog kiya hai.........
regards
Pratap Singh Rawat
नरसिंह देवता देवभूमि उत्तराखंड में काफी प्रसिद्ध है। जानकारी पहचाने के लिए धन्यवाद। आप चाहे तो मेरे ब्लॉग पोस्ट को पढ़ सकते है।नरसिंह देवता
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