गढ़वाली कविता : घन्डूड़ी
मिल दद्दी मा ब्वाल -दद्दी काश मी घन्डूड़ी हुन्दु
उड़ जान्दु फुर्र- फुर्र दूर परदेश भटेय
अपड़ा गौं पहाड़ जनेय
फिर उडणू रैन्दू वल्या-पल्या सारियुं मा
डालियुं - पन्देरौं मा
खान्दू काफल -हिन्सोला
किन्गोड़ा- तिम्ला और बेडु
पिन्दू छुंयाल धारा मगरौं छंछडौं कु पाणी
बैठ्युं रैन्दू छज्जा तिबारी खालियाँण
या फिर चौक - जलोठौं मा
दद्दी ल बवाल - म्यार लाटा
तेरि भी ब्बा सदनी बकि बात की छुयीं रैंदी
ब्वलण से भी बल कबही कुछ हुन्दु चा ?
दस साल भटेय वू निर्भगी सुबेर शाम
बिगास बिगास बसण लग्यां छीं
कक्ख हुणु च वू बिगास ?
और कैकु हुणु चा ?
जरा बतै धौं
रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सिंगापूर प्रवास से ,सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : म्यार ब्लॉग हिमालय की गोद से (http://geeteshnegi.blogspot.com/ )
उड़ जान्दु फुर्र- फुर्र दूर परदेश भटेय
अपड़ा गौं पहाड़ जनेय
फिर उडणू रैन्दू वल्या-पल्या सारियुं मा
डालियुं - पन्देरौं मा
खान्दू काफल -हिन्सोला
किन्गोड़ा- तिम्ला और बेडु
पिन्दू छुंयाल धारा मगरौं छंछडौं कु पाणी
बैठ्युं रैन्दू छज्जा तिबारी खालियाँण
या फिर चौक - जलोठौं मा
दद्दी ल बवाल - म्यार लाटा
तेरि भी ब्बा सदनी बकि बात की छुयीं रैंदी
ब्वलण से भी बल कबही कुछ हुन्दु चा ?
दस साल भटेय वू निर्भगी सुबेर शाम
बिगास बिगास बसण लग्यां छीं
कक्ख हुणु च वू बिगास ?
और कैकु हुणु चा ?
जरा बतै धौं
रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सिंगापूर प्रवास से ,सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : म्यार ब्लॉग हिमालय की गोद से (http://geeteshnegi.blogspot.
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