जक्ख रस अलुंण्या राला
और निछैंदी मा व्हाला छंद
कलम होली कणाणि दगडी
वक्ख़ लोक-भाषा और साहित्य कु
क्या व्हालू ?
जक्ख अलंकार उड्यार लुक्यां राला
और शब्दों फ़र होली शान ना बाच
जक्ख गध्य कु मुख टवटूकु हुयुं रालू
और पद्य की हुईं रैली फुन्डू पछिंडी
वक्ख़ लोक -भाषा और साहित्य कु
क्या व्हालू ?
जक्ख जागर ही साख्युं भटेय सियाँ राला
और ब्यो - कारिज मा औज्जी
दगडी ढोल-दमो अन्युत्याँ राला
वक्ख़ लोकगीत तब बुस्याँ -हरच्यां हि त राला
और बिचरा लोग -बाग तब दिन -रात
वक्ख़ मंग्लेर ही खुज्याणा राला
वक्ख़ लोक -भाषा और साहित्य कु
क्या व्हालू ?
वक्ख़ लोक -भाषा और साहित्य कु
क्या व्हालू ?
रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित, )
अस्थाई निवास: मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी: ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड
स्रोत : म्यारा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " मा पूर्व-प्रकशित
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