गढ़वाली कविता : गंडेल
वे थेय नी च अब डैर
कैकी भी
ना पटवरी की
ना प्रधनौं की
ना पंचेत -प्रमुखौं की
न मंत्रियुं की
ना बड़ा बड़ा साब संतरियूँ की
किल्लेय की सब दगडिया छीं वेक्का
कन्ना छीं सब वेकि ही अज्काल जै जयकार ,
गंडेल जण अल्लगै की मुंड सर्र सर्र
बोलणा छीं दगडी
जै भ्रष्टाचार !
जै भ्रष्टाचार !
जै भ्रष्टाचार !
रचनाकर :गीतेश सिंह नेगी ,सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घुगुती घुर " से
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