होंणु छ पर यनु नि,
कि हमारा तुमारा गौं मा,
द्वारू फर लग्याँ ताळा,
हमारा हाथुन खुलि जौन,
जौं घरु मा नि लग्यन अजौं,
ऊ सदानि आबाद रौन.
जब उत्तराखंड बणि थौ,
सब्यौं का मन मा जगि थै,
सतत विकास की आस,
खेत, खल्याण, गौं, गौळा मा,
होलु मन चैन्दु विकास .
जबरि बिटि हमारू राज्य बणि,
सच मा नेतौं अर चमचौं कू,
होंणु छ असल मा विकास,
जनता जस की तस छ,
हबरि होंणी मन मा निराश.
असली विकास तब होलु,
जब प्रवासी उत्तराखंडी,
अपणा राज्य अर गौं लौटला,
खाला पहाड़ कू कोदु, झंगोरू,
जख्यांन साग पात छौंकला.
आली रौनक गौं गौं मा,
हैन्सलि नीमदरी, तिबारी, डिंडाळि,
होलु छोरौं कू किब्लाट,
या छ सच्चा विकास की झलक,
शायद आपन भी बिंग्याली.
इच्छा सब्यौं की या ही छ,
अपणा राज्य कू हो विकास,
दगड़ा मा उत्तराखंड कू पर्यावरण,
सुरक्षित रौ सदानि या छ आस.
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित १६.३.२०१०)
जन्मभूमि: बागी-नौसा, चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल.
(पहाड़, पत्थर और पानी,
ये है अपने उत्तराखंड की निशानी-"ज़िग्यांसु")
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments