पहाड़ प्यासा रहने लगा है,
सूखते जल स्रोतों के कारण,
पहाड़ पर जब पीने को,
नहीं मिलेगा पानी,
उत्तराखंड के विकास की कल्पना,
कैसे हो सार्थक?
सच में है बेमानी.
जल है तो जीवन है,
ये सच है, नहीं कहानी,
उत्तराखंड के विकास के लिए,
पहाड़ों पर रोकना होगा पानी.
पहाड़, पत्थर और पानी,
उत्तराखंड की ये हैं निशानी,
डगमगाए नहीं अस्तित्व इनका,
जंगलों में झलके जवानी.
अनियंत्रित विकास प्रकृति को,
लीलता और चुनौती देता है,
जो पहाड़ में खलल पैदा करेगा,
लोभी मानव लालच में आकर,
लीलेगा पहाड़ का पर्यावरण,
क्या पर्वतजन ये सब,
किसके विकास के लिए सहेगा,
देखो टिहरी विस्तापितों को.
विकास एक सतत प्रक्रिया है,
जो उत्तराखंड में, आज है जारी,
मानव संसाधन का विकास हुआ,
पहुँच गए सब शहरों की ओर,
अब लौटना है लाचारी.
चुनौती है मानव अस्तित्व के लिए,
पहाड़ पर जल संकलन हो,
क्योंकि पहाड़ पर चाहिए,
"विकास के लिए पानी",
इसके बिना विकास हो,
कहता है कवि "ज़िग्यांसु"
सच नहीं, सचमुच है नादानी.
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित १९.३.२०१०)
(मुझे पर्वतों से प्यार है...मैं यही कहता हूँ)
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