ऋतु बसंत के रंग में,
रंग गया है,
क्योंकि, रंग बिरंगे फूल,
खिले हुए हैं सर्वत्र,
पाखों,गाड, गदनों और,
गांवों की सारों में,
बह रही है बसंत की बयार.
विचरण कर रहे हैं,
देवभूमि के देवता,
पर्वत शिखरों और,
ताल, बुग्यालों पर,
जहाँ बह रही है,
धीमी-धीमी बासंती हवा,
मन को मदहोश करने वाली.
कहीं दूर से देख रही हैं,
हिंवाली काँठी जैसे,
चौखम्बा, त्रिशूली, पंचाचूली,
नंदाघूंटी, केदारकांठा,
आपस में अंग्वाल मारकर,
हमारे पहाड़ पर छाए बसंत को,
जिसने उन्हें आकर्षित कर लिया है,
लेकिन, वो बेखबर है.
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्विधिकार सुरक्षित १४.३.२०१०)
E-mail: j_jayara@yahoo.com
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