पीली साड़ी पहन,
ऋतु बसंत में,
पहाड़ के एक पाखे में,
काट रही वह घास,
सोच रही लौटेंगे वे,
बहुत दिनों से दूर हैं,
बसंत की बयार आने से,
मन में जगि है आस.
कोलाहल करते पोथ्ले,
तोता, घुघती, हिल्वांस,
फूलों के लिए फूल्यारी,
घूम रहे खेतों और पाखों में,
फूल रही है सांस.
खिले हैं सर्वत्र बण में,
साखिनी, बुरांश,गुरयाळ,
ऋतु बसंत के रंग में रंगे,
हमारे प्यारे मुल्क
रंगीलो कुमाऊँ,
और छबीलो गढ़वाळ.
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित १०.३.२०१०)
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल.
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