बसंत
हर बार चले आते हो
ह्यूंद की ठिणी से निकल
गुनगुने माघ में
बुराँस सा सुर्ख होकर
बसंत
दूर डांड्यों में
खिलखिलाती है फ्योंली
हल्की पौन के साथ इठलाते हुए
नई दुल्हन की तरह
बसंत
तुम्हारे साथ
खेली जाती है होली
नये साल के पहले दिन
पूजी जाती है देहरी फूलों से
और/ हर बार शुरू होता है
एक नया सफर जिन्दगी का
बसंत
तुम आना हर बार
अच्छा लगता है हम सभी को
तुम आना मौल्यार लेकर
ताकि
सर्द रातों की यादों को बिसरा सकूं
बसंत तुम आना हर बार॥
Copyright@ Dhanesh Kothari
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