लिखता हूँ गुनगुनाता हूँ,
कल्पना में डूबकर,
इस कदर खो जाता हूँ,
फिर अहसास करता हूँ,
जैसे चंद्रकूट पर्वत पर बैठ,
चन्द्रबदनी मंदिर के निकट,
बजा रहा हूँ बांसुरी भी.
बुरांश है मुस्करा रहा,
हिमालय को दिखा रहा,
देख लो पर्वतराज हिमालय,
मेरा रंग रूप कैसा है.
निहार कर संवाद उनका,
मेरे कवि मन में भाव आया,
हँसते हुए हिमालय ने,
बुरांश को यूं बताया,
कालजयी है अस्तित्व मेरा,
तू तो आता है जाता है,
शिवजी को प्रिय हैं हम दोनों,
रंग रूप क्यों दिखता है.
दोनों का संवाद निहार कर,
फिर उत्तराखंड गीत गया,
"ज़िग्यांसु" ने आपको भी,
कल्पना करके बताया.
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित १४.२.२०१०, ३.३० बजे)
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी.चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल,
उत्तराखंड.
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