जब कैथी कवी चीज़ पसंद नि आदी, त, वो बातो बतंगड़ बाणै की अपणी मनै भनास कन निकलद , इत आप सबी जंणदन ! क्वी ताना मारी मरी निकलद , त क्वी , सु णे- सुणे, ! क्वी सुनै सुनै की , त क्वी बना बणे बणे .. की ! अर जू इनु काम क्या करदा ... ! वे आदिम थै इन कनम संतोष भी आंद !
हमरा गौं माँ जुमली कु नायु नायु ब्यो ह्वै ! सासूल बोली , " ब्वारी ... भोल सेरा सैणु जाण ! कमीज सुलार ना ... धोती पैरी जाण बाबा ! आर हां वेसी पैली " पाणी की कुल ' भी ठीक कन .. // सुबेर ज्ररा सिंक्व्ली उठी जय हो ! " व बिचरी फजल लेकी उठ अर सीध गे कूल थै ठीक कनु ! कूल दिखया त जगा जगा बीती छै टूटी ! जनी वीं पाणीम घुटु तेरी त धोती गीली सी हुण बैठी ! वीन सोची की गीली हुण त अच्हू च की ई थै घुण्ड घुण्डओ तक उठाई की बंधी देऊ ! स्यु वीन उन काई अर धोती फील्यु से उबू कैकी घुन्ड़ो तक बेटी दे !
काम करद करद द्फारी ह्वेगी ! ये दौरान गौं का पधान जी घर छा आणा ! जनि उन नी ब्योली थै वीकी धोती जवा घुंडा घुंडा मथी तक छै जई ! वी थै देखी भारी गुस्स्म फिगारीद फिगारीद सीध गौका पनचैत जैकी धत लगे बुन बैठा ... " अरे गौवालो सुणा ... ब्यो केकु नि हवे .. साबू क्त ह्वै ! ये जुमली कु क्या बाकि बातो ब्यो ह्वै ! वेकि ब्वारील त़ा, श्रम लाज बेची धैरियाल ! सुसुर जिठणु जमा नि दिखणे ! आज तक हम्रर गौमा क्य, कुल ठीक नि ह्वै चै क्या?
तबी कैल पूछी ' अजी पधान्जी . क्य हवाय ? क्यों छा इत्गा गुसम ? वे जुमली की ब्योरिल क्य कैदे इनु , ! "
कैदे अरे ... ..मित बुनू छो.., गौ इनमे बिग्ड्दा ... अगर जू अभी नि सुधरे जा ! त बादम भारी बात ह्वै जाली ! गौं का लोगक कथा ह्वया ! सबी छा
पुचणा सची क्य कई होलू वे ब्वोरिल इन की तबरी जुमली ब्योई भी अगी .. ! पधान जई से बोलन लेगी .. " क्य छा बुला लाब काब .. ! क्युओ छा बे बातो ब बतनगड़ बनाणा ! .. हे गौ वालो मिनी अपणी ब्वारी कु बोली की तू आज सलवार कुर्ता ना धोत्ती परी जै .. किलैकी स्यरा सैद अर कूल ठीक करद वो पाणीम
भीगी जाला ! ये से अछु की तू धीति पैरी जै ! धोती ताहि हम घुंडा हुन्दो तक त उठाई की कामत कई सकदा ना.. !
" सब्युन एक स्वरमा बोली .. हां ..हां ...., किले ना.. किले ना ...! आजतक तक हम भी त इनी करी की अवा ! वी ब्वारिल इनु क्य नौ काम कैदे जू यु पधान जई थै बुरु लगी गे ! " देखा पधान जई आप बे बात पर छा नाराज हुणा .. नाराज हुणों यु क्वी तरिका नि ? आप ताहि अछु नि लगी त इतका हला कैनी की क्य जरूरत चै ! जुमली का ग़म जांदा अर बुल्ड की बिता इनु काम ठीक नी नई नई ब्योरी कु त वू बी समझी जादू अर बात भी रैजादी !
पराशर गौर
दिनाक २ फरबरी रात ९ ५३ २०१०
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