वृक्षों ने त्याग दिए पुराने पात,
भांप लिया आने वाला है,
मनभावन ऋतुराज बसंत,
लेकर धरती पर अपनी बारात.
कोई नायिका पहनेगी पीली साड़ी,
पिया को पास बुलाने को,
जब आएगा बसंत, तब प्रियतम,
आतुर होगा उसके पास आने को.
बसंत के आने से पहले,
पहाड़ पर ह्युंद में ही आ गई,
फ्योंलि सज धजकर अपने मैत,
उन बेटी ब्वारियों से मिलने,
जो आई हैं ससुराल से मैत.
पय्याँ, आरू, बुरांश, गुर्याळ,
खिलेंगे जब पहाड़ पर,
धरती पर उतर आये बसंत,
और उसकी मनमोहक अदाएं,
रिझायेंगी कवि मित्रों और "ज़िग्यांसु" को,
एक रैबार आएगा पहाड़ का,
आओ..मौळ्यार के रंग में रंग जाओ,
पहाड़ आकर..अपने गाँव,
"बसंत" दूल्हा बनकर आया है.
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित, ५.२.२०१०)
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड.
दूरभास:९८६८७९५१८७
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