याद ऐगि ऊँ दिनु की,
या खबर सुणिक,
जब सैडि रात होन्दि थै बरखा,
अर सुबेर उठिक देख्दा था,
ह्यूं पड़युं चौक, सारी, डांडी, कांठयौं मा,
खुश होन्दु थौ मन हेरि हेरिक,
देवभूमि उत्तराखण्ड मा.
आस जगणि छ मन मा,
खूब होलि फसल पात,
मसूर, ग्युं, लय्या फूललु,
ज्व छ बड़ी ख़ुशी की बात.
बस्गाळ अबरखण ह्वै,
महंगाई सी टूटणि छ कमर,
ह्युंद की बरखा वरदान छ,
नि रलि महंगाई फिर अमर.
पड़िगी ह्यूं बल उत्तराखंडी भै बन्धु,
औली, हेमकुंड, चोपता, तुंगनाथ, जोशीमठ,
धनौल्टी, त्रियुगीनारायण, ऊखीमठ,
खुश ह्वैगिन देवी देवता जख चार धाम,
डांडी, कांठयौं मा चमलाणु छ घाम,
सच बोलों त जन चमकदी छ चाँदी.
अपणा मुल्क की जब मिल्दि छ,
जब यनि भलि खबर सार,
आशा कर्दौं आप भी खुश होन्दा होला,
"देवभूमि मा पड़िगी बल ह्यूं"
जू ल्ह्यालि खुशहालि अपार.
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित १०.२.२०१०)
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी.चन्द्रबदनी, टेहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड.
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments