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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, February 24, 2010

भरोसा कू अकाळ

जख मा देखि छै आस कि छाया
वी पाणि अब कौज्याळ ह्‍वेगे
जौं जंगळूं कब्बि गर्जदा छा शेर
ऊंकू रज्जा अब स्याळ ह्‍वेगे
घड़ि पल भर नि बिसरै सकदा छा जौं हम
ऊं याद अयां कत्ति साल ह्‍वेगे
सैन्वार माणिं जु डांडी-कांठी लांघि छै हमुन्
वी अब आंख्यों कू उकाळ ह्‍वेगे
ढोल का तणकुला पकड़ी
नचदा छा जख द्‍यो-द्‍यब्ता मण्ड्याण मा
वख अब बयाळ ह्‍वेगे
जौं तैं मणदु छौ अपणुं, घैंटदु छौ जौं कि कसम
वी अब ब्योंत बिचार मा दलाल ह्‍वेगे
त अफ्वी सोचा समझा
जतगा सकदां
किलै कि
अब,
दुसरा का भरोसा कू त
अकाळ ह्‍वेगे

copyright@धनेश कोठारी

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