बैठते थे बुजुर्ग जहाँ पर,
मिलकर हुक्का गुड़गुड़ाते,
बातें करते, सुनते सुनाते,
भाई चारे की बात बताते.
न्याय का मसला जब आता,
पंच परमेश्वर न्याय दिलाते,
चहल पहल हर वक्त रहती,
हर पल हँसते खिलखिलाते.
क्या बताएं, वक्त बदला,
बूढ़े हो गए अपने गाँव,
"चौपालों पर चुप्पी" छाई,
पड़ती है वृक्ष की छावं.
निहारी थी कवि "ज़िग्यांसु" ने,
अपने गाँव में चौपाल,
लगाते थे मंडाण वहां पर,
देवी देवताओं का हर साल.
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित, २१.२.२०१० ७.४५ सायं)
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