एक दिन जब आफत आई,
कुल देब्तान किल्किक,
कौम्पि कौम्पिक बताई,
सुण भगत त्वे फर,
लग्युं छ मेरु दोष,
कै बार चिनाणु दिनि मैन,
पर त्वे सने नि आई होश.
पैलि त तू मेरु मंडलु,
घसि लिपिक घड्याळु लगौ,
कै सालु बिटि नि दिनि पूजा,
अपणा मन मा आस्था जगौ.
मैन बोलि देब्ता,
अब मैं खाण कमौण का खातिर,
घर बार छोड़िक छौं ये परदेश,
देवभूमि मा देब्ता जनु थौ,
अब यख बणिग्यौ खबेस.
संकल्प छ मेरु देब्ता,
जब मैं अपणा गौं उत्तराखंड जौलु,
देखलु अपणि जन्मभूमि,
दया दृष्टि रखि मै फर,
जरूर तेरु घड्याळु लगवौलु.
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित ११.२.२०१०)
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टिहरी गढ़वाल(उत्तराखण्ड)
संकल्प छ मेरु देब्ता,
ReplyDeleteजब मैं अपणा गौं उत्तराखंड जौलु,
देखलु अपणि जन्मभूमि,
दया दृष्टि रखि मै फर,
जरूर तेरु घड्याळु लगवौलु.
Kash aisa sankalp sabhi kar pate....