तुम,
मुझ से पूछते हो की
मेरी मुठी क्यों भिंची है?
मेरे आँखों में अंगारे क्यों है ?
मेरे स्वासो में उच्च वास कैसा ?
तो ...
उसका एक ही जबाब है .."तुम "
तुमने मेरे पेट पर लात मरकर
मेरे मुह का कौर छीन कर
मुझे ...
दर बदर भटकने पर नह्बुर किया है !
फिर भी पूछते हो की
मेरे आंखो में अंगारे क्यों ?
मेरी मुठीया क्यों भिची है ?
जबतक मुझे ...
मेरे सवालों का जबाब नहीं मिलता
तब तक ये ..
एसे ही रहेंगी तुम्हे घरती
सवाल करती !
पराशर गौर
१ फरबरी २०१० दिनमे १.३० पर
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