"सी निरभगी"
Garhwali Poetry By: Sunial Bhatt
/**सुनील भट्ट**
--------------------अपणु बाँठाखू जुट्ठू थकलू, म्यार जना सरक्या गैन।
'सी निरभगी'हे! माटू डऽलणकू बदल, हौरी भी झैऽल भड़क्या गैन ।
'सी निरभगी'
'सी निरभगी'हे! माटू डऽलणकू बदल, हौरी भी झैऽल भड़क्या गैन ।
'सी निरभगी'
"बेटा यनी लती लगलीऽऽ" बस, इतग्याई बोली छ्या मिन,दा, कीड़ा प्वाड़ला तौंकी खुट्यूं पर !
हे ब्वे म्यारू एक खुट्टू मड़क्या गैन
'सी' निरभगी'
हे ब्वे म्यारू एक खुट्टू मड़क्या गैन
'सी' निरभगी'
खुट्टा पकड़ी दिंन, मिन ऊंका चम कैक,हे छुचों नि लिजा मेरी जमा पूंजी नि लिजा..
दा, नि खाली तौंकी गिच्ची ऐंसू की नवाण!
म्यारू थौला, म्यारू मुख अग्नै,खाली कैक झड़क्या गैन
'सी निरभगी'
दा, नि खाली तौंकी गिच्ची ऐंसू की नवाण!
म्यारू थौला, म्यारू मुख अग्नै,खाली कैक झड़क्या गैन
'सी निरभगी'
हे निरभग्यौं, छोड़ी द्या मिथै अब त छोड़ी द्या।
कणाणु रौं "मि" फगतऽऽ..
दा मेरी ह्या लगली तौं पर, तमाशु दिखलु मि तौंकू!
जांद-जांद म्यारू मुख पर म्वासू लप्वड़्या गैन
'सी निरभगी'
कणाणु रौं "मि" फगतऽऽ..
दा मेरी ह्या लगली तौं पर, तमाशु दिखलु मि तौंकू!
जांद-जांद म्यारू मुख पर म्वासू लप्वड़्या गैन
'सी निरभगी'
हे राम दा मि गाणी कनू मि , हदद कारला मेरी मदद कारला,दा झगुली टुपली लगली तौंकी भी डाऽऽल !
उल्टू मिथैंई हड़्क्या गैनी
'सी भी निरभगी'स्वरचित/** सुनील भट्ट** 03/08/16
उल्टू मिथैंई हड़्क्या गैनी
'सी भी निरभगी'स्वरचित/** सुनील भट्ट** 03/08/16
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"मेरी ब्वै(माँ) का खैरी का आँसू"
Poetry By: Sunial Bhatt
/**सुनील भट्ट**
(एक गढवली रचना सभी "माँवों" को समर्पित)
------------------------------ ------------------------------ --------मेरी "ब्वै" का खैरी का आँसू छन ई,म्यरा संभाली का धरयाँ छन ई, अपणी आँख्यूं मा।
अपणी खैरी काटणा कु।
(एक गढवली रचना सभी "माँवों" को समर्पित)
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अपणी खैरी काटणा कु।
अपणु बाऽलापन बटै ब्वै थै खैरी खांदू द्यखुदू ग्यौं मि,अर यूँ आँसू थै एकैक कैक संभल्दी ग्यौं मि।
हमरा दुख मिटाणा का बाना खूब घिस्या ब्वै,गरीबी का पाटों का बीच खूब पिस्या ब्वै,हमथैं गुड़ा की ठुँगार देकी, अफु फीकी चा पेद्या,अफु बाड़ी ख्या ब्वैन अर हमथै भात कु गफ्फा देद्या।
ग्वीराऽला कू डाऽल मा बटी, पत्त भुयाँ प्वाड़,रूणी रयाई सरया रात बैठीक एक कुणा कु छ्वाड़।
वीं खैरी का आँसू छन ई,म्यरा अपणी आँख्यूं मा संभाली का धरयाँ छन ई।
ग्वीराऽला कू डाऽल मा बटी, पत्त भुयाँ प्वाड़,रूणी रयाई सरया रात बैठीक एक कुणा कु छ्वाड़।
वीं खैरी का आँसू छन ई,म्यरा अपणी आँख्यूं मा संभाली का धरयाँ छन ई।
पटऽला सरीन लुखुंका ब्वैन भारू मुन्ढुमा ल्यान्दी देखी,गात की ध्वतड़ी पस्यौ मा, खूब कैकी तरपान्द देखी।
खुदेड़ गीत सुणी ब्वै थेै, मैत्यौं भेंटेकी रौंदी देखी,
"बाबा" थै याद कैकी, यखुली-यखुली सिसकांदी देखी।
मुन्डरू मा भी पाणी कु बंण्ठा, नांगा खुट्यूँ ल्याँदू देखी,मुन्ढुमा झुल्ला बाँदी ब्वैथै पीड़ा मा कणादी देखी।
वी खैरी का आँसू छन ई,म्यरा अपणी आँख्यू मा संभाली का धरयाँ छन ई।
खुदेड़ गीत सुणी ब्वै थेै, मैत्यौं भेंटेकी रौंदी देखी,
"बाबा" थै याद कैकी, यखुली-यखुली सिसकांदी देखी।
मुन्डरू मा भी पाणी कु बंण्ठा, नांगा खुट्यूँ ल्याँदू देखी,मुन्ढुमा झुल्ला बाँदी ब्वैथै पीड़ा मा कणादी देखी।
वी खैरी का आँसू छन ई,म्यरा अपणी आँख्यू मा संभाली का धरयाँ छन ई।
अपणु माथाकु ढिकणु बी ब्वैन, हमुरू मथि डाऽल द्या,पुरूणी ध्वतड़ी दुवरू कैकी, सरया रात काटी द्या।
गौड़ी मार बाघन, बुख्ठया थै भी लीग्या,स्वीणा टुटीन ब्वै का, खूब कैकी फटकरैग्या।
कैन बोली तुम पर देव्ता, कैल छ्वलै द्या,पुछ्यरा मा भाग ब्वै, वैन भी वी दोष बतै द्या।
साग जतास कु पैसा नि छ्या, पर पैंछू-उधार कैकु ब्वैन, देव्ता भी पुजै द्या।
वीं खैरी का आँसू छन ई,म्यरा अपणी आँख्यूं मा धरयाँ छन ई।
गौड़ी मार बाघन, बुख्ठया थै भी लीग्या,स्वीणा टुटीन ब्वै का, खूब कैकी फटकरैग्या।
कैन बोली तुम पर देव्ता, कैल छ्वलै द्या,पुछ्यरा मा भाग ब्वै, वैन भी वी दोष बतै द्या।
साग जतास कु पैसा नि छ्या, पर पैंछू-उधार कैकु ब्वैन, देव्ता भी पुजै द्या।
वीं खैरी का आँसू छन ई,म्यरा अपणी आँख्यूं मा धरयाँ छन ई।
मेरी ब्वै का खैरी का आँसू छन ई,हाँ मेरी ताकत छन ई,जू मिथै जीणू सिखांदिन,हालातों दगड़ी लड़नू सिखांदिन।
सै गल्त कू फर्क सिखांदिन,अर खैरी खाण सिखांदिन।
जब कभी टूटी जांदू शरीर, दिक्क ह्वै जांद
आख्यों अग्नै अन्ध्यारू छ्या जान्द
मेरी ब्वै का आँसू म्यरा आँख्यू का अग्नै, खड़ा ह्वै जान्दिन वाढु सी, पहाड़ बणीकी
रोक दिदान म्यरा आँसू
नि ध्वलण दिंदा भैर।।
सै गल्त कू फर्क सिखांदिन,अर खैरी खाण सिखांदिन।
जब कभी टूटी जांदू शरीर, दिक्क ह्वै जांद
आख्यों अग्नै अन्ध्यारू छ्या जान्द
मेरी ब्वै का आँसू म्यरा आँख्यू का अग्नै, खड़ा ह्वै जान्दिन वाढु सी, पहाड़ बणीकी
रोक दिदान म्यरा आँसू
नि ध्वलण दिंदा भैर।।
/**सुनील भट्ट**
19/08/2016
गुड़ाकी डैऽली"
Garhwali Poetry by: Sunil Bhatt
/**सुनील भट्ट**
सची दगड़्यौं वा गुड़ाकी की डैली, कतग्या मिठ्ठी होंदी छै।
हमरा रिश्तों मा मिठ्याण रौलै देंदी छै।
हमरा रिश्तों मा मिठ्याण रौलै देंदी छै।
सुख दुख बटेंदा छ्या, वीं गुड़ाकी डैली की दगड़ी,मेला थौलौं मा दिखेंदा छ्या लोग,एक हैंकैकु हथ्यौं थै पकड़ी।
हे राम!.....अब कख...... ?बड़ी कुटमदारी बंटै गैनी,रिश्ता अपड़ा अपड़ा ढंगौं से छटै गैनी
अब ता दूर का रिश्ता, दूर की बात, स्वारों मा आपस मा ही चा खटपट।
जरा कैथे खांदी पेंदी देखी, मुखड़्यौ मा प्वड़ी जांणी चा चुकापट।।
अब ता दूर का रिश्ता, दूर की बात, स्वारों मा आपस मा ही चा खटपट।
जरा कैथे खांदी पेंदी देखी, मुखड़्यौ मा प्वड़ी जांणी चा चुकापट।।
पैली मुखड़ी द्यखणाकु, बैठ्याँ रैंदा छ्या सारा,अब एक दूसराकु मुख द्यखदी, मुकू घुमै दिदंन।
अर क्वी ऐ बी ग्या मुखाकु अग्नै अचाणचक,ता मस्सकैकी गिच्ची मड़क्या दिदंन।
अर क्वी ऐ बी ग्या मुखाकु अग्नै अचाणचक,ता मस्सकैकी गिच्ची मड़क्या दिदंन।
अछै कख हर्ची होला ऊ पुरणा भयातौं वाला दिन!
जख हर्ची होली वा भेली(गुड़) अर रिश्ता भी।
अब ता रूप्या ह्वैगैन लुखौं मा
बनी बनीकी मिठै ऐग्यनी बाजारों मा
जख हर्ची होली वा भेली(गुड़) अर रिश्ता भी।
अब ता रूप्या ह्वैगैन लुखौं मा
बनी बनीकी मिठै ऐग्यनी बाजारों मा
मिठैयौं का बाजार सज्याँ छन,झणी कन मिठै छन जू, रिश्तों मा खट्याण कना छन।
रंग बिरंगी मिठै, रंग बिरंगी रंग्यौं मा लप्वड़्याँ छन
छ्वटी मिठै, बड़ी मिठै, खुशी की रंगाकी मिठै
दुखाकी, मतलबाकी रंगाकी मिठै,दया, भीख बड़अदमै की रंगाकी मिठै।
फर्जाकी, लाचारी की, अंग्रेजी मिठै बी चा फोर्मलटी की रंगाकी
और बी झणी कै कै रंगों मा रंगी चा मिठै।
रंग बिरंगी मिठै, रंग बिरंगी रंग्यौं मा लप्वड़्याँ छन
छ्वटी मिठै, बड़ी मिठै, खुशी की रंगाकी मिठै
दुखाकी, मतलबाकी रंगाकी मिठै,दया, भीख बड़अदमै की रंगाकी मिठै।
फर्जाकी, लाचारी की, अंग्रेजी मिठै बी चा फोर्मलटी की रंगाकी
और बी झणी कै कै रंगों मा रंगी चा मिठै।
अब कनु भी क्या च तब
सोची समझी, देखी भाली लेल्या धौं, अपणा अपणा हिसाब से
अपणी मर्जी का मालिक छां तुम।
ले जावा तौं चमचमा डब्बों मा बंद कैकी
जै पर भैर बटै, सुन्दर आखरौं मा ल्यख्यूँ चा
" कि बल जब जाणु चा
त कुछ न कुछ त लिजाणुही चा"
सोची समझी, देखी भाली लेल्या धौं, अपणा अपणा हिसाब से
अपणी मर्जी का मालिक छां तुम।
ले जावा तौं चमचमा डब्बों मा बंद कैकी
जै पर भैर बटै, सुन्दर आखरौं मा ल्यख्यूँ चा
" कि बल जब जाणु चा
त कुछ न कुछ त लिजाणुही चा"
/**सुनील भट्ट**
24/08/2016
24/08/2016
Copyright @ Sunil Bhatt
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