Critical and Chronological History of Modern Garhwali (Asian) Poetry –- 307
Literature Historian: Bhishma Kukreti
Modern Garhwali Verses Songs, Poems
- (गढ़वाली कविता )
- (गढ़वाली कविता )
रचना -- राकेश मोहन थपलियाल ( जन्म 1953 , टिहरी गढ़वाल )
Poetry by – Rakesh Mohan Thapliyal -
Critical and Chronological History of Modern Garhwali (Asian) Poetry –
-साहित्य इतिहास , इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती
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सवाद
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Garhwali Poetry by: Rakesh Mohan Thapliyal
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कब्बी बिटिन नि बुकाईन बुख़णा,तिल अर, भंगजीर मिल्यां॰
चाखी नी पिन्ना कु साग,नि खाई पाड़ी पालिंगा की काफली॰
राई की भुज्जी अर तोर की दाल,
जख्या म छौंक्यां पिंडालु दगड़ी,भुटीं लाल मर्च ॰
अर किनगोड,हिंसर,काफल कि त
स्याणी भी केक करण यख ?॰
अब यूं कु समझाऊ कि, मेरा मुलक म,
आट्टा अर बासी रोट्टयों कु भी बणदु थौ साग॰
वनु त यख ,खोजण पर, कै हैक्का नौ से, मिल जाँदु, कोदु, झंगोरू, गैथ अर कई धाणी॰
पर नि औंदु गैल्या वु स्वाद, वा पहाड़ी रसाण ,
बाबाजी का सौं, मैन तुम म झूठ किलै बोलण ?
मैन एकदिन पुछि दुनिया का मशहूर बाबर्ची ----- से,
हे बेटा, बूढेंदी बखत क्या मनखी कु गिच्चू खराब व्हेजाँदु होलु ?
मेरा नौन्याल भी बोलदान,पता नी बाबाजी कनु पकौंदा था तुमारी भी सदानी रैगिन यई छुईं ?
वै लठ्याला खानसामा न बोलि, चचा बुरु नि मान्यान,
सवाद गिच्चा की गैली, माटा अर पाणी से भी औंदु ?
कब्बी बिटिन नि बुकाईन बुख़णा,तिल अर, भंगजीर मिल्यां॰
चाखी नी पिन्ना कु साग,नि खाई पाड़ी पालिंगा की काफली॰
राई की भुज्जी अर तोर की दाल,
जख्या म छौंक्यां पिंडालु दगड़ी,भुटीं लाल मर्च ॰
अर किनगोड,हिंसर,काफल कि त
स्याणी भी केक करण यख ?॰
अब यूं कु समझाऊ कि, मेरा मुलक म,
आट्टा अर बासी रोट्टयों कु भी बणदु थौ साग॰
वनु त यख ,खोजण पर, कै हैक्का नौ से, मिल जाँदु, कोदु, झंगोरू, गैथ अर कई धाणी॰
पर नि औंदु गैल्या वु स्वाद, वा पहाड़ी रसाण ,
बाबाजी का सौं, मैन तुम म झूठ किलै बोलण ?
मैन एकदिन पुछि दुनिया का मशहूर बाबर्ची ----- से,
हे बेटा, बूढेंदी बखत क्या मनखी कु गिच्चू खराब व्हेजाँदु होलु ?
मेरा नौन्याल भी बोलदान,पता नी बाबाजी कनु पकौंदा था तुमारी भी सदानी रैगिन यई छुईं ?
वै लठ्याला खानसामा न बोलि, चचा बुरु नि मान्यान,
सवाद गिच्चा की गैली, माटा अर पाणी से भी औंदु ?
(वैकु बाबा भी घरन लैक,जब कखी हैकी जागा पकौंदु थौ, तब वै भी
वख वु स्वाद नि औंदु थौ)
वख वु स्वाद नि औंदु थौ)
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हे मेरा गौं
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Garhwali Poetry by: Rakesh Mohan Thapliyal
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हे मेरा गौं, मै तेरा सौं, मैंन तू नि भुलाई
कुई यनु दिन क्या होलु, जब तू याद नि आई.
कुई यनु दिन क्या होलु, जब तू याद नि आई.
रोटटी-पाणी खैक जब लटकदौं बिछौणा मै तेरी खोज म फिर आफु म भटकदौं .
मन का आँखा खोलदा,स्मृतियों कु किवाड़, सपनों का बिना दिखेंदु, पुराणु संसार.
तिबारी म बैठयूं बाबा, पेणु छ तमाखु. गुठयारा म बई लगीं, सोरन पर मोळ .
डिंडयाला म बैठिं भुलि, काटणी छ भुज्जी, धौला-बुल्ला रिंग्ताणा छन, तै खाडू देखीक.
बाखडा भैंसा कु मचायूं छ अडाडोट, बखत घास कु व्हेगी, भूक लगीं भूख.
गोसा कु धुवां उठीक, पहुंचीगे अकाश, सूरज नारैण न पकड़ी डांडों की बाट
खल्याण म छोरों की मची धमा चौकड़ी, डाला मति पोथलों भी फुटी बरडोट.
जा बेटी तू पाणिक जा, मै आट्टू ओलदु रुमक पड़गी छोरी,कबरी पकौलु ?
रोटटयों गैली माँ की चुड्यों कु छमणाट, अब कुछ नि रई बाकी, रैगि खाली याद.
हे मेरा गौं, मै तेरा सौं, मैंन तू नि भुलाई,,,,,
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फिर पाई नि वो स्वाद
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Garhwali Poetry by: Rakesh Mohan Thapliyal
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वू कोदा-झंगोरा का दिन
अर सौंण की खीर जनि रात,रुपया त बतेेरा कमेंन जिन्दगी
पर अब नि रै वा बात ?
अर सौंण की खीर जनि रात,रुपया त बतेेरा कमेंन जिन्दगी
पर अब नि रै वा बात ?
उकाळ- ऊँध्यार पर भी
थकदा नि था खुट्टा,अब मोटरु म बैठिक
भी सुन्न पड़दु गात ?
थकदा नि था खुट्टा,अब मोटरु म बैठिक
भी सुन्न पड़दु गात ?
थौला -मेलों की पकोड़ी,जलेबी की रैगी याद, बड़ी दुकान्यों पर भी
फिर पाई नि वो स्वाद।
फिर पाई नि वो स्वाद।
वु पाथलों कु भात,पुड़खों से चूँदु साग ।
काखड़ी-मुंगरर्यों कु
लगी होलु शराप
काखड़ी-मुंगरर्यों कु
लगी होलु शराप
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मैं डांडा कु बथों, तू चौमासा की गाड
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Garhwali Poetry by: Rakesh Mohan Thapliyal
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मैं डांडा कु बथों,तू चौमासा की गाड,मै भी बग्यों, तू भी बगि,यन्नी छ रिवाज.
मैं रो्डदू कोदा कू,तू गोंद्की नौण की ,हम भी रई जांदा जु,दुई रलि-मिलि.
मैं खडखडू बांज तू सपसपी कुळईं ,दुई जगि गेन,,जब बण लगी बडांक.
तू घुघूती घुरांदी,मै कफुआ-हिलांस, तू भी छ उदास,मै भी थौ उदास.
तू जोनि कु उजालु,मै दोफ़रा कु घाम, तेरु - मेरु मेल, सौंगु नि थौ काम.
तू धारा की पन्यारी ,मै ग्वैरु म कु ग्वैर,त्वैक व्हे अबेर,मैक भि अबेर.
मैं रो्डदू कोदा कू,तू गोंद्की नौण की ,हम भी रई जांदा जु,दुई रलि-मिलि.
मैं खडखडू बांज तू सपसपी कुळईं ,दुई जगि गेन,,जब बण लगी बडांक.
तू घुघूती घुरांदी,मै कफुआ-हिलांस, तू भी छ उदास,मै भी थौ उदास.
तू जोनि कु उजालु,मै दोफ़रा कु घाम, तेरु - मेरु मेल, सौंगु नि थौ काम.
तू धारा की पन्यारी ,मै ग्वैरु म कु ग्वैर,त्वैक व्हे अबेर,मैक भि अबेर.
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Garhwali Poetry by: Rakesh Mohan Thapliyal
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Copyright @ Bhishma Kukreti Mumbai; 2016
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