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Sunday, September 4, 2016

Garhwali Poetries by Payash Pokhara, Part 5

Critical and Chronological History of Modern Garhwali (Asian) Poetry –-308
                    Literature Historian:  Bhishma Kukreti

तुमरि माया

हारु धण्यां कु लूण-मरचा रळै कै पीलू लिम्बा की कचब्वळि अर हैरि-खरस्यण्यां कखड़ि का चिरखा खाण वळा म्यारा इसक्वल्या दगड़्यों का नौ जणद्वियेक शेर--
हांमेरि आंख्यूं को आंसु सदनि अलुण्या सि लाग ।
पर तुमरि खुद त सदनि ट्वप्पि लुणकट्ट सि राया ॥ (१)
हांम्यारु मयळ्दु पिरेम सदनि घळतण्यां सि लाग ।
पर तुमरि माया त सदनि मिठि चरगट्ट सि राया ॥ (२)
@पयाश पोखड़ा ।
सतपुळि का सैणा मा चौभण्ड हुईं एक दरौळ्या गज़ल ।
********************************
छुयूं-छुयूं मा झणि कनि-कनि बत्था बोलि जंदि लोग ।
पीठ फरकान्दै द्विया अंज्वळ्यूंल कीच धोलि जंदि लोग ॥
पुटगौं का प्याट बैठिक अर एक गाळ पाणि कैरिक ।
लगा लग्दै सर्या दुन्या की पोल-पट्टि खोलि जंदि लोग ॥
धौसंदकै सौ-समाळिक ढकईं लुकईं छे अपणि नांग ।
अपणा पैना नंगुलबीजा का बीज भि चोलि जंदि लोग ॥
खुचिलि बैठिकि छाती फर चिपट्यूं रौं ब्वै का भर्वंसा ।
कुंणाबूढ़डरौण्यां बणिकै पुटगुंद छांछ छोलि जंदि लोग ॥
गैरा ढण्ड देखिकि छाल बैठ्यूं रै ग्याइ यो डरखु "पयाश " ।
पाणिम कोच कतगा अपणा अंताजल तोलि जंदि लोग ॥
बयनु दे कै भिजु फेर कभिबौड़िक घनै नि पैटा ।
खंद्वर्या कूड़ि का बाना फटळि चारेक मोलि जंदि लोग ॥
छुयूं-छुयूं मा झणि कनि-कनि बत्था बोलि जंदि लोग ॥
@पयाश पोखड़ा ।
"लोग उत्तराखण्ड मा"
******************
(
माननीय ग्राम प्रधान जी को सादर समर्पित )
अंदणों का ज्यूड़ा पल्यूड़ा ब्वटणा छन लोग उत्तराखण्ड मा ।
थकथ्यां स्वीणों की दवै घ्वटणा छन
लोग उत्तराखण्ड मा ॥
जिदंगि की बासी छुयूं कु क्वी जग्वळ्या नि रै ग्याइ ।
सरकरी चौकिदरु की ढौळ द्यखणा छन लोग उत्तराखण्ड मा ॥
धुरपळि की फटळि हर्चिगीं चौका गुठ्यार का दगड़ि ।
कपळि फर हथ लगैकि क्य स्वचणा छन लोग उत्तराखण्ड मा ॥
खौळ्या बौळ्या सि रैगीं गलादारकैल ठगै ह्वाला ।
चिर्यां कीसाउंद सट द्वि हथ क्वचणा छन लोग उत्तराखण्ड मा ॥
अंध्यरा फर बड़अदमैंउज्यळु ह्वै ग्याइ फिक्वाळ सि ।
अब चम्म चमकदि चाल थैं ख्वजणा छन लोग उत्तराखण्ड मा ॥
उड़दा चखुल्या नेतों थैं देखि असि- असमान मा ।
अपणा पांखी फंखुड़ों हवा भ्वरणा छन 
लोग उत्तराखण्ड. मा ॥
रंगण्यां ह्वाइ रंगीलो गढ़वाल छळै ग्याइ छबीलो कुमौं ।
झूटा स्वीणों की सांग ल्हेकि म्वरणा छन लोग उत्तराखण्ड मा ॥
@पयाश पोखड़ा ।
इन किळै ???
********
दिन-रात की या दैन झरक किळै ?बिन बात की जिदंगि नरक किळै ?मिन त खांद मा कि सिरईं भूड़ि खाई,
पर तुमरा पुटुगुंद कर्र करक किळै ?
मुंडरो राया सदनि मुंड मुंड्यड़ो बंद्यू,
पर छुवीं लगाणा की चरक बरक किळै ?
जग्वळ्दा जग्वळदा आंखि ताड़ लगींन,
म्यारु नौ सुणदै फेरि हरक फरक किळै ?
तुमथैं बिसर्यां त बल जमना बीति गैनि,
आंख्यूं मा आंसु की तरका तरक किळै ?
वीथैं द्यख्दै इसग्वल्या दिन याद ऐगीं,
'
पयाशकी हैड़ फरका फरक किळै ?
@पयाश पोखड़ा
एक शेर "सिन नि ठगांदा" से--
हैं ! सगोर त नि द्वि बून्द आंसु समळणा कोअर ब्वनि च मि तुमथैं आंख्यूं मा लुकौलु॥
@पयाश पोखड़ा ।
सेरद्वियेक सेर घंज़ीर भै जनै --
****************************
(
१)
मि गिल्लु भात की पणैं छौं ।
मि बिगर बात की लणैं छौं ॥
नाता-रिस्तों कु भैला बणैकि,
मि औंस्या रात की धणैं छौं ॥
(२)
गाड जैलि त गाड अड़ालि ।
धार जैलि त धार अड़ालि ॥
मुक एथरा कि तस्मै थकुलि,जिदंगि फट्ट फुण्डै रड़ालि ॥
जादा फुण्ड्यानाथ नि चितांदा,जिदंगि झणि कत्गौ थैं लड़ालि ?उत्यड़ौ मा चौभण्ड कैरिक,जिदंगि झणि कै रौला सड़ालि ?
@पयाश पोखड़ा ।
सूळपिड़ा म्यारा पाड़ की
*********************
कैमा बताण पाड़ जनि पिड़ा पाड़ की ।
भाजिगीं सबि अपणा जलुड़ा उपाड़ की॥
तैळ्या मैळ्या पाळि का दांत निखोळिगीं।
जरोरत च अब पाड़ थैं अकल दाड़ की॥
ससोड़ि गैन पाणि अर रुंगड़ि गैन हव्वा।
निख्वर्या किसमत च या चौक थाड़ की॥
फूल पत्ति बल सदनि हैरि भैरि त नि रैंदी।
कभि त याद आलि यूं जलुड़ा जाड़ की॥
बिरै-बिरैकि लूछिगीं जु म्यारा ढुंगा माटू।
चौखुळ ताड़िकै बत्था बणाणा बाड़ की।
रुणु नि छौं पर हैंसदा भि कैल नि द्याखू।
याद च जिकुड़ि लगीं लंगड़ि लताड़ की॥
@पयाश पोखड़ा ।
सतपुळि बटैकि डारेक्ट बम्बै कु टिकट कटाण वळा श्री काला जी को रैबार दींदा एक गज़ल ***********************
भैजि जु तुम दीन-द्वफरिम चलमला स्वीणा नि दिखान्दा ।
तुमरा सौं हम भि सर्या जिन्दगि कुटदरद्यारादूण नि जान्दा ॥
किटकतळि गिड़कतळ्यूं मा जु चम्म चाल नि चमकदि ।
तुमीं ब्वाला भारे ! हम घण्डाघोड़ कख बटैकि जि पान्दा ॥
"
पयाश" पोखड़ा गांव भि तिथाण जनु कतै नि दिखेन्दु ।
जु जण चारेक मौ-मनिखि गांव जनै भि
बौड़ि जि जान्दा ॥
गांव-गळ्या माद्यौ-मन्दिर सबि हथ जोड़ि बुलाणा छन ।
सितगा खुसमद मा त भगबान भि दौड़ि-दौड़ि ऐ जान्दा ॥
गांव का बड़-बड़ा डाळा अपणा जाड़ा कतै नि छ्वड़दा ।
बसगळ्या रौला-बौलों दगड़ तुम जु खळ्ळ बोगि नि जान्दा ॥
@पयाश पोखड़ा ।
'सुबेर-सुबेरनि दिखेणि च ।
***

सुबेर-सुबेर, 'सुबेर-सुबेरनि दिखेणि च ।
ब्याळिपरसि क्या नितर्सी बटैकि
सुबेर-सुबेर, 'सुबेर-सुबेरनि दिखेणि च ।
राति स्वीणा-सुपिन्या द्यखुणु रौं,
कि सुबेर ल्हेकि 'सुबेर-सुबेरद्यखुलु ।
स्वीणा वीणा ह्वैगीं परसे उठदै,
सुबेर-सुबेर, 'सुबेर-सुबेरनि दिखेणि च ।
इसगोला कि पैलि घण्टी,
फेर हाफटैनि कि घण्टी,
फेर छुट्टी कि घण्टीपर
सुबेर-सुबेर, 'सुबेर-सुबेरकी घण्टी,
नि सुणेणि च सुबेर ल्हेकि ।
हैळ म बळ्दू कि घाण्डी,
छनि म गौड़ी कि घाण्डी,
घ्वाड़ा खच्चुरु की घाण्डी,
हौरि त ह्वाई-ह्वाइ,
कबरि-कबरि त,
सूनी गरुड़ का गाळुन्द पैरईं घाण्डी,
सुणै जांद सुबेर-सुबेरपर
सुबेर-सुबेर, 'सुबेर-सुबेरकी
घाण्डी जख जईं होलि---
सारी उज्याड़ खाणा कु,
रगड़ पाणि पीणा कु,
धारम धाम तपणा कु,
गदन माछा टिपणा कु,
डाळा का टुक्कू काणा गरुड़ का
घोल द्यखणा कु,
पंद्यरा मा अपणि अग्यार 
हैंका थैं दीणा कु,
दैं भोज खाणा कु,
अग्यलु-पट्टा ल्हेकि,
कैंणवसु फर चिनगरू झड़णा कु,
कख जि जयूं होलु ???
भ्वाळपरबातफज़ल ल्हेकि,
यू 'सुबेर-सुबेरसुबेर ल्हेकि,
जरूर आलु,
पक्का आलु,
बुबाजि पास्तेबत्ती कसम ॥
तुमथैं क्य लगद,
क्य म्यार ब्वळ्यूं सच ह्वालु॥
@ Payash Pokhara
दै जन जमै ग्याइ क्वी
----
झप्प दिल मा इन समै ग्याइ क्वी ।
जिकुड़ि मा दै जन जमै ग्याइ क्वी ॥
बरखा की झुणमुंणाट मा सुरुक कैकि,द्वि बून्द आंसू का थमै ग्याइ क्वी ॥
चुड़ापट्टि का घाम मा डबकणा रंवा,
स्वीलि घाम ल्हेकि डमै ग्याइ क्वी ॥
मीनत मजुरि खून पस्यौ एक काई,
मौत दगड़ जिन्दगि कमै ग्याइ क्वी ॥
अफु दगड़ अफि हुंग्रा पुरणा रंवा,
दुन्यादारी मा भलिकै रमै ग्याइ क्वी ॥
मेरि माया त म्यार गौं जनै लगीं छाई,
"
पयाश" द्वि हथुल लिमै ग्याइ क्वी ॥
@पयाश पोखड़ा
हौरि क्य द्यालि जिन्दगी
*********************
हौरि कत्गा मिथैं कच्यालि जिन्दगी ।
कब तलक ढुगौं थैं खुज्यालि जिन्दगी ॥
मेरि भि ऐड़िकै इक तर्फां बौग सरीं चा ।
द्याखा कब तलक नि बच्यालि जिन्दगी ॥
सिमसूत कै सियूं छौं ब्यखुनि दा बटैकि ।
घाम आदैं कन नि घुच्यालि जिन्दगी ॥
राति स्वीणों मा असमान उडणूं रौं मि ।
सुबेर फर्र फंखुड़ु झाड़यालि जिन्दगी ॥
खैरिल मोरि ग्यौं अब जरा नि हिटेन्दु ।
ठीक च तुमुल हथ थाम्यालि जिन्दगी ॥
दुख पिड़ा अब त म्यारा भाग बणि गैन ।
यां से हौरि ज्यादा क्य द्यालि जिन्दगी ॥
@पयाश पोखड़ा
Gazal by Payash
--
जर-जर्रा कै गौं-गळ्या मवार हूंणु चा ।
सुरक कैकि मनिख धरि-धार हूंणु चा ॥
अब त बस एक लसाक सांस बचीं चा ।
डौ पिड़ा जिकुड़ि का वार-प्वार हूणु चा ॥
हैंका देखिकि सदनि मि रंगस्यळेणु रौं ।
कैकु कयूं कमयूं त्वैकु डड्वार हूंणु चा ॥
तुम जनै सर्या दुन्यांकि नज़र च बल ।
तुमरु पिंगळु मुक किळै अयांर हूणु चा ॥
ह्वै साक त ऐंसु का बसगाळ तक ऐजै । 
निथर बाब दद्दोंकु कूडू खन्द्वार हूणु चा ॥
मौत आण से पैलि एक अंग्वाळ भेंटि जै ।
मिल सूण "पयाश" बड़ू लिख्वार हूंणु चा॥ अब त बौड़ि जा अपणा गौं-गल्या जनै ।
ब्वै-बबौं कु चिताणु छे असगार हूंणु चा ॥
@पयाश पोखड़ा
आज मौळ्यार ऐ ग्याइ । 
---
मेरि मयळु माया फर आज मौळ्यार 
ऐ ग्याइ ।
सुपिन्यौं मा हर्च्यूं सौजण्यां आज घार 
ऐ ग्याइ ॥
नि बास कागा ठंग्री मानि घूर घुघति चौका मा ।
म्यारा सुपिन्यौं का सौदेर कु आज रैबार 
ऐ ग्याइ ॥
हे बुरांशी का फूल तुम आज कखि लुकी जावा ।
देखिले मेरि मुखड़ि आज लाल चचगार
ह्वे ग्याइ ॥
हे भौंरा प्वत्ळौं जुठ्ठा नि कर्यां आज 
फूलु थैं ।
फूलु पत्यूं का कुटमणों ल आज सिंगार कै द्याइ ॥
@पयाश पोखड़ा
एक कब्यता नै साल का नौ
***********************
अणजाण अपच्छ्याणक बणिक सि आंद नै साल ।
खास अपणों फर कुतगळि सि लगै जांद नै साल ॥
अळ्झीं उळ्झीं रदीं जिन्दगी की ज्यूड़ि पल्यूड़ि ।
सबि गेड़ मेड़ खल्ल खोलि-खालि जांद नै साल ॥
गाणि स्वाणि की बिठिगि मुण्ड मा धरीं छाई ।
मेरि खैरि देखिकि बिसौण्या बणि जांद 
नै साल ॥
दुख विपदा ब्वक्दा-ब्वक्दा हतांगस्या जिन्दगी ।
अंध्यरा मा चम्म चिनगरि सि दिखै जांद नै साल ॥
स्यो जु चलि ग्याइ साल इनु कुनस कै ग्याई ।
मुठ्ठि पुटुग पाणि कन लुकाण बिंगै जांद
नै साल ॥
दुरु परदेसु का चखुला घोल जनै बौड़ि गैना ।
स्वीणा स्वरगिणा दिखैकि मिथैं लटै जांद
नै साल ॥
औंसि की रात चा बस बियण्या आणा तक ।
खुचिल्यूं मा नै-नै सूर्जकौंळ चमकै जांद
नै साल ॥
पयाश पोखड़ा
पिछिलि दिनु मि गांव जयुं छाई,भारी टक लगैकि ।
पर द्वि दिन मै भाजी ग्यौंमुठ्टियूं फर थूक लगैकि ॥
हांमि भाजि ग्यौं---
गांव-गळ्या का हाल-चाल देखिकि,हवा-पाणि कि ढाळ-पंदाळ देखिकि,ढुल्लि मवस्यूं का ढंगरचाळ देखिकि,चौका,खळ्याण बण्यां भ्याळ देखिकि,पुरणि पंचैति की टुटीं पाळ देखिकि,मोर-संगाड़ फर मकड़जाळ देखिकि,छज्जों मा तमखु पींदा स्याळ देखिकि,कच्चि-पक्कि पीणा कु ख्याल देखिकि,सग्वड़ि-पत्वड़ियूं मा सुंगरखाळ देखिकि,बांजा प्वड़्यां कौथिगौं का थाळ देखिकि,ग्यगड़ा लग्यां गदन्युं का छाल देखिकि,ठण्ड-ऐड़ि ल अयीं गाळ-गाळ देखिकि,स्यवा-सौंळि जुतौं का ताळ देखिकि,
हांमि भाजि ग्यौं,मुठ्टियूं फर थूक लगैकि भाजि ग्यौं ।
खैड़-कत्यार ल भ्वर्यां खळ्याण देखिकि,भैर-भितर बास अर म्वळ्याण देखिकि,पंद्यरौं मा गु-गुदड़ा छळ्याण देखिकि,रबड़ पलासटिका की जल्याण देखिकि,गुड़-गिंदणों फर भ्यळि बळ्याण देखिकि,गिच्चों बटैकि हस्स हसळ्याण देखिकि,
हांमि भाजि ग्यौं,मुठ्टियूं फर थूक लगैकि भाजि ग्यौं ।
दगड़्या सौंजड़्यौं कु हंकार देखिकि,धुरपळ्यूं मा जम्यूं झाड़-झंकार देखिकि,दिवलि पाळ्यूं फर खांसी खंखार देखिकि,देळि म बटैकि मूळा कु डंकार देखिकि,उबर-मज्यूंळ डौन्ड्या नरंकार देखिकि,
हांमि भाजि ग्यौं,मुठ्टियूं फर थूक लगैकि भाजि ग्यौं ।
छोरि-छ्वारों की तिड़्याण देखिकि,लटुला ल्वत्गों की किर्याण देखिकि,क्वलण पैथरा की चिर्याण देखिकि,निख्वर्यों की नाक की पिर्याण देखिकि,गिल्लु जीरु बुसिलु जवाण देखिकि,
हांमि भाजि ग्यौं,मुठ्टियूं फर थूक लगैकि भाजि ग्यौं ।
कब्यूं का कीसाउंद इसबगोळ देखिकि,कत्न्यई कब्यतौं कु रमछोळ देखिकि,भात दगड़ अल्लु कु झोळ देखिकि,अनपढ़ अणब्यवाक इसगोळ देखिकि,कजै-कज्यण्यु की मिसकौल देखिकि,आबत मित्तरु फर बगबौळ देखिकि,
हांमि भाजि ग्यौं,मुठ्टियूं फर थूक लगैकि भाजि ग्यौं।
रुणपित हुयां प्यौळि बुरांस देखिकि,बूण परदेस भजणा की फांस देखिकि,अफि-अफि चिरफण्यां बांस देखिकि,दाइ-दुसमन स्वारौं की डांस देखिकि,मन मुखड़ि मा चिपकयीं निराश देखिकि,बूढ-बुढ़्यों कि लब्बी यकुलास देखिकि,पोखड़ा मा बेरि-बेरि "पयाश" देखिकि,
मि भाजि ग्यौं,हांमि भाजि ग्यौं,मुठ्टियूं फर थूक लगैकि भाजि ग्यौं ॥
@पयाश पोखड़ा
एक गज़ल गैरसैण का नाम
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रोज़-रोज़ म्वरणु छौं मि रोज़ बचणू छौं ।
अफु दगड़ अफि-अफि लड़ैं करणू छौं ॥
खाळा-म्याळौं का बीच कख हर्चि ग्यौं । कब बटैकि अफुथैं अफि ख्वजणु छौं ॥
अपणै पुंगड़ चट्टैलिकि उज्याड़ खवैकि,
मि अपणै गोर देखिकि किळै डरणू छौं ॥
समणि द्यख्दै त स्यवा-सौळि ह्वै जांद ।
पीठ फरकांदै किळै अंग्वठा करणू छौं ॥
द कना भला दिन दिखैनि दग्ड़्यों ला ।
मित रुंदा-रुंदा हैंसि भि नि सकणू छौं ॥
थड़्या-चौंफ्ळौं का झुम्का टुट्यां छन ।
मि यखुलि खालि खळ्याणम नचणू छौं॥
खुट्टौं का फ्यफ्नौं फर बीवैं का दळखा गळ्या लगांणाकु लब्बिलपाग धरणू छौं॥
रोज़-रोज़ म्वरणु छौं मि रोज़ बचणू छौं ॥
अफु दगड़ अफि-अफि लड़ै करणू छौं ॥
@पयाश पोखड़ा
"छुवीं न लगौ
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इत्वारा की छुट्टी आजभिप्यारा की छुवीं न लगौ ।
डिल्ली,द्यारादूण मा बैठिकि,
ड्यारा की छुवीं न लगौ॥
चौड़ि-चक्ळी सड़क्यूं मा,मारुति कु हैण्डल थामि ।
उजण्यां पैरा-पाखों अर,उड्यारा की छुवीं न लगौ ॥
ड्यारा की छुवीं न लगौ ॥
पाणि का फुब्बारों का बीच,हैरा-हैरा पारकु मा बैठिक ।
बिसकीं कूल अर बांजा,स्यारा की छुवीं न लगौ ॥
ड्यारा की छुवीं न लगौ ॥
फिरीज़ पुटग कोचिकमैन्यांक कि साग-भुजी ।
चौका का तिर्वाळि सगोड़ा-
क्यारा की छुवीं न लगौ ॥
ड्यारा की छुवीं न लगौ ॥
छंछ्या जनौ बकुळो खून,बाड़ी जन ल्वै ह्वै ग्याइ ।
टैम पास का खातिर त्यारा-
म्यारा की छुवीं न लगौ ॥
ड्यारा की छुवीं न लगौ ॥
@पयाश पोखड़ा
"अपुणु गौं द्याख"
***************
रस्ता-बाटों मा हिटदा-हिटदा,मिल अपुणु गौं द्याख ।
पंचैती का टुट्यां मोर-संगाड़ फर,
मिल अपुणु नौं ळ्याख ॥
मिल अपुणु गौं द्याख ॥
काकी-बोडी की जिकुड़्यूं मा,सिळ्यांदु सि एक उमाळ द्याख ।
दद्दी-दाजि की कथा-बत्थों मा,मिल द्यप्तौं कु ठौ द्याख ॥
मिल अपुणु गौं द्याख ॥
सरग दगड़ छुवीं लगादां,चाल-बिजुलि-बादळ द्याख ।
बरखा की जग्वाळ मा,चिट्ठी ल्यख्दा बौ द्याख ॥
मिल अपुणु गौं द्याख ॥
आरु-अखोड़ा की पुरणि डाली,पंद्यरु-रौलु-गदनु द्याख ।
गड्याळ-डौखौं दगड़ भैजी,नचदा नांगा पौ द्याख ॥
मिल अपुणु गौं द्याख ॥
भै-बन्द आबत-अस्नौं फर,रसकईं गेड़-खुरग्यंसु द्याख ।
लीणि-दीणि आर-सार मा,हांघाम-छैल धौ द्याख ॥
मिल अपुणु गौं द्याख ॥
आणि-जाणि लग्यूं धन्धा,सरैल रंगणा की थुपड़ि द्याख ।
धार पोर अच्छ्यांदा घाम थैं,हिटदा उल्टा पौ द्याख ॥
मिल अपुणु गौं द्याख ॥
मिल अपुणु गौं द्याख ॥
@पयाश पोखड़ा
एक गज़ल वों "बुबाजि" का नाम जो आज भि अपणो का आण की आस मा दिन कटणा छन ।
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कभि फैड़्यूं माकभि छज्जा माकिळै बैठणा रंदि बुबाजि ?रोज स्याम-सुबेर गांवा कु बाटु किळै ह्यरणा रंदि बुबाजि ?न रंतन रैबारन चिट्ठी-पत्रिन क्वी खबरसार,
घाम म बैठिकि रोज-रोज चिट्ठी किळै ल्यखणा रंदि बुबाजि ?
म्यारु खून त खून छायोयो पाणि कनकै ह्वै ग्याई,
ये घंघतोळ मा अपणा हि ल्वै थैं किलै चखणा रंदि बुबाजि ?
दाना शरैला कु मन भि दानु दिवनु सि ह्वै ग्याई,
अजकाळ द्यप्तौं म बटैकि मौत किळै मंगणा रंदि बुबाजि ?
आन-औलादनौनाब्वार्यूं कु नौ सुणदै ठण्डकरै जंदि,
मुंजी अग्यठि म रंगणा की थुपड़ि किळै तपणा रंदि बुबाजि ?
कौणि-झुंगरुमास,भट्ट,गैथसूटों की कुटिरि बणैकि,
रोज घाम मा सुकैकि भैर-भित्तर किळै धरणा रंदि बुबाजि ?
द्वार-मोर कु च्यूंच्याट अर हवा ल संगुळा की खखड़ाट,
हे म्यारा लाटा ऐ जा बब्बा भित्तर किळै ब्वळणा रंदि बुबाजि ?
@पयाश पोखड़ा
चखुलों का घोल
*****************
अब क्य बताण त्वैथैं कख हर्चीं,चखुलों का घोल ।
औडळ-बथौं-पाणि मा कख उड़िगीं,
चखुलों का घोल ।
छज्जा का द्वळणा-जळ्वठौं मा लुक्यां छन गुराव,
अब त्वी बथौ मिथै कनकै बचिगीं,
चखुलों का घोल ।
तूणि का बुढण्यां डाला फर जनि
कुलड़ू चलाई,
फिर कभि जुगराज कख रैगीं,
चखुलों का घोल ।
जनि-जनि बांजि ह्वैन पुंगड़ि-पटिळि
सग्वड़ि-पत्वड़ि,
तनि-तनि खौळ्यां-खौळ्यां सि रैगीं,
चखुलों का घोल ।
सरकरी सड़क्यूं कु ज्याळ-जंजाल बिछाई जब बटैकि,
सड़क्या-सड़िकि उंदु कख चलिगीं,
चखुलों का घोल ।
ह्यूंदा का ह्यूं सि अर रूड़ि का घ्यू सि
गळ गैळगीं,
स्वीणा-स्वरगणों की सि बात ह्वैगीं,
चखुलों का घोल ।
जब बटैकि लोग कूड़ों थैं सिमेन्टल लिपण बैठिगीं,
तब बटैकि धकि-धैं-धैं ह्वैगीं,
चखुलों का घोल ।
बिसळि मा घमयुं नाज वो भग्यान हि ठुंगणा रैईं,
अत्वणि-बत्वणि मा जु बचिगीं,
चखुलों का घोल ।
बंदुक्या ल जनि दुनळ्या बंदुकिल काड़तूस फैर करीं,
"
पयाश" की हिर्र जिकुड़ि म याद ऐगीं,
चखुलों का घोल ।
@पयाश पोखड़ा
एक गज़ल - भलु लगद मिथैं -
**************************
फूलफटंगा की जून चम्कणि राया आगास मा ।
अर मि रौं सिमसूत कै सियूं चौका- खळ्याण मा ।
भलु लगद मिथैंभलु लगद ॥
सर्या राति पाळु वूंस प्वड़णि राया खैड़ घास मा ।
अर मि रौं फस्सोरिक सियूं ढकीण- डिस्याण मा ।
भलु लगद मिथैंभलु लगद ॥
धूप-द्यू-धुपंणु अर थान-ठौ लीपि-लापिकि ।
अर मि रौं राड़ा-प्वतर्रा ढुंगों थैं द्यप्ता
बणाण मा ।
भलु लगद मिथैंभलु लगद ॥
कुयेड़ी का मोर-संगाड़ अर संगुळा तोड़िक ।
अर मि रौं घाम थैं रौलि-गदन्युं का छाल
बिसाण मा ।
भलु लगद मिथैंभलु लगद ॥
ह्वेलि तिबरि-डंडळि-नीमदरि कैकि पछ्याणक ।
अर मि रौं अभि तलक खंद्वर्या कूड़ि छवांण मा ।
भलु लगद मिथैंभलु लगद ॥
एड़वाण देखिकै द्यप्ता सि कौंपणा छन जडमार ।
अर मि रौं सर्या दिनमान अपणि पीठ तपाण मा ।
भलु लगद मिथैंभलु लगद ॥
अपणा-बिरणों फर सक-सुब्बा करणा कु ढब ।
मजा सि ऐ जांद ईं हर्चईं जिन्दगि थैं खुज्याण मा ।
भलु लगद मिथैंभलु लगद ॥
@पयाश पोखड़ा
एक गढ़्वळि गज़ल बगैर बात की
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जनि त्यारो हाथ आया म्यारा हाथ मा ।
सचिब्वौळ्या बणी ग्यौं बगैर बात मा ।।
सुरम्यळ्या सुपिन्यौं मा वा इन दिख्याई,फूलफटंगा सि जून जनि औंस्या रात मा।
सचिब्वौळ्या बणि ग्यौं बगैर बात मा ।।
खौळ्ये सि ग्यौं मि सुदबुध भि नि रैई,क्यूंकळि सि लगै ग्याइ सर्या गात मा ।
सचिब्वौळ्या बणि ग्यौं बगैर बात मा ।।
आंख्युं-आंख्युं मा बिगांद लड़बड़्या मायादार छुवीं,चलमला म्याला जख्यला जन मिठ्ठु दूध- भात मा ।
सचिब्वौळ्या बणि ग्यौं बगैर बात मा ।।
प्योंलि सि पिंग्ळि मुखड़ि सकिन्या जन मुल-मुल हैंस,ललंगा बुरांस लुक्यां ह्वाला जन हैरा-हैरा पात मा ।
सचिब्वौळ्या बणि ग्यौं बगैर बात मा ।।
@पयाश पोखड़ा




Copyright @ Bhishma Kukreti Mumbai; 2016
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