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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, September 21, 2015

'हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए' का गढ.वाली रूपांतर :

दुष्यंत कुमार की मशहूर हिंदी ग.ज.ल 'हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए' का गढ.वाली रूपांतर :
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ह्वे गए परबत कनी, या पीड. गल़णी चैंद भै
ये हिमाला से कुई गंगा निकल़णी चैंद भै ।
आज मत्थे पाल़ परदौं की तरौं हलणा लगे
शर्त लेकिन छै कि मूडे. पौउ हलणी चैंद भै ।
हर सड.क फर, हर गल़ी मा हर नगर हर गौंउ मा
हाथ झटगांदा झटग, हर लाश चलणी चैंद भै ।
सिर्फ हफरोल़ो लगाणो ही मेरो मकसद नि छा
मेरी कोशिश छा कि या बघबौल़ मिटणी चैंद भै ।
मेरा जिकुडा. मा नि ह्वा त, तेरा जिकुडा. मा सही
ह्वा कखी भी आग लेकिन आग जगणी चैंद भै ।
(गढ.वाली रूपांतर : नेत्रसिंह असवाल )

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