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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, September 13, 2015

वेदों मा व्यंग्य

Satire and its Characteristics, Satire in Vedas व्यंग्य परिभाषा, व्यंग्य  गुण /चरित्र
               वेदों मा व्यंग्य 

    (व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का  मिऴवाक  : (   भाग     16   ) 

                         भीष्म कुकरेती 

 वेद वास्तव मा Autosuggestion अर इतिहास बतांदेर साहित्य छन ।  
वेदों तैं हिन्दुओं आदि धर्म ग्रन्थ माने जांद किन्तु सब्बि हिन्दूउंका  ग्रन्थ मनण ठीक बि नी च। 
 हम वेदों तैं गंभीर विषय मांदा।  पर यदि जै साहित्य मा अतिश्योक्ति , युद्ध , दुसर जाति का बारा मा कटु अर तौहीन वळि आलोचना हो तो उखम हौंस बि आदि अर वेद साहित्य  पर गुस्सा बि आंद।  
वेदों मा मूल भारतीय -याने वेदकालीन भारतियों से पैल बस्यां भारतीयूं  की बड़ी बेज्जती करीं च।  मूल भारतीयों तैं असुर , असभ्य , दस्यु नाम दीणो पैथर तौहीन की ही भावना ही  च। मूल भारतियों तै कृष्णयोनि नाम दिए गे तथा ऊंकी नाक तै अनास नाम दिए गे और आर्यों की नाक तै सुनास नाम दिए गे ( डा डबराल उत्तराखंड का इतिहास बाहग् -2 वैदिक आर्य अध्याय ) . 
 मूल भारतियों तै वेद साहित्य मा दास याने पारिवारिक बंधक नौकर बणानै बात लिखीं च। नौकरों (दास ) तै गुरु दक्षिणा मा दिए जांद छौ।   यी सब वास्तव मा व्यंग्यत्मक या तौहीन करंदेर साहित्य बि च । 
जख तुलना मा एक की बड़ै ह्वावो अर दसरै अति प्रशसा हो तो स्वमेव व्यंग्य की गंध ऐ जांदी। 
 पश्चमी कुछ विद्वानुंन जन कि मुल्लर , Moritz Winternitz ऋग्वेद का सूक्तियों मा व्यंग्य सूंघ (ब्राह्मण ऋग्वेद  Vii 103 ) (Dialogues in Early South Asian religion, Hindu Buddhist and Jain Traditions edited Dr Brain Black et all)  यद्यपि भारतीय और अन्य  पश्चमी विद्वानु बुलण च कि ये श्लोक मा ब्राह्मण की साम्यता मेंढक से प्रशसा का खातिर करीं च ना कि व्यंग्य करणो वास्ता।  किन्तु एक बात सत्य च यदि हम बगैर हिन्दू या अन्य धर्मी ह्वेक वेदों तै पढ़ां तो वेदूं मा बि व्यंग्य , हौंस की गंध आदि च।  हाँ इखमा शक नी च बल वेद रचनाकारोंन  गम्भीरतापूर्वक कार। Wendy Doniger ये अध्याय की ऋचाओं तै पूरा व्यंग्य नि माणदि पर सफाचट ना बि नि बुल्दी। 
 म्यार मनण च कि अनार्यों की तौहीन ही वस्तव मा वेदों मा व्यंग्य च।   

11/ 9/2015 Copyright @ Bhishma Kukreti 

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