Satire and its Characteristics, व्यंग्य
हास्यविहीन व्यंग्य की कल्पना
(व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , भावनाऊँ मिऴवाक : ( भाग - 9 )
हौंस बगैर क्या चबोड़ , चखन्यौ , मजाक ह्वे सकुद क्या ? जी हाँ अब आधुनिक व्यंग्यकार बि मणदन कि ठीक च हौंस व्यंग्य का वास्ता जरूरी च पर इन बि ना कि बगैर हौंसक व्यंग्य रचे इ नि जावो।
भौत सा व्यंग्यकार अपण व्यंग्य रचना मा हौंस तै नेपथ्य मा छोड़ दींदन अर आग , अग्यो, बुराई पर चक्कू अधिक चालांदन। बुराई पर प्रहार करणो वास्ता व्यंग्यकार अस्त्र का रूप माप्रतीक , अर बिडंबना का प्रयोग करदन। क्रोध , रोष गुस्सा दिलाण इनमा व्यंग्यकार का उद्येस्य ह्वे जांद। गढ़वळि गद्य व्यंग्य मा त्रिभुवन उनियाल अपण व्यंग्य हौंस तै महत्व दीन्दो , हरीश जुयाल अधिक हास्य लान्दो ; कमोवेश सुनील थपल्याल घंजीर बि हास्य तै व्यंग्य मा महत्व दींदु। कुकरेती अर कठैत द्वी तरफां ढळकदन। भौत सा बगत कठैत का व्यंग्यों मा बि हास्यविहीनता रौंदी अर व्यंग्य दार्शनिकता का तरफ ढळक जांद। पराशर गौड़ अर प्रकाश धषमाणा चूँकि पत्रकारिता आधारित व्यंग्य पर विश्वास करदन तो हास्य की कमी यूंक व्यंग्य मा मिल्दो। पूरण पंत 'पथिक ' अपण व्यंग्य मा गुस्सा, तीक्ष्णता , कटाक्ष तै अधिक महत्व दीन्दो। याने पूरण पंत व्यंग्य मा हास्य तै बिलकुल ही महत्व नि दीन्दो। यद्यपि पंत हास्य से छौं बि नि करदो पर वैक नजर बुराई पर जोर की कटांग लगाणो रौंद।
असल मा व्यंग्यकारुं उदेस्य पाठ्कुं तै हंसाण नि हूंद अपितु चेत करण , गुस्सा दिलाण , कै बुरै से दूर रौणै सलाह आदि हूंद तो हास्यविहीन व्यंग्य उत्पन ह्वेई जांद। हाँ एक समस्या ये लिख्वारन बि अनुभव कार कि हौंस नि रावो तो व्यंग्य या तो शुद्ध, सूकी आलोचना ह्वे जांद या दार्शनिकता का तरफ ढळके जांद।
1 / 9/2015 Copyright @ Bhishma Kukreti
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