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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, September 6, 2015

व्यंग्य कै हिसाब से कला च

Satire and its Characteristics, व्यंग्य परिभाषा, व्यंग्य  गुण /चरित्र
               व्यंग्य कै हिसाब से  कला च 
    (व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का  मिऴवाक  : (   भाग    12    ) 

                         भीष्म कुकरेती 

  यदि व्यंग्य मानवक स्वभावगत भाव च तो प्रश्न उठद कि व्यंग्य कनै कला ह्वे सकद , किलैकि भाव त कला नि ह्वे सकद। 
फिर यदि व्यंग्य कला च तो व्यंग्य हौर साहित्य से अलग कै हिसाब से च।  
           व्यंग्य मन अवस्था से कला तबि बण सकद जब  उग्र -निंदा , उग्र भगार -भर्त्स्ना , आक्रमणकारी भंडाफोड़ , क्रोधयुक्त आक्षेप , लड़ाका दोषारोपण का साथ  साथ सौंदर्य बि व्यंग्य मा हो जु ग्राहक (पाठक , दर्शक ,श्रोता ) तैं एक अनोखा आनंद दे साको।  भले ही  श्रोता , दर्शक या     पाठक व्यंग्यकार की मानसिकता पूरा रूप से अंगीकार कर बि ल्यावो तो भी क्रोध , उग्रता मा एक दुसर तरां को आनंद अवश्य हूण आवश्यक च।  
वास्तव मा व्यंग्य मा उग्रता , ट्रेजिडी का साथ एक कलात्मक परिवेश , आनंददायक वस्तु /भाव बि आवश्यक च अर यी आनंददायक भाव ही व्यंग्य तैं कला बणाणो बान अग्वाड़ी रौंद। उग्रता का दगड़ भाव व्यंग्य मा आवश्यक तत्व च। उग्रता मा भाव कौशलता का मिळवाक व्यंग्य तै कला का नजीक  लांद। 
 यु एक आश्चर्य च कि सदानंद कुकरेती लिखित  प्रथम आधुनिक गढ़वाली कथा 'गढ़वाली ठाट '  अर भवानीदत्त थपलियाल कृत प्रथम गढ़वाली नाटक 'भक्त प्रह्लाद ' दुयुं मा व्यंग्य भरपूर च अर आश्चर्य नी च कि दुइ विधाऊं  मा उग्रता , आलोचना , भर्त्स्ना का साथ साथ सौंदर्य , सौन्दर्यरूपक, सौन्दर्यवोध  कला कु मिश्रण बड़ो ही सुघड़ तरीका से हुयुं च।  




5 / 9/2015 Copyright @ Bhishma Kukreti 

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