भीष्म कुकरेती : आपक संक्षिप्त
जीवन परिचय...
धनेश कोठारी : मेरु जल्म 26 दिसंबर 1970 (11
गते 2027) का दिन द्वी धौळयों अलकनंदा अर भागीरथी का किनारा देवप्रयाग मा ह्वे।
आठवीं तकै कि शुरूआति शिक्षा बि देवप्रयाग अरैर वांका बाद ऋषिकेश मा स्नातक तक
पढ़ी लेखि सक्यों। इबारि बि ऋषिकेश मा ई स्थै घौर च।
भी. कु. : आपक साहित्यक ब्यौरा...
ध. को. : सन् 2009 मा एक गढ़वळी कविता संग्रै 'ज्यूंदाळ'
प्रकाशित च। यां चै पैलि मैं तैं आवाज साहित्यिक संस्था की पैलि हिंदी अर गढ़वळी
काव्य संग्रै का संपादन कू मौका मिली। यांका अलावा कथगि पत्र-पत्रिकौं मा मेरि
कविता छपेन। जीवन की सबसे पैलि गांधी जी पर लेखिं मेरि एक हिंदी क्षणिका 1984 मा
बाल पत्रिका 'चंपक' मा छपे छै। तब बिटि लेखणौ कू छंदमंद शुरू ह्वे, जु कि अब तकै
जारी च।
भी. कु. : आपन अब तक गढवळी मा
क्य-क्य लेख अर कथगा कविता लेखी होली
ध. को. : मेरु
अधिकांश साहित्यिक लेखन गढ़वळी भाषा मा ई अब तक ह्वे अर अगनै बि लेखदू रौलू।
गढ़वळी मा मिन अब तक ज्यादातर कविता ई लेखिन। कहानी लेखणौ कू भी प्रयास करि, पण
एक आद कहानी ई लेखि सक्यों। हां, कविता का बाद व्यंग्य मेरि सबसे मनपसंद विधा
च। सामयिक विषयों पर अब तक लगभग तीन दर्जन व्यंग्य लेखिन। जू गढ़वळी का दगड़
हिंदी मा भी विभिन्न पत्र-पत्ररिकौं मा प्रकाशित ह्वेन्।
पत्रकारिता मा होण का कारण हिंदी मा आलेख,
गढ़वळी फिलमूं की समीक्षा अर गढ़वळी मा कुछ किताबूं कि प्रस्तावना भी मेरा लेखन
मा शामिल छन। कविता का अलावा मिन कई गढ़वळी गीत बि लेखिन्। जू कई एलबमूं मा बाजार
मा बि ऐन। जख तक कवितौ कि बात च, त अबि तलै लगभग ढै सौ कविता अर गीत लेखि चुक्यों
मि।
भी. कु. : आपक साहित्य पर समीक्षकों
कि राय
ध. को. : मेरा पैला काव्य संग्रै ज्यूंदाळ कि ज्यादा
समीक्षा त नि ह्वेन्। पण जौंन बि लेखि वूंन् मेरि कवितौं मा व्यवस्था का खिलाप
एक तरै कू विद्रोह देखि। वूंकि नजर मा मेरि भाषा पर पकड़ कि सबचै ज्यादा तारीप
ह्वे। अर अगनै बढण कू आशीष का दगड़ हौसला बि मिली। जू कि मेरा वास्ता सबसे ज्यादा
कीमती च।
भीष्म कुकरेती : आप कविता क्षेत्र मा किलै
ऐन ?
ध. को. : साहित्य का क्षेत्र मा मि अचणचक आयूं।
किलै, त् अपडि़ पछाण कि खातिर। यानि अपडि़ पाड़ी होण कि पछाण, पाड़ीपन तैं अगनै
बढौण कि चाना, लोकभाषा का थान मा अपडि़ तरपां बिटि अग्याळ देण कू, दुनिया तैं
बतौण कू कि हम अपणा पाड़ी होण पर गौरव मैसूस कर्दां। अर ये ई भाव विचार तैं सबूं दगडि़
संजैत कन्न कू। मेरु यू बि मन्न च कि अगर विचार तैं मजबूती का दगड़ सतत अगनै
बढ़ये जावू, त् एक न एक दिन समाज मा वेकू प्रभौ बि स्वाभाविक च। यांलै बि मि कविता,
व्यंग्य अर अन्य लेखन कर्दू।
भीष्म कुकरेती : आपकी कविता पर
कौं-कौं कवियुं प्रभाव च ?
ध. को. : यू त् मिन कबि आंकी नि च। जख तक बोलूं त्
मि सिखणौ कू हमेशा प्रयास कर्दू रौंदू, अर वेका मुताबिक ई अपणी रचनौ तैं गंठ्योंण
कि कोसिस कर्दू। हां, मैं तैं गढ़वळी मा पुराणौ का दगड़़ कथगि नया लेख्वारूं कि
कविता पसंद छन।
भी. कु. : आपक लेखन मा भौतिक वातावरण याने लिखणौ टेबल, खुर्सी, पेन, इकुलास आदि को कथगा महत्व च ?
ध. को. : जब पैलि बार कविता लेखि छै, त कागज, पेन,
पेंसिल ई माध्यम छा। अब नयू जमानू च, त् वेका अनुरूप ई कंप्यूटर, मोबाइल बि साधन
बणिगेन। रै इकुलास कि बात, त् मैं फरैं कविता कू द्यबता कखि बि ऐ जांदू। भीड़ मा
बि अर इकुलास मा बि।
भी. कु. : आप पेन से लिख्दान या
पेन्सिल से या कम्पुटर मा?
कन टाइप का कागज़ आप तैं सूट करदन मतबल कनु कागज आप तैं कविता लिखण मा माफिक आन्दन?
ध. को. : पैलि बतै कि शुरूआत मा पेन, पेंसिल माध्यम
लेखण का माध्यम बणिन्। अब कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल बि सारू छन। कंप्यूटर का
जमाना मा कागज कन होवू, यां पर कबि खास नि स्वोची। ज्वी हात लगजौ, वी सारु ह्वे
जांद।
भी. कु. : जब आप अपण डेस्क या टेबल से दूर रौंदा अर क्वी विषय दिमाग मा ऐ जाओ त क्या आप क्वी नॉट बुक दगड मा रखदां ?
ध. को. : पैलि किस्सा पर डैरी रखदू छौ, अब मोबाइल
हात पर रौंदू। विचार कखि बि कबि बि ऐ जाउ त् लेखि देंदौं।
भी. कु. : माना कि कैबरी आप का दिमाग मा क्वी खास विचार ऐ जावन अर वे बग्त आप वूं विचारूं तैं लेखी नि सकद्वां, त आप पर क्या बितदी? अर फिर क्या करदा?
ध. को. : हां, कतगि दां ह्वे यन। बाद मा कबि वू
स्वोच्यू याद ऐ त् कबि न। कई कविता यन्नि जल्म लेण से पैलि ई म्वरेन्। अच्छी
पंक्ति या विषय हमेशा नि मिल्दन्। पण, अब जब हात पर मोबाइल रंदू, कोसिस कर्दों कि
मन मा अयां विचार तैं लेखिद्यों।
भी. कु. : आप अपण कविता तैं कथगा दें रिवाइज कर्दां ?
ध. को. : रिवाइज कन्न कि जर्रवत हमेशा नि
प्वड़दी। फेर बि कोसिस रंदी कि एक अच्छी कविता पाठकूं अर सुण्दरौं तक पौंछू। स्यू
रिवाइज कि गुंजाइश तैं नकार्दू बि नि छौं।
भी. कु. : क्या कबि आपन कविता वर्कशॉप क बारा मा बि स्वाच? नई छिंवाळ तैं गढवाळी कविता गढ़णो को प्रशिक्षण बारा मा क्या हूण चएंद। आपन कविता गढ़णो बान क्वी औपचारिक (formal) प्रशिक्षण ल़े च ?
ध. को. : मेरा ख्यालम् कविता प्रशिक्षण से नि जल्मी
सकदी। मिन अपणा आसपास जू देखि, मैसूस करि, अर मन ह्वे कि यू विषय कविता कू प्लाट
बण सकदू, त् वेका शबद, शैली, बिंब, भाव बि अफ्वी जल्मिन्। रै नयि पीढ़ी तैं
प्रशिक्षण कि, त् संवेदनशील मन का बिगर कविता गढण संभव नि। अलग-अलग विषय कि पढ़ै,
वेका प्रति अपणु विवेक अर प्रतिक्रिया अर प्रतिक्रिया कि समाज पर प्रभाव कि
संभावित कल्पना यदि दगड़ हो, त् कविता बक्की का थाल मा का ज्यूंदाळूं सी अफ्वी
बाक जांद। कविता गढण कू मिन कबि कखि प्रशिक्षण नि ले। मैं तैं त् समाजन् ई कविता
गढण कू बानू बि बतै अर सगोर बि सीखै।
भी.कु. : हिंदी साहित्यिक आलोचना से
आप कि कवितौं या कवित्व पर क्या प्रभौ च. क्वी उदहारण?
ध. को. : अब्बि इतना बड़ू कवि नि होयों मि, कि हिंदी
साहित्यक आलोचना मेरा रचनाधर्मिता पर होन्। हां, हिंदी कि अलग-अलग विधौं मा
कवितौं तैं पढ़दू अर वांका बाद आत्म अवलोकन करिक अपणा लेखन मा कुछ अच्छु गढण कू
प्रयास जरूर कर्दों।
भी.कु. : आप का कवित्व जीवन मा रचनात्मक सूखो बि आई होलो, त वै रचनात्मक सूखो तैं ख़तम करणों आपन क्या कार ?
ध. को. : रचनात्मक सूखा कि जख तक बात च, त् कविता
या कै अन्य विधा लेखन का दौरान त् यन नि ह्वे। पण, जिंदगी का उतार चढ़ौ मा जरूर
कतगि दां लंबा टैम तक मिन क्वी कविता ई नि लेखि। आजकल बि जीवन कि कठिनै समणि छन
अर कविता लगभग दूर च। हलांकि, तब भी कतगि दां कविता अफ्वी बाक जांदि। बक्कै यन
त् चलदू ई रांद।
भी. कु. : कविता घड़याण मा, गंठयाण मा, रिवाइज करण मा इकुलास की जरुरत आप तैं कथगा हूंद ?
ध. को. : कविता कि अन्वार गंठ्योण कू इकुलास बि
अफवू मा जरूरी च। बल्कि यांकू बिजां सारू मिल्द।
भी. कु. : इकुलास मा जाण या इकुलासी
मनोगति से आपक पारिवारिक जीवन या सामाजिक जीवन पर क्या फ़रक पोडद? इकुलासी मनोगति से आपक काम
(कार्यालय) पर कथगा फ़रक पोडद?
ध. को. : मैं तै इकुलास खास पसंद नि च, अर
मन इकुलास तब्बि चांदू, जब काम धाणि कू बग्त हो।
भी. कु. : कबि इन हूंद आप एक कविता क बान क्वी पंगती लिख्दां, पण फिर वो पंगती वीं कविता मा प्रयोग नि कर्दा, त फिर वूं पंगत्यूं क्या कर्द्वां ?
ध. को्. : कतगि दां होंद इन। क्वी पंगती बाद मा काम
ऐ जांदिन्, त् कतगि बिस्मृत ह्वे जांदिन्।
भी. कु. : जब कबि आप सीण इ वाळ हवेल्या या सियाँ रैल्या अर चट चटाक से क्वी कविता लैन/विषय आदि मन मा ऐ जाओ त क्या कर्दावां?
ध. को. : कोसिस रंदी कि वू विषय कंप्यूटर न सै पण
कागज पर त उतर ई जावू।
भी. कु. : आप को शब्दकोश अपण दगड रख्दां ?
भी. कु. : आप को शब्दकोश अपण दगड रख्दां ?
ध. को. : मिन अब्बि तलै क्वी शबदकोश नि पढ़ी। यांकि
जर्रवत बि नि होंदि। किलै कि अपणा घौर का गेट भितर औण का बाद मि या मेरा मां-बाप,
भै बैणा क्वी हिंदी मा बात नि कर्दन। स्यू शब्द भंडार मैं तैं अपणा घर पर ई
खासकर अपणि मां से ई मिल जांद। बकै पढणै कि मेरि आदत बि शब्दू तैं मन मा समाल्दी
रंदी।
भी. कु. : हिंदी आलोचना तैं क्या बराबर बांचणा रौंदवां?
ध. को. : हां, पत्र पत्रिकौं मा हिंदी साहित्य से
जुड़ीं समीक्षा, आलोचना, समालोचना तैं पढदौं अर गुणदौं। ताकि देश दुनिया मा कू
साहित्यिक ढब बि पता चल्दू रावू।
भी. कु. : गढवाळी समालोचना से बि आपको कवित्व पर फ़रक पोडद?
ध. को. : समालोचनौं से मैं हमेशा सिखण कि कोसिस
कर्दों। अपणि कवितौं तैं समयकाल का अनुरूप धार दे सकौं।
भी. कु. : भारत मा गैर हिंदी भाषाओं
वर्तमान काव्य की जानकारी बान आप क्या करदवां ? या, आप
यां से बेफिक्र रौंदवां
ध. को. : बिलकुल ना। मिन पैलि बतै कि मैं पढणै हमेशा
कोसिस कर्दों।
भी. कु. : अंग्रेजी मा वर्तमान काव्य की जानकारी बान क्या करदवां आप?
ध. को. : अंग्रेजी खास नि आंदि। वेका साहित्य का
अनुवाद पाण कि कोसिस कर्दों।
भी. कु. : भैर देसूं गैर अंगरेजी क वर्तमान साहित्य की जानकारी क बान क्या करदवां ?
ध. को. : यांका बारा कब्बि क्वी करतब नि कैरि।
भी. कु. : आपन बचपन मा को, को वाद्य यंत्र बजैन?
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments