- भीष्म कुकरेती
आज
मेरे पुराने मित्र व पाठक उद्योगपति श्री दयानंद द्विवेदी जी ने छुमा बौ
गीत की फरमायश की मै कोशिस करूंगा कि छुमा बौ से संबंधित सभी गीत इंटरनेट
पर प्रस्तुत करूँ।
प्रसिद्ध इतिहासकार डा. शिव प्रसाद नैथाणी ने 'उत्तराखंड लोक संस्कृति और साहित्य ' लेख में छुमा बौ पर अपनी राय दी
उत्तराखंड के लोक गीतों कि नायिकाओं के नाम बहुत कुछ उनकी सामयिकता तत्कालीन युग का परिचय भी दे देते हैं
कत्य्री गाथा में वह उदा है, जोत्रमाला है, मोती माला है , इजुला, बिजुला और राणी जिया है .
उधर उत्तर मध्य काल में उसके नाम हैं सुरु कुमैण, मोतिया, जसी , मलारी और राजुला, किन्तु राजुला से पहले सुरजी हुए थी
रमकणि, छमकणि, बीरू कसी वूंग, कहती मीठी साली होली दाख दाड़िम जसी ....
और इधर पिछली सदी में पहले दौंथा थी, पुरुष 'मेरी दौंथा कथैं गे ' कहकर ढूंढते थे
इस बीच मधुलि भी तो आ गयी थी
'खेली जाली होली , मदौली मदुली सबि बुल्दन कन मदुली होली'
दौंथा के बाद तो छुमा प्रसिद्ध हुयी किन्तु वा तो छुमा बौ के नाम से प्रसिद्ध हो गयी , छुमा बौ कद में कुछ छोटी है , नारंगी सी दाणीसी, गोल मटोल सी, और रंग नारंगी जैसा है, छुमा बौ को पहाड़ी टोपी और मगजी बहुत प्रभावित करती है . भाभी है तो प्रगल्भ भी है इशारा भी करती है
छोटी छोटी छुमा बौ टु नारंगी सी दाणी
रूप कि आन्छरी छुमा, जन ऐना चमलांद
गुड़ खायो माख्योंन , सरा संसार गिच्चन खांदो
तू खांदी आंख्योंन
पीतल कि छनी, पीतल कि छनी मुलमुल हंसदी छुमा
दै खतेणि जन
रोटी क कतर, रोटी क कतर, नथुली को कस लगे
तेरी गल्वाड़ी पर
झंगोरा कि बाल, झंगोरा कि बाल छुमा परसिद ह्व़े गे
सरा गढ़वाल सरा गढ़वाल
छुमा ने प्रसिद्ध तो होंना ही था जिस नथुली के कस कि बात गितांग कर रहा है उस नथुली को हल्का सा हिलाकर छुमा ने अपने प्यार कि स्वीकृति भी दे दी थी पर बुद्धू बहुत देर बाद समझ पाया
टोपी कि मगजी टोपी कि मगजी
नथुली न सान करे तिन णि समझी
सुनने में आया कि बाद में छुमा बौ लछमा के नाम से प्रसिद्ध हुयी
आजकल तो छुमा बौ हिंदी फिल्मो से निकल कर गढ़वाल में बसने लगी है और छुमा बौ का गुलबन्द गुम हो ग्या है नथुली हर्च गयी है और छुमा बौ मोबाइल में समाने को आतुर है
उत्तराखंड के लोक गीतों कि नायिकाओं के नाम बहुत कुछ उनकी सामयिकता तत्कालीन युग का परिचय भी दे देते हैं
कत्य्री गाथा में वह उदा है, जोत्रमाला है, मोती माला है , इजुला, बिजुला और राणी जिया है .
उधर उत्तर मध्य काल में उसके नाम हैं सुरु कुमैण, मोतिया, जसी , मलारी और राजुला, किन्तु राजुला से पहले सुरजी हुए थी
रमकणि, छमकणि, बीरू कसी वूंग, कहती मीठी साली होली दाख दाड़िम जसी ....
और इधर पिछली सदी में पहले दौंथा थी, पुरुष 'मेरी दौंथा कथैं गे ' कहकर ढूंढते थे
इस बीच मधुलि भी तो आ गयी थी
'खेली जाली होली , मदौली मदुली सबि बुल्दन कन मदुली होली'
दौंथा के बाद तो छुमा प्रसिद्ध हुयी किन्तु वा तो छुमा बौ के नाम से प्रसिद्ध हो गयी , छुमा बौ कद में कुछ छोटी है , नारंगी सी दाणीसी, गोल मटोल सी, और रंग नारंगी जैसा है, छुमा बौ को पहाड़ी टोपी और मगजी बहुत प्रभावित करती है . भाभी है तो प्रगल्भ भी है इशारा भी करती है
छोटी छोटी छुमा बौ टु नारंगी सी दाणी
रूप कि आन्छरी छुमा, जन ऐना चमलांद
गुड़ खायो माख्योंन , सरा संसार गिच्चन खांदो
तू खांदी आंख्योंन
पीतल कि छनी, पीतल कि छनी मुलमुल हंसदी छुमा
दै खतेणि जन
रोटी क कतर, रोटी क कतर, नथुली को कस लगे
तेरी गल्वाड़ी पर
झंगोरा कि बाल, झंगोरा कि बाल छुमा परसिद ह्व़े गे
सरा गढ़वाल सरा गढ़वाल
छुमा ने प्रसिद्ध तो होंना ही था जिस नथुली के कस कि बात गितांग कर रहा है उस नथुली को हल्का सा हिलाकर छुमा ने अपने प्यार कि स्वीकृति भी दे दी थी पर बुद्धू बहुत देर बाद समझ पाया
टोपी कि मगजी टोपी कि मगजी
नथुली न सान करे तिन णि समझी
सुनने में आया कि बाद में छुमा बौ लछमा के नाम से प्रसिद्ध हुयी
आजकल तो छुमा बौ हिंदी फिल्मो से निकल कर गढ़वाल में बसने लगी है और छुमा बौ का गुलबन्द गुम हो ग्या है नथुली हर्च गयी है और छुमा बौ मोबाइल में समाने को आतुर है
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