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चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट ::: भीष्म कुकरेती
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चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट ::: भीष्म कुकरेती
कलम दास - क्या बात त्रिवेंद्र रावत, सतपाल रावत अर विजय बहुगुणा ! सबि बड़ा कमजोर, कंगला, लुंझ भुञ्ज दिखेणा छया ?
सौरभ बहगुणा -अरे ! कलम दास ! यी सब गणमान्य व्यक्ति छन अर तू रै बै से बात करणु छै। जी लगैक बात नि कौर सकणी छे ? तमीज से अर जी लगैक बात कौर।
जोगी दास (कलम दासक नौनु ) - क्यों बै सौरभ ! म्यार बुबा जी त्यार बुबा से उमर मा बड़ छन अर तेरी जीब जळ गे जु ऊंकुण तमीज तहजीब , जी से सम्बोधन नि करणी छे।
सौरभ - अरे हम बहुगुणा ...
जोगी दास - तो क्या ?
सौरभ - मि , मि ...
तिनि सौरभ का कंदूड़म -देख राजनीति मा गधा कुण बि बुबा बुलण पड़द अर बिट्ठ नीति बुल्दी बल टैम पड़न पर ल्वार , तम्वट अर दासौ दगड़ नाता रिस्ता से बात करण पोड़दि।
त्रिवेंद्र रावत - जी कलम दास जी ! तुमन सै ब्वाल बल मि सुकिक काँटा ह्वे ग्यों।
सतपाल रावत -दुःख मा म्यार मूछों पर ताकत इ नि रै गे।
विजय बहुगुणा - म्यार त बुरा हाल छन। ज्यू बुल्याणु च। नाक इ कटै द्यों।
कलम दास - ह्यां पर ! या बेबगता बीमारी क्या च ? तुम किलै सुकिं मुकीं कठकी बण्या छा ?
तिनि - हम पर इकु रोग लग्युं च।
कलम दास -क्या ?
सतपाल - क्या च। हम सब परेशान , चिंतित अर खौफ मा छंवां।
जोगी दास -ह्यां पर क्या बजर पोड़ जु तुमर भूक , तीस अर हौग बंद हुईं च।
विजय बहुगुणा - हमर संस्कृति समाप्ति को कगार पर च। उ क्या च कि हमर रीति रिवाज निबटणा छन ।
सतपाल रावत - हमर संस्कृति रसातल को जाणी च।
त्रिवेंद्र रावत - हमर संस्कृति क नामलेवा क्वी नी च।
कलम दास - अरे संस्कृति तुमरि , दुःख तुमर तो बचाओ ना अपण संस्कृति।
जोगी दास - हाँ ! संस्कृत अर संस्कृति से हम शिल्पकारुं क्या लीण दीण ?
तिनि - नै नै ! तुम ही तो हमारी संस्कृति का संवाहक छंवां। तुम ही हमारी संस्कृति का चालक -निर्वाहक छंवां।
कलम दास - हैं ? संस्कृति तुम्हारी अर संवाहक हम ? यू क्या घा
ल -मेल च ? घंघतोळ च।
ल -मेल च ? घंघतोळ च।
जोगी दास - तुम कैं संस्कृति बचाणो बात करणा छंवां ?
विजय बहुगुणा - ढोल वादन संस्कृति।
जोगी - अरे ढोल वादन संस्कृति तुम्हारी च ? हैं ? ढोल पर पूड़ हम चढ़ौंदा , लांकुड़ हम बणौंदा , ढोल हम बजांदा अर संस्कृति तुमारी ?
सतपाल रावत - नै नै संस्कृति तो हमारी इ च।
जोगी - वाह ! वह रे संस्कृति का ठेकेदारों ! कमर हमर अर कमर मा चढ़िक रौंस तुम लेल्या ? कांध हमारी अर बंदूक तुम चलैल्या , गौड़ हमर अर दूध तुम छकैल्या हैं ?
सब - नै नै ! ढोल वादन संस्कृति बचण चयाणी च।
कलम दास - अच्छा चलो रण द्यावो यीं बहस तै कि कैक संस्कृति च। इन बताओ तुम क्या करणा छंवां ?
त्रिवेंद्र रावत - माननीय मुख्यमंत्री की पहल पर हरिद्वारम विशाल ढोल वादन याने नाद नमो प्रोग्रैम उराये गे। उत्तराखंड से 1500 से अधिक ढोल बादक ढोल -दमाऊ बजाल अर यो एक विश्व रिकॉर्ड होलु। आप तै उख ढोल वादन का वास्ता निमंत्रण बि दिए गे।
कलम दास - हाँ सूण च बल भौत इ बड़ो झलसा हूणु च बल.
सब - हाँ हाँ संस्कृति बचाणो बान यू एक क्रांतिकारी कार्यक्रम च। तो आप बि चलणा छन ना ? तुम गढ़वाल का सिरमौरी ढोल बजंदेर छंवां तो तुमर आण आवश्यक च।
कलम दास - तो उख अवश्य ही ढोल वादन से पैल पूजन बि होलु ?
विजय बहुगुणा - हाँ हां ! प्रसिद्ध व्यास गोपाल जी पूजा कारल अर ऊंक दगड़ 108 बामण बि वेद ध्वनि का साथ पूजा शुरू कारल।
जोगी दास - तो ऊंक रौणो -खाणो तजबिज बि होल्यू हैं ?
विजय बहुगुणा - किलै न बिलकुल अलग से ऊंकण प्रबंध च। नाद नमो भूमि से अलग , बिलकुल अलग से।
कलम दास - बिलकुल अलग ?
सतपाल रावत - हाँ अरे बड़ा व्यास छन अर वो 108 ब्राह्मण बि बड़ा विद्वान् छन तो ऊंकण पंडाल से अलग व्यवस्था करण इ छौ।
कलम दास - तो लोग बाग़ ऊंक पैर बि छुवल , गंड गंड नतमस्तक बि होला ही ना ?
त्रिवेंद्र रावत - हाँ जन रिवाज च तनी। मीन बि लम्पसार ह्वेक चरण वंदना करण।
कलम दास - ठीक च हम तैयार छंवां। किन्तु छुटी सी शर्त छन।
विजय बहुगुणा - क्या ? क्या ? शर्त ?
कलम दास -हाँ ! पैल हमर बिस्तरा बि व्यासुं कमरा मा लगण चयेंद , व्यास लोग बि वीं पंगत मा खाणा खाला जैं पंगत मा मि अर मेरी विरादरी का दास खाला। अर ..
सतपाल रावत - अर क्या ?
कलमदास - अर ढोल की पिठै व्यास ना हम खुद तैयार करला व हम ही व्यास लोगुं तै पिठै लगौला। अर ...
त्रिवेंद्र रावत - अर ?
कलम दास - अर हरेक व्यास तै हमर चरण वंदना करण पोड़ल , गंड गंड लम्पसार ह्वेका चरण वंदना।
सब - इन कनै ह्वे सकद ? धर्म विरुद्ध , संस्कार विरुद्ध। नि ह्वे सकद। व्यास ब्राह्मण ढोल वादकों चरण वंदना कारल ? बिलकुल नहीं ,
कलमदास - नि ह्वे सकद ? ना ?
सब - नहीं बिलकुल नहीं।
कलमदास - मतलब -हम तै ओ सम्मान नि मिलण जो उच्च ब्राह्मणो तै मिलण ?
सब - असंभव तै हम सम्भव नि कौरी सक्दवां।
कलमदास - ठीक च तुम सम्मान नि दे सकदा तो हम बि आज से ढोल बजाण छुड़ना छंवां। अपने लड़कों से ढोल बजवावो , जो करना है सो करो पर बगैर सम्मान के हमें संस्कृति बचाने की आशा ना करना। जावो जावो और अपनी संस्कृति खुद बचावो।
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Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India , 10 /8 / 2017
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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