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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, August 17, 2017

गुदनड़ जोग ह्वे जैन तुमर संस्कृति ! नरक जोग ह्वे जैन तुमर संस्कृति ! हमन त नि बजाण तुमर ढोल।

(Best  of  Garhwali  Humor , Wits Jokes , गढ़वाली हास्य , व्यंग्य )
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  चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट  :::   भीष्म कुकरेती    
  कलम दास - क्या बात त्रिवेंद्र रावत, सतपाल रावत अर  विजय बहुगुणा ! सबि बड़ा  कमजोर, कंगला, लुंझ भुञ्ज दिखेणा छया ? 
   सौरभ बहगुणा -अरे ! कलम दास ! यी सब गणमान्य व्यक्ति छन अर तू रै बै से बात करणु छै।  जी लगैक बात नि कौर सकणी छे ? तमीज से अर जी लगैक बात कौर। 
  जोगी दास (कलम दासक नौनु ) - क्यों बै सौरभ ! म्यार बुबा जी त्यार बुबा से  उमर मा  बड़ छन अर तेरी जीब जळ  गे जु ऊंकुण  तमीज तहजीब , जी से सम्बोधन नि करणी छे। 
   सौरभ - अरे हम बहुगुणा ... 
    जोगी दास - तो क्या ?
    सौरभ - मि , मि ... 
     तिनि सौरभ का कंदूड़म -देख राजनीति मा गधा कुण बि बुबा बुलण पड़द अर बिट्ठ नीति बुल्दी बल टैम पड़न पर ल्वार , तम्वट अर दासौ दगड़ नाता रिस्ता से बात करण पोड़दि। 
      त्रिवेंद्र रावत - जी कलम दास जी ! तुमन सै ब्वाल बल मि सुकिक काँटा ह्वे ग्यों। 
     सतपाल रावत -दुःख मा म्यार मूछों पर ताकत इ नि रै गे। 
      विजय बहुगुणा - म्यार त बुरा हाल छन।  ज्यू बुल्याणु च।  नाक इ कटै द्यों। 
  कलम दास - ह्यां पर ! या बेबगता बीमारी क्या च ?  तुम किलै  सुकिं मुकीं कठकी बण्या छा ?
      तिनि - हम पर इकु रोग लग्युं च। 
   कलम दास -क्या ?
     सतपाल - क्या च।  हम सब परेशान , चिंतित अर खौफ मा छंवां। 
   जोगी दास -ह्यां पर क्या बजर पोड़ जु तुमर  भूक , तीस अर हौग बंद हुईं च। 
       विजय बहुगुणा - हमर  संस्कृति समाप्ति को कगार पर च। उ क्या च कि हमर रीति रिवाज निबटणा छन । 
         सतपाल रावत - हमर  संस्कृति रसातल को जाणी च। 
      त्रिवेंद्र रावत - हमर संस्कृति क नामलेवा क्वी नी च। 
      कलम दास - अरे संस्कृति तुमरि , दुःख तुमर तो बचाओ ना अपण संस्कृति।  
        जोगी दास - हाँ ! संस्कृत अर संस्कृति से हम शिल्पकारुं  क्या लीण दीण ? 
     तिनि - नै नै ! तुम ही तो हमारी संस्कृति का संवाहक छंवां।  तुम ही हमारी संस्कृति का चालक -निर्वाहक छंवां। 
       कलम दास - हैं ? संस्कृति तुम्हारी अर संवाहक हम ? यू क्या घा
ल -मेल च ? घंघतोळ च। 
         जोगी दास - तुम कैं संस्कृति बचाणो बात करणा छंवां ?
         विजय बहुगुणा - ढोल वादन संस्कृति। 
          जोगी - अरे ढोल वादन संस्कृति तुम्हारी च ? हैं ? ढोल पर पूड़ हम चढ़ौंदा , लांकुड़ हम बणौंदा , ढोल हम बजांदा अर संस्कृति तुमारी ? 
         सतपाल रावत - नै नै संस्कृति तो हमारी इ च। 
            जोगी - वाह ! वह रे संस्कृति का ठेकेदारों ! कमर हमर अर कमर मा चढ़िक रौंस तुम लेल्या ? कांध हमारी अर बंदूक तुम चलैल्या , गौड़ हमर अर दूध तुम छकैल्या हैं ?
        सब - नै नै ! ढोल वादन संस्कृति बचण चयाणी च। 
  कलम दास - अच्छा चलो रण द्यावो यीं बहस तै कि कैक संस्कृति च।  इन बताओ तुम क्या करणा छंवां ?
        त्रिवेंद्र रावत - माननीय मुख्यमंत्री की पहल पर हरिद्वारम विशाल ढोल वादन याने नाद नमो प्रोग्रैम उराये गे।  उत्तराखंड से 1500 से अधिक ढोल बादक ढोल -दमाऊ बजाल अर यो एक विश्व रिकॉर्ड होलु।     आप तै उख ढोल वादन का वास्ता निमंत्रण बि दिए गे। 
     कलम दास - हाँ सूण च बल भौत इ बड़ो झलसा हूणु च बल. 
    सब - हाँ हाँ संस्कृति बचाणो बान यू एक क्रांतिकारी कार्यक्रम च।  तो आप बि चलणा छन ना ? तुम गढ़वाल का  सिरमौरी ढोल बजंदेर छंवां तो तुमर आण आवश्यक च। 
   कलम दास - तो उख अवश्य ही ढोल वादन से पैल पूजन बि होलु ?
   विजय बहुगुणा - हाँ हां ! प्रसिद्ध व्यास गोपाल जी पूजा कारल अर ऊंक दगड़ 108 बामण बि वेद ध्वनि का साथ पूजा शुरू कारल। 
     जोगी दास - तो ऊंक रौणो -खाणो तजबिज बि होल्यू हैं ?
     विजय बहुगुणा - किलै न बिलकुल अलग  से ऊंकण प्रबंध च।  नाद नमो भूमि से अलग , बिलकुल अलग से। 
       कलम दास - बिलकुल अलग ?
     सतपाल रावत - हाँ अरे बड़ा व्यास छन अर वो 108 ब्राह्मण बि बड़ा विद्वान् छन तो ऊंकण पंडाल से अलग व्यवस्था करण इ छौ। 
       कलम दास - तो लोग बाग़ ऊंक पैर बि छुवल , गंड गंड नतमस्तक बि होला ही ना ?
        त्रिवेंद्र रावत - हाँ जन रिवाज च तनी।   मीन बि लम्पसार ह्वेक चरण वंदना करण।   
          कलम दास -  ठीक च हम तैयार छंवां।  किन्तु छुटी सी शर्त छन। 
           विजय बहुगुणा -  क्या ? क्या ? शर्त ?
        कलम दास -हाँ ! पैल हमर बिस्तरा बि व्यासुं कमरा मा लगण चयेंद , व्यास लोग बि वीं पंगत मा खाणा खाला जैं पंगत मा मि अर मेरी विरादरी का दास खाला।  अर  ..     
            सतपाल रावत - अर क्या ?
           कलमदास - अर ढोल की पिठै व्यास ना हम खुद तैयार करला व हम ही व्यास लोगुं तै पिठै लगौला।  अर   ... 
            त्रिवेंद्र रावत - अर ?
             कलम दास - अर हरेक व्यास तै हमर चरण वंदना करण पोड़ल , गंड गंड लम्पसार ह्वेका चरण वंदना। 
           सब - इन कनै ह्वे सकद ? धर्म विरुद्ध , संस्कार विरुद्ध।  नि ह्वे सकद। व्यास  ब्राह्मण ढोल वादकों चरण वंदना कारल ? बिलकुल नहीं , 
           कलमदास - नि ह्वे सकद ? ना ?
       सब - नहीं बिलकुल नहीं। 
           कलमदास - मतलब -हम तै ओ सम्मान नि मिलण जो उच्च ब्राह्मणो तै मिलण ?
         सब - असंभव तै हम सम्भव नि कौरी सक्दवां। 
        कलमदास - ठीक च तुम सम्मान नि दे सकदा तो हम बि आज से ढोल बजाण छुड़ना छंवां।  अपने लड़कों से  ढोल बजवावो , जो करना है सो करो पर बगैर सम्मान के हमें संस्कृति बचाने की आशा ना  करना।  जावो जावो और अपनी संस्कृति खुद बचावो।    
           
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Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India , 10 /8 / 2017

*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।
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