दामिनी
हाँ दामिनी
देश की बेटी
भारत की बेटी
नहीं रही
व्यभिचार
अत्याचार के खिलाफ
लड़कर
जिंदगी से
हार गयी
सो गयी खुद
हमेशा के लिए
लेकिन
जगा गयी
देश को
देश के जनमानस को
भारत को
भारत की अंतरात्मा को
झकझोर गयी
छोड़ गयी एक सवाल
क्या बेटी को जीने का हक़ नहीं
दे गयी एक विचार
हर बेटी मेरे देश की अमानत है
छोड़ गयी एक चिंतन
सबको अपनी जिंदगी जीने का हक़ है
पैदा कर गयी एक आक्रोश
अब हम नहीं सहेंगे
अब हम नहीं रुकेंगे
ये मशाल जली है
जलती रहेगी
नहीं बुझेगी
नहीं बुझेगी
नहीं बुझेगी।
डॉ नरेन्द्र गौनियाल
हाँ दामिनी
देश की बेटी
भारत की बेटी
नहीं रही
व्यभिचार
अत्याचार के खिलाफ
लड़कर
जिंदगी से
हार गयी
सो गयी खुद
हमेशा के लिए
लेकिन
जगा गयी
देश को
देश के जनमानस को
भारत को
भारत की अंतरात्मा को
झकझोर गयी
छोड़ गयी एक सवाल
क्या बेटी को जीने का हक़ नहीं
दे गयी एक विचार
हर बेटी मेरे देश की अमानत है
छोड़ गयी एक चिंतन
सबको अपनी जिंदगी जीने का हक़ है
पैदा कर गयी एक आक्रोश
अब हम नहीं सहेंगे
अब हम नहीं रुकेंगे
ये मशाल जली है
जलती रहेगी
नहीं बुझेगी
नहीं बुझेगी
नहीं बुझेगी।
डॉ नरेन्द्र गौनियाल
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