डा . बलबीर सिंह रावत
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उत्तराखंड का एक नाम हर्बल स्टेट भी है। कालांतर से पूरे पहाड़ी इलाके के गाँवोँ में पारिवारिक वैद्य जी होते थे जो पंडिताई भी करते थे . वैद्य लोग जडी बूटियों की पहिचान रखते थे और यह ज्ञान उनका अपना खानदानी होता था, जो किसी अन्य को नहीं बताया जाता था। वैद्य जी ही बूटियों को लाते थे, मिश्रण बनाते थे, कूट कर चूर्ण और उबाल कर काढ़ा बनाते थे। उनकी दवाओं से सभी स्वास्थ्य लाभ लेते थे। धीरे धीरे ऐलोपैथी ने आयुर्वेद को पीछे छोड़ दिया और पारंपरिक वैद्द्यों की महता कम होती चली गयी।
इधर कुछ समय से एलोपैथी के दुष्प्रभावों, और आयुर्वेद के आधुनिकीकरन ने जडी बूटियों की ओर ध्यान आकर्षित करना शुरू कर दिया है। गढ़वाल विश्वविद्यालय की बनस्पति वैज्ञानिक डा .राखी रावत के शोध कार्यों में उत्तराखंड में 150 औषधीय बनस्पति का वर्गीकरण हुआ है। 45% पौधे, 28%% पेड़ ,22% झाडियां और 5% बेलें चिन्हित हुयी हैं, जिनके पत्ते, छाल, जड़ें, फल और फूल औषधीय गुणों से भरपूर हैं इसलिए औषधीय बनस्पति को उगाने का, खेती आधारित व्यवसाय बनाना लाभ दायक हो सकता है। इच्छुक जडी बूटी उत्पादकों को ऐसी जानकारी लेनी आवश्यक है की उनके क्षेत्रों में कौन कौन से
पौधे,पेड़, झाड (श्रब्स), बेलें जंगलो में उगते हैं, और किन किन की खेती हो सकती है। मेरे बचपन में हर जगह , खेतों की दीवालो में गुलबनफ्सा इतना उगता था की हर घर में सुखा करा रक्खा जाता था और सर्दी जुकाम लगने पर उसका काढ़ा पिलाया जाता था। देश के मैदानी हिस्सों से आये व्यापारी, बच्चों को जेब भर कर लाये गए फूलों के बदले भुने चने, इलायची दाने देते थे, मुल्य स्वरूप। अब सारियों से ये बन्स्फे लुप्त हो गए हैं
जड़ी बूटी व्यवसाय में, चूंकि पूरी की पूरी उपज बेची जाती है और दवा उद्द्योग केन्द्रों में इतनी मात्रा में जमा की जाती है कि उनसे बनी दवाओं की इतनी मात्रा हो की साल भर उसकी मांग पूरी की जा सके। इस कारण से एक ही स्थान पर अधिकतम उत्पादन कच्चे माल का हो तो ही उत्पाद के ऐसे स्थाई ग्राहक मिल सकते हैं जो आकर्षक मूल्य दे सकते हों। फेरी वाले संकलन करता बहुत कम दामो में लेते हैं क्योंकि वे जानते हैं की जड़ी बूटी उत्पादक अकेला किसान बिना बेचे तो रहेगा नहीं , तो मजबूरी का फायदा उठाते हैं। इसलिए सबसे उत्तम है कि सारे पूरे गाँव के, और इलाके के कृर्षक, परंपरागत अनाजों को उगाना छोड़ जडी बूटी की खेती ब्र्हद पैमाने पर करें।
आजकल कई जगहों में जंगली सुवरों ने और बंदरों, तथा हिरनों, खरगोशों ने अनाज, आलू इत्यादि फसलों का उगाना असम्भव कर दिया है, तो आफत में राहत के रूप में जडी बूटी खेती करके, विषेश कर, झाडो, पेड़ों और लताओं वाली प्रजातियों की बनस्पति उगाई जा सकती हैं। चूंकि यह एक नए प्रकार का व्यवसाय है तो इच्छुक व्यक्तियों के मार्ग दर्शन के लिए उत्तराखंड सरकार के बागवानी विभाग, कृषि विभाग, उद्द्योग विभाग, और हे न ग वि वि तथा पंतनगर कृषि वि वि मिल कर एक प्रकोष्ट बना लें तो ही यह व्यवसाय पनपेगा। इस प्रकोष्ट में कृषकों को उगाने की जानकारी के साथ साथ, बीज/पौध की उपलब्धता, पौधा सरक्षण, पत्तों, फूलों,बीजों, खालों, जड़ों के उचित कटाए लवाई का समय, संकलित वस्तुवों की धुलाई, सुखाई, पकेजिंग और सरंक्ष्ण-भंडारण तथा विपणन की सारी जानकारी एक पैकेट में, एकल खिड़की तर्ज़ पर मित्र भावना से दी जानी चाहिए।
यह और भी अच्छा होगा की इन जडी बूटियों का प्रसंस्करण क्षेत्र के ही सुविधायुक्त केंद्र में हो। इसके लिए जानी मानी आयुर्वेदिक दवा कंपनियों से उनकी अपनी इकाइयां लगाने या फ्रेंचाइजी प्रोसेसिंग इकाई लगाने का अनुबंध किया जा सकता है। एक और बिकल्प भी है कि ये कम्पनियां उत्तराखंड में जड़ी बूटी उत्पादन की खेती ठेके पर करवा सकती हैं। वे उत्पाद विशेष के उपजाऊ इलाकों के सारे किसानो से अनुबंध करके, अपनी सालाना आवश्यकताओं के उत्पादन, और गुणवत्ता युक्त आपूर्ति सुनिश्चित कर सकते हैं। ये ही कंपनिया टेक्नीकल जानकारी भी दे सकती हैं।
यह नया क्षेत्र बहुत संभावनाए अपने अन्दर समेटे हुए है, प्रतीक्षा कर रहा है कि कोई आगे बढ़ें , पहल करें और कमाई करते हुए खुशहाली लायं . इस पहल का catalytic agent सरकार ही है। बिना उसके करवट लिए फलदायी शुरुआत नहीं हो सकती है।
.....बलबीर सिंह रावत ,
dr.bsrawat28@gmail.com
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