भीष्म कुकरेती
यु एक सद्यानो सच च बल जु जनमल तैन मोरण बि च। जब 10 अक्टोबर सन 1940म भीमली गौंम (पैडलस्युं,पौड़ी गढ़वाल , उत्तराखंड ) पंडित चैतराम नौडियालौ ड्यार जगदीश नौडियालन जनम ले छौ त भेमातान लेखी दे छौ बल 8 नवोम्बर 2012 कुणि श्याम पुर , रिशिकेषम जगदीश नौडियालो निर्वाण बि होलु .
इखम खौंऴयाणे बात नी च बल भग्यान जगदीश नौडियाल भरपूर परिवार ( घरवळी, द्वि नौन्याळ , बिवयिं नौनी अर नाति नतिण ) छोड़िक भगवानो ड़्यार चलि गेन . खौंऴयाणे बात या च बल हम बुलणों गढ़वाळि साहित्यौ सेवा करदारो तै पता इ नि चौल बल करुण रस से अंसदारी लाण वळो गितांग अर कवि चलि गेन . मेरि टेलीफोनम बात ऊं से सन 2011 बिटेन शुरु ह्वेन . मीन ऊंकी तीन किताबो समीक्षा कुछ बिगळी ब्यूंतम करि छौ त वों बार बार बुल्दा छा बल तुमन मै पछ्याण। अर आखिरें ओक्टोबरम उंको फोन बि ऐ छौ . ऊंन मेखुण 'उदगाथा ' किताब भेजि छौ अर यां पर बात ह्व़े . फिर परसि कनाडा बिटेन पाराशर गौड़ जी दगड बात हुणि छे अर मीन पूछ बल जग्गु दा दगड़ बात बि ह्वेन त वूंन बोलि बल ना भौत दिनों बिटेन नि ह्वे . थ्वडा देरम पाराशर जीक फोन आयि बल नौडियाल जीत 8 नवम्बरो यी दुन्या छोडि चलि गेन। मीन फिर चार पांच गढवाली साहित्यकारों फोन घुमाइ त पाइ बल कै तै कुछ नि पता !
अब इखमि सवाल खड़ा होंदन कि हम बात त साहित्य सेवा की जरूर करदां पण साहित्य जनमदारो बाराम उदासीन किलै रौंदवां . किलै हम दाना सयाणो साहित्यकारों तै बिसरि जांदा . इनि दिल्लीक साहित्यकारों तै पता इ नी च बल गढ़वळि महान कथाकार अर नाटककार काली प्रसाद घिल्डियाल बच्यां छन त कख छन? गढ़वळि साहित्यौ इतिहास लिखणम मजाक मसखरी करण वळु तै पता इ नी च बल जगदीश प्रसाद देवरानी क्वा च अर देवरानी जीन कथा लेखिन . आखिर या उदासीनता किलै ?
डा जग्गू नौडियालन वै बगत पर गढ़वळिम गीत अर कविता लेखिन जब गढ़वळि एक ट्रांस्फोर्मेसन की तलासम छे .लोकेश नवानीक बुलण च बल जब नौडियाल जी ज्वाल्पा देवी जिना मास्टर छ्या त लोग नौडियाल जीक लिख्यां -गयां गीत पुंगड़ो, डाँडो,रस्ता चलदा या गोरम गांदा छा .
डा जग्गू नौडियालन गढ़वळिम द्वि कविताखौळ (कविता संग्रह ) छपैन -गीतुं गाड (1963)अर समळौण (1979). डा पार्थ सारथि बुलण च बल कविताखौळ 'समळौण' एक सशक्त अर भावनाऊं से भोर्युं कवितागळ (कविता संग्रह ) च।समळौणम कवि न अभावो तै नया किस्मु भाव दॆन। 32 कवितौं संग्रह -समळौणऐ कवितौंम प्रपंच तै फुंड धोळिक पंच तै थरपे गे . समळौणक कवितौं मा प्रदर्शन की ना दर्शन की उपासना च .जु वीर रसै कविता छन वो विध्वंसात्मक ना बल्कणम निर्माणात्मक छन . डा डबरालो बुलण च बल जग्गू क कवितों माँ सर्वकल्याण भावना छन
डा जग्गू नौडियालो ब्वेक समळौण्या कविता कळकळो रसौ (करुण ) बढिया उदाहरण छन . ब्वेक मोरद दै अपण दुधि बच्चा वास्ता सौगंध मंगण वळि कविता वात्सल्य अर करुण रसौ संगम छ।
सन साठम ह्युं पोड़न पर रचींजग्गू नौडियालै कविता प्रतीक से बिम्ब दर्शाणो उदाहरण त छें इ च दगडम इतिहास दर्शांदी कविता बि च .
बकी बातों ह्यूं
कवि : जग्गू नौडियाल
कवितौ रचना समौ :खैडा, गाँव २४ जनवरी १९६०
ये दिन याद राला ,
ह्यूं पड़ी अबा साला .
सात गती मौ का मैना ,
ह्यूं का पाड़ बंदे गेना ,
भवरेगैनी छाला . ह्यूं पड़ी अबा साला
आंदा जांदा लोक बन्द ,
म्वरणो कू आया छंद
गोरु क्या जी खाला . ह्यूं पड़ी अबा साला
ह्यूं को पाणी तातु कैक
गौड़ी भैंसी वे पिलैक
लगै द्यावा ताल़ा . ह्यूं पड़ी अबा साला
हिन्दीम ऊंकी 6 किताब छपीं छन पण 'उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर : रवांइ क्षेत्र के लोक साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन ' मा रवांई क्षेत्रक लोक साहित्य की खोज च . ईं किताबो महत्व ऊनि च जन अबोध बन्धु बहुगुणा , डा गोविन्द चातक, डा मोहन बाबुलकर , डा शिवा नन्द नौटियाल अर डा भट्टो गढ़वाली लोक साहित्य पर खोज की च।
डा जग्गू नौडियाल क पांच छै किताब अणछप्यां छन , जां मादे एक कविता पोथी गढ़वळिम बि च
भगवान से उन्कि आत्मा तै शान्ति की प्रार्थना !
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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