- डा . बलबीर सिंह रावत
[भारत में उत्तराखंड में पशु चारा उत्पादन, हरिद्वार में पशु चारा उत्पादन, देहरादून में पशु चारा उत्पादन, पौड़ी में पशु चारा उत्पादन, टिहरी में पशु चारा उत्पादन, उत्तरकाशी में पशु चारा उत्पादन, उत्तरकाशी में पशु चारा उत्पादन, चमोली में पशु चारा उत्पादन, रुद्रप्रयाग में पशु चारा उत्पादन, नैनीताल में पशु चारा उत्पादन, उधम सिंग नगर में पशु चारा उत्पादन, अल्मोड़ा मेंपशु चारा उत्पादन, बागेश्वरमें पशु चारा उत्पादन, पिथोरा गढ़ में पशु चारा उत्पादन, चम्पावत में पशु चारा उत्पादन लेखमाला ]
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चारे सूखे बी होते है, जैसे भूसा, कर्बी (मडुआ, कौनी झंगोरा के सूखे तनों पत्तियों का भाग) और जंगल से काटी सुखाई घास ( ऊला ) सूखे चारे में शुष्क भाग 90-95% होता है, और हरे चारे में 15-25 % . हरा चारा अगर बरसात में मक्की का है तो शुरू में 15 %, व बाद में 20 से 25 % तक। चूंकि शुष्क भाग की गणना से एक 450 किलो वजनी 15-20 किलो दूध देने वाले जानवर को 100 किलो तक हरी घास का राशन बनता है तो घास की मात्र कम की जाती है और उसकी आपूर्ति दाने से होती है। सही राशन का हिसाब लगाने के लिए नजदीकी पॉशुपालन विभाग की डिस्पेंसरी से संपर्क कर के चार्ट लेना श्रेयकर ही।
भारत में सन 2015 तक 3220000000 दुधारू जानवर होंगे . इसका सीधा अर्थ है कि चारे की कमी बनी रहेगी और चारे से कमाई के स्रोत्र बढ़ेंगे . उत्तराखंड में चारे की खपत और पूर्ति में अधिक अंतर है . 2007 में चारा -मांग-पूर्ति में अंतर इस प्रकार था
हरिद्वार - 41.64 % कमी
देहरादून -50 %कमी
पौड़ी -55.12 %कमी
टिहरी -49.59 %कमी
उत्तरकाशी 17.88 %कमी
चमोली -34.90%कमी
रुद्रप्रयाग -51.91 %कमी
नैनीताल -50.72 %कमी
उधम सिंह नगर -10.1%कमी
अल्मोड़ा - 46.48 %कमी
बागेश्वर -43.56%कमी
पिथोरागढ़ 55.47%कमी
चम्पावत -46.64%कमी
अत : चारा उत्पादन नये किस्म का रोजगार दिला सकता है और कमाने का नया तरीका भी हो सकता है
उत्तराखंड के मैदानी भागों मे तो हरा चारा उगाया जाता है , जैसे बरसीम, जई जाड़ों (रबी) में और , मक्का, ज्वार गर्मी बरसात (खरीफ) में। पर्वतीय इलाकों में अधिक मात्र में हरा चारा उगाना इतना आसान नहीं है, क्यों की न तो सिंचाई पर्याप्त है और न ही खेती की जमीन इतनी बड़ी। इसी लिए परंपरागत पशु चारा हैं : सुखाई जंगली घास, पेड़ों के हरे पत्ते व कोमल डंठल, खेतो में लगाए गए भीमल, खडिक के इत्यादि के पेडौं से, जंगलों से बांज इत्यादि के हरे पत्ते ( अब धीरे धीरे वन बिभाग ग्रामीणों के बन अधिकार कम करते करते लगभग शून्य कर चुका है). इसके अलावा, गुडाई, नलाई के समय निकला हुआ हरा खर पतवार।
अनाज लवाई के बाद बचे अंश को भी, जैएसे क्व्देट, झुन्ग्रेट,गेहू का चिलाऊ, उरद दाल की भूस्सी, इत्य्यादि . यह भी परंपरागत रिवाज था कि सारे जानवर,चराने के लिए जंगल ले जाए जात थे और दूध केवल घर के लिए ही उत्पादित किया जाता था, क्योंकि प्राय: हर किसान घर गाय बैल अपने ही लिए पालता था ।
नश्ल और उत्पादकता का यह अंतर, खिलाई पिलाई में भी जरूरी होता है। जहां भैस सूखे भूसे और दाने से, अपनी नश्ल के अनुसार ठीक दूध देती है, वही गाय को, विशेष कर संकर गाय को, हरा चारा, कम से कम दस किलो रॊज तो देना ही चाहिए।
पर्वतीय क्षेत्रो में नदी की घाटियों में कुछ गर्मी रहती है, जाड़ों में तुषार न के बराबर पड़ता है तो वहाँ बरसीम अक्टूबर में बो कर, दिसंबर से मई तक ली जा सकती है। जई का चारा भी उगाया जा सकता है।
ऊचे ठन्डे इलाकों में बरसीम मार्च शुरू में बो कर मई से जुलाई तक उपलब्ध सो सकती है। मक्का , चारी तो घाटी चोटी दोनो क्षेत्रों में उगाई जा सकती है . इस हरे चारे के साथ, अगर साग सब्जी भी उगते हों तो फली निकालने के बाद बचे मटर के पौधे अच्छी खुराक देते हैं। गजराज घास एक बारामासी घास है, इसको को सीढी नुमा खेतों की मेंड़ों में लगा कर भी हरा चारा लिया जा सकता है। ये घास भूमि कटाव को रोकता है , तो इसेढलान वाले सार्वजनिक चरागाहों में भी लगाया जा सकता है। खेती की सारियों में अधिक से अधिक चारे वाले पेड़ों की संख्या भी बढाते रहने से चारे की उपलब्धि सुनिश्चित की जा सकती है।
दूध का व्यवसाय करने के लिए जंगल तथा घास क्षेत्रों (grass lands ) से काटी गयी हरी घास को जितना हरी काटेंगे, उतनी ही उसमे पौस्तिकता अधिक होगी। चूंकि यह घास बरसात में होती है तो सितम्बर मध्य से जब धुप अधिक मिलना शुरू होती है, इसे काट कर सुखाया जा सकता है। देर से, बीज और डंठल पक्का हो जाने पर इस उसुखायी घास की पौस्तिकता भी कम होजाती है और इसे पचाने के लिए पशु को अधिक उर्जा खर्च करनी पड़ती है , इसलिए घास काटने और सुखाने के ज्ञान को लेना (the technique of good hay making ) जरूरी है।
पार्वती क्षेत्रों में पशुओं की अच्छी खिलाई पिलाई करने के लिए, सुखी, हरी घास तथा संतुलितित दाने की मिली जुली व्यवस्था करना जरूरी है। और इतना ही जरूरी है पर्याप्त साफ़ पानी और खनिजों की आपूर्ति।
दूध का व्यवसाय एक ऐसा व्यवसाय है जो सुबह 4 बजे से रात के 10 बजे तकाद्मी को व्यस्त रखता है। इसलिए शुरू करने से पाहिले सुनिश्चित करना ठीक रहता है की क्या पर्याप्त श्रम शक्ति है, और क्या इस व्यवसाय ने दिलचस्पी है? , .
बल्बिर सिंह रावत ..
[भारत में उत्तराखंड में पशु चारा उत्पादन, हरिद्वार में पशु चारा उत्पादन, देहरादून में पशु चारा उत्पादन, पौड़ी में पशु चारा उत्पादन, टिहरी में पशु चारा उत्पादन, उत्तरकाशी में पशु चारा उत्पादन, उत्तरकाशी में पशु चारा उत्पादन, चमोली में पशु चारा उत्पादन, रुद्रप्रयाग में पशु चारा उत्पादन, नैनीताल में पशु चारा उत्पादन, उधम सिंग नगर में पशु चारा उत्पादन, अल्मोड़ा मेंपशु चारा उत्पादन, बागेश्वरमें पशु चारा उत्पादन, पिथोरा गढ़ में पशु चारा उत्पादन, चम्पावतमें पशु चारा उत्पादन लेखमाला जारी
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