(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित दिनांक: २३.७.२०११)
उड़ि-उड़ि डाळ्यौं ऐंच, बैठिं छन ऊदास,
हेरदि ऊँड फुन्ड, प्यारा पहाड़ु का पास....
खुदेड़ बेटी ब्वारी जौमु, देन्दि थै रैबार,
टपराणि छन आज, देखा दौं हपार....
खुदेड़ु की खुद आज, प्यारी घुघत्यौं तैं लगणि,
बौड़ि आला खुदेड़, मन की आस छ जगणि....
पहाड़ की घुघत्यौं तुम, न होवा ऊदास,
चलिग्यन जू परदेश, बौड़ि आला पास...
खुदेण लगिं छन, ऊ घुघती प्यारी,
औणि याद ऊँ तैं, देखा दौं हमारी....
पहाड़ का मन्ख्यौं तुम, यनु त पछाणा,
तुम बिन उदास घुघती, वख किलै नि जाणा...
"पहाड़ की घुघती" छन, आज भौत ऊदास,
ह्वै सकु त पौंछि जावा, तुम फुर्र ऊँका पास..
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments