मिथये अचांणंचक से ब्याली सोच प्वड़ी गईँ
किल्लेय कि कुई कणाणु भी छाई
फफराणु भी छाई
द्वी चार लोगौं का नाम लेकि
कबही छाती भिटवल्णु कबही रुणु भी छाई
बगत बगत फिर उन्थेय सम्लौंण भी लग्युं छाई
तबरी झणम्म से कैल
म्यार बरमंड का द्वार भिचौल द्यीं
सोचिकी मी खौलेय सी ग्युं
कपाल पकड़ी कि अफ्फी थेय कोसण बैठी ग्युं
सोच्चण बैठी ग्युं कि झणी कु व्हालू ?
मी कतैइ नी बिंगु
मिल ब्वाल - हैल्लो हु आर यू ?
मे आई हेल्प यू ?
वीन्ल रुंवा सी गिच्चील ब्वाळ
निर्भगी घुन्डऔं - घुन्डऔं तक फूकै ग्यो
पर किरांण अज्जी तक नी ग्याई ?
मी तुम्हरी लोक भाषा छोवं
मेरी कदर और पछ्याँण
तुम थेय अज्जी तक नी व्हाई ?
सुणि कि मेरी संट मोरि ग्या
और मेरी जिकुड़ी थरथराण बैठी ग्या
मी डैर सी ग्युं
और चदर पुटूग मुख लुका कि
स्यै ग्युं चुपचाप से
और या बात मिल अज्जी तक कैमा नी बतै
और बतोवं भी त कै गिच्चल बतोवं ?
कन्नू कै बतोवं ?
कि मी गढ़वली त छोवं ?
पर मिथये गढ़वली नी आँदी ?
पर मिथये गढ़वली नी आँदी ?
रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित, )
अस्थाई निवास: मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी: ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड
i am proud of u u are much far from distance
ReplyDeletebut very close for heart in garhwal
keep it up weldon