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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, March 17, 2009

द भै, ब्वारी क्य बोन तब !

मींकू ब्वारी ढूडि मेरा बुबन, इनी लंबटंग्या सोंणी
जन क्वी झंगोरा बीच कौणी, अर् बांदरवा बीच गोणी

तडतडी च नाक व्विंकी इन, जन दाथडे चोंच होंदी
अर् चौन्ठी पर तिल इनु जन क्वी मोटी कौंच होंदी,

हैंस्दी मुखडी विंकी इन दिखेंदी जन्बुले, हो रोंणी
मींकू ब्वारी ढूडि मेरा बुबन, इनी लंबटंग्या सोंणी

बोल्दी दा इन छुट्दन तैन्का गिच्चा बिटिक बोल
मंडाण मा कखी बजणु हो जन क्वी फुट्यु ढोल

जब देख नलका परै, मुख् ही रान्दि धोणी
मींकू ब्वारी ढूडि मेरा बुबन, इनी लंबटंग्या सोंणी

सेडी सुर्म्याली आंखी रंदीन तैंकी, गीत क्वी सुणाणी
सोच्दु भी रन्दु कि रैली किलै, खोपडी बबै खजाणी,

जन तव्वा कु थौरु होन्दु, इनी हाथी गौणी
मींकू ब्वारी ढूडि मेरा बुबन, इनी लंबटंग्या सोंणी

-गोदियाल

2 comments:

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