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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, March 12, 2009

एक होली ये भी

एक होली ये भी

मलते ही गुलाल
हुआ मलाल
रंगना था चेहरा
रंग दिए गाल
मलना था किस पे
मला किसको
हंगामा हो गया
पकडो पकडो इसको !

बीच चोराहे में पकडा गया
ठुकम ठुकाई होते होते
भया ठुक गाया !

मित्रो ....
जैसे ही उनसे छुटा
पत्त्नी ने आकर कुट्टा
पकड़कर कालर बोली ...
कौन थी वो .......
जिस पर मलने गुलाल तुम
गली छोड़ , मोहला छोड़
यहाँ तक आये हो !

मै बोला., अरी भागवान ....
मै उसे जानता तक नहीं
पहिचानता तक नहीं
मेरा यकीन करलो
कसम खलालो ...
या मुर्गा बनालो !

सच कहूँ तो ...
उपर से नीचे तक वो
रंगों में रंगी थी
बाल काले पीले हो रखे थे
मुह पर कालिख माली थी
कुछ देखी नही दे रहा था
इसे में मैंने सोचा तू ही थी
बस्स ...................
आओ देखा न ताऊ
गुलाल मल दिया !

लगाते ही गुलाल
अहसाश हुआ
कही ना कही
धोखा हो गया
मेरी वो ...
वो तो इसी तो न थी
ये कौन है ??
ये क्या होगया !

जो होना था सो हो गया
उसपे रंग चदा गया था
मेरा रंग उड़ गया
क्या क्या ब्यान करू
क्या क्या हुआ नहीं
उसके बाद जो हुआ
वो तुम से छुपा नहीं !

जो होना था सो हो गया
उसपे रंग चदा गया था
मेरा रंग उड़ गया
क्या क्या ब्यान करू
क्या क्या हुआ नहीं
उसके बाद जो हुआ
वो तुम से छुपा नहीं !
होली के रंग ने
एसे रंग दिए
मुझो दिन में ही तारे दिखाई दिए !


पराशर गौर

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