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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, November 11, 2015

कीडू कि ब्वै ( स्व कन्हैयालाल डंडरियाल की असलियतवादी कविता )

Modern Realistic Garhwali Folk Songs, Poems 


 कीडू कि ब्वै    ( स्व  कन्हैयालाल डंडरियाल की असलियतवादी  कविता ) -
रचना --    स्वर्गीय कन्हैयालाल डंडरियाल       ( जन्म  - 1933   , नैली , मवाळस्यूं , पौड़ी गढ़वाल  ) 

Poetry  by - Kanhaiyalal Dandriyal 
( विभिन्न युग की गढ़वाली कविताएँ श्रृंखला )
-इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या - भीष्म कुकरेती 
-
 पोरु का साल /ये बसग्याळ/ आजै ब्याळि ,
रकर्याणी छै /ह्यरान्द कीडू कि ब्वै। 
भूख अर नांग /मळसा कि मांग ,
काळो कुयेडी /तींदी गतूड़ी /भिजीं /रुझीं 
कुछ बरखल /कुछ आँसुल 
आंदि छै फजलै ब्यखुनि ह्यरां द  कीडू कि ब्वै  
घुरप्वळी   पंद्यरि पांड /क्वलणो छवाया 
उबर कमळी कत्तर /पट तिखंडा भितर 
यखुल्या यखुली /बयाणी रैन्दि छै / ह्यरां द  कीडू कि ब्वै 
डोर्यों कि भिंजकी /भांडों का खपटण 
ढकीण डिसाणा अंदड़ा /द्वी चार झुल्ली की ल्वतगी 
अर भितर फुंड /बक्कि बातै /हडगौं थुपड़ि ह्यरां द  कीडू कि ब्वै  / उनि झंड /उनि तींदो खैड़ /चस्स ऐड़ो /टुट्यूं  दैड़ो 
एक कूणी पर /जड्डल खुकटाणी 
रुणि रैन्दि छै/ ह्यरां द  कीडू कि ब्वै। 
पोस्टमैन भैजिम /यकनात कै चलि जान्दि छै 
आंदो जान्दो मु पुछदि छै 
लुखु करौंक देखीइ /प्राण सस्यांदि छै 
ह्यरां ! कबि म्यारु बि ब्वारि ल्हेकी /खुचलि पर एकाध 
इनि गैणा-गांठा गठ्याणी छै /ह्यरां द  कीडू कि ब्वै 
दिल्ली का बीच /कीडू बड़ो आदिम चा 
ब्वारी बि चीज प्वडीं च /निपल्टु समझा 
लोक ब्वदीं /मिल बि सूण /गगळान्दि बाच /कीडू    .... कीड़   … 
धै लगांद /वै खंद्वार 
बिचरी भलि अदमेण छै /ह्यरां द  कीडू कि ब्वै।  
-
( साभार --शैलवाणी , अंग्वाळ )

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