Modern Garhwali Folk Songs, Poems
झंडारोहण ( डा पार्थसारथी डबराल की चोट करती कविता )
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रचना -- स्व . डा पार्थ सारथि डबराल ( जन्म - 1936, तिमली , डबरालस्यूं ,पौड़ी गढ़वाल )
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रचना -- स्व . डा पार्थ सारथि डबराल ( जन्म - 1936, तिमली , डबरालस्यूं ,पौड़ी गढ़वाल )
Poetry by - Dr. Partha Sarthi Dabral
( विभिन्न युग की गढ़वाली कविताएँ श्रृंखला )
-इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या - भीष्म कुकरेती ( विभिन्न युग की गढ़वाली कविताएँ श्रृंखला )
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फ्यफना अळगै अळ गै की
गांधी चौक की दांदण माँ
खड़ु ह्वे की
मीन राष्ट्रीय झंडा को डोर
लौंफ्याण चाई।
पर झंडा की डोर
लौंंफ्याँण मा नि आई।
कथगा कोशिस करे
तकणे तकणे को मोरी ग्यों
अस्यो ऐगे ,
पर झंडा की डोर
जखा कि तक्खि रैगे
झंडा मुक्त ह्वेकी ,
आकाश मा फफराणु छयो
मीन तिरंगा कु बोले
"चुचा मितै भी अपणी
डोर पकड़णी दे !
जनता माँ मितै भी
नेतौं की तरौं
अकड़ण दे। "
झंडा आकाश माँ
खित खितै की
हँसे अर बोले -
" तू क्य फफरैलो
मितै रे !
सन्नपति माँ सि
क्या बोलणु छे रै !
मुर्ख तू स्वछंद छै
स्वतंत्र नी छै !
स्वछँदता देखिकी
मी बितकुदो छौं
एक बार फिर मितै फफरैकी देख धौं
तू निक्कमू अर बुरु छै
तू निगुरु छै
गाड जैकी तुतै गाड नि अड़ाए
भ्याळ जैकी तुतै भ्याळ नि पढ़ाए
अपणी समस्यौं की फंची
तू मुंड माँ धरीक
कमर तै हिंगोड़ सी मोड़िक
तू क्वकड़ी क्वकड़ी चलणु छै !
त्वेन आकाश को विस्तार
कख देखि रे !
तब तेरु क्य काम मेर धोरा
तू मितै नि लौन्फ़े
सकदी रे छोरा।
तू दुसरु का वास्तs
भगवान क रच्यूं छै !
पर आज तू अफुकुणी ही
बच्युं छै !
इन बच्यूं से तs नि बच्यूं ठीक ,
तू ऐ तs सै मेरs नजदीक !
हे ग्वबडू बुकाण वाळो
मै तैं नि पै सकदो
तेरो छैलो
तू मितैं क्या लौंफ़ेलो !
इन्नो बचिकी क्या करिलो रे !
मौत देखीक कब तक डरीलो रे !
छोरा !
जै दिन तक मौत खुद नि मरदी !
वै दिन तक क्वी बच्यूं नी।
जै दिन मरघट ही मर जालो
वैदिन मनखी अमर ह्वै जालो !
पर ,
यु मरघट मरण वाळ नी
मरलो भी त
सब्बुं तैं मारिकी मरला
फिर
क्या पड़्यूं छै
सिल्ली ओबरी
……
……
तू क्या लौंफेलो मितैं रे बोनू!
तू क्या फफरैलो मितैं रे नौनू !
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( साभार --शैलवाणी , अंग्वाळ )
Poetry Copyright@ Poet
Copyright @ Bhishma Kukreti interpretation if any
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