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क्या जागरों की पैरोडी उचित है ?
चबोड़ , चखन्यौ , चचराट ::: भीष्म कुकरेती
परसि किसन बगोट जीक नेटवर्क 10 कु 'तीला धारो बोला ' कार्यक्रम मा भाग लीणो वास्ता एक फोन आई। यु प्रोग्राम गढ़वळि संस्कृति बाबत एक परिचर्चा करांद। ब्याळि 2 बजि दिन मा ऐंकर को सवाल छौ कि कुछ 'बिगड़ैल ?' कलाकार जौं तै गाणै सलीका बि नी च उ लोग जागर शैली को छत्यानाश करणा छन। माने जागर शैली मा कुछ बि गीत चलण लग गेन अर यी गीत बरख पुजै , ब्यौ बरात , खौळ म्याळा मा बि बजणा छन। किसन बगोट जी अर ऐंकर की चिंता छे कि यांसे गढवळि संस्कृति को नुक्सान हूणु च।
जागर माने जागरण अर पैल पैलि जागर राजाओं तै जगाणो काम करदा छा बाद मा जागर धार्मिक कृत्य मा प्रयोग हूण मिसे गेन।
म्यार मनण च यदि क्वी गीतकार या कवि अर संगीतकार जागर शैली मा गीत रचित करणा छन अर यि गीत बरख पुजै , ब्यौ बरात , खौळ म्याळा मा बजणा छन अर आम जनता यूँ जागर शैली का प्रेम गीतुं धुन पर नाचणी च तो क्या बुरु च ? क्यांक संस्कृति बिणास भै ?
इनि जब गजेन्द्र राणा का गीतुं पर यंग उत्तरांचल सोसल मीडिया मा बहस ह्वे कि गजेन्द्र राणा का गीत हळका छन , ओछा छन , संस्कृति भंजक छन तो मीन अपण विचार देनि कि यदि जनता यूं गीतुं तै पसंद करणी च , यूं गीतुं पर लोग नचणा छन अर कैसेट बिकणा छन तो हम कु छंवां कि बुलां कि गजेन्द्र राणा संस्कृति का बिणास करणा छन।
मीन नेट अर फेसबुक मा पर सतपुळी से संबंधित कुछ गैर मरद -गैर पत्नी संबंधी प्रेम लोक गीत पोस्ट करिन तो भौत सा संस्कृति का चौकीदार मे पर नराज ह्वे गेन कि या थुका च हमारी संस्कृति।
म्यार मनण च कि कुछ गीत पैल पैल शराब का नशा का तरां जनता बीच प्रसिद्ध ह्वे जांदन जन कि सतपुळी से संबंधित कुछ गैर मरद -गैर पत्नी संबंधी प्रेम लोक गीत, गजेन्द्र राणा का गीत या अब जागर शैली मा तथाकथित संस्कृति भंजक गीत। फिर समाज अफिक छाण निराळ करद अर यिन गीतुं तै नेपथ्य मा डाळि दींदी जन कि सतपुळी से संबंधित कुछ गैर मरद -गैर पत्नी संबंधी प्रेम लोक गीतया गजेन्द्र राणा का गीत। किन्तु समाज कुछ गीतुं तै समाळिक धौरी दींदु अर ऊँ गीतुं या कथाओं तै हम अमर गीत या अमर कथाओं नाम दे दींदा। रामी बौराणी गीत , जीत सिंह नेगी द्वारा रचित ' तू ह्वेली बीरा उची निशि डाँड्यूं … ' जन लोक गीत या जागरों का भड़ संबंधी गीत आदि समाजन संबाळिक धरि देन अर बकै गीतुं तैं नेपथ्य मा फेंकी दे। या एक स्वतः सामाजिक प्रक्रिया च।
रचनाकार , कलाकार , गीत संगीतकार तै अपणी प्रतिभा का प्रदर्शन करण द्यावो अर समाज छैं त च जु काम की चीज तै संबावळिक रखणो कुण। हम किलै चौकीदारी करां भै कि कु गीत संस्कृति संवाहक च अर कु संस्कृति भंजक च।
हर युग , उपयुग , समय मा रचनाकार , कलाकारुंन नया नया प्रयोग करिक नया गीत , नयो संगीत रची अर फिर कुछ ही गीतुं या संगीत तैं समाजन स्वीकृति दे। या एक स्वतः स्फुरित सामाजिक प्रक्रिया च। क्या संस्कृति तलाब च ? ना भै ना , बिलकुल ना बल्कण मा संस्कृति तो बगदि नदी च जु स्वतः ही गंदगी साफ़ करणी रौंदी।
जागर शैली मा रच्याण वळ गीतुं पर आपकी राय , प्रतिक्रिया , सलाह क्या च जी ? अवश्य बतावो जी। आपकी राय की जग्वाळ मा !
6/11//15 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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